प्रत्युत्तर
हाँ;
मैं चाहती हूँ
सारे आसमां को
आलिंगन में
भर लूँ...
हाँ;
मैं चाहती हूँ
चंद खुशियाँ
कुछ दिन और
समेट लूँ...
पर;
मेरे आसमां में
न कोई तारा है
न आफ़ताब...
वह तो रिक्त है
शुन्य सा
भ्रम है
क्षितिज सा...
मेरी कल्पनाओं का
कोई इमरोज नहीं
न ही कोई अन्य
चित्रकार...
कसूर
धड़कनों का नहीं
कसूर नजरों का था
कुछ तुम्हारी
कुछ मेरी...
इन बेवजह
धड़कती धड़कनों को
समेटना तो मुझे
बखूबी आता है...
बरसों से
मदिरा के प्यालों में
डूबो-डूबो कर
इन्हें ही तो
पीती आई हूँ...
हाँ;
इतना तो सच है
आज तुम्हारे ही लिए
मैंने इन शब्दों
को बाँधा है...
किसी
उपनाम से ही सही
तुम्हारे प्रत्युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्हीं पन्नों में...
ताकि
उत्तर-प्रत्युत्तर के
इन्हीं सिलसिलों में
किन्हीं और शब्दों को
बाँध पाऊँ...
(काव्य- संग्रह 'इक- दर्द' से)
Saturday, December 13, 2008
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28 comments:
किसी
उपनाम से ही सही
तुम्हारे प्रत्युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्हीं पन्नों में...
ताकि
उत्तर-प्रत्युत्तर के
इन्हीं सिलसिलों में
किन्हीं और शब्दों को
बाँध पाऊँ...
बहुत ही सुंदर !!!
ताकि
उत्तर-प्रत्युत्तर के
इन्हीं सिलसिलों में
किन्हीं और शब्दों को
बाँध पाऊँ...
बहुत सुंदर
कुछ सवाल अनसुलझे रहे तो अच्छा है......कुछ बैचैनिया जिन्दा रहे तो बेहतर है......कुछ शब्द सबके रहे तो भी अच्छा है
बहुत ही अलग और सुलझी हुई रचना है......
आज तुम्हारे लिए मैंने शब्दों को बांधा है....
बहुत ही व्याकुलता है ....
बहुत ही मार्मिक रचना है......
और सत्य भी जिंदगी के न जाने कौनसे रोस्तों पर ले जाते हैं जिनके बारे में सोचा भी नही होता
अक्षय-मन
हाँ;
मैं चाहती हूँ
सारे आसमां को
आलिंगन में
भर लूँ...
पर;
मेरे आसमां में
न कोई तारा है
न आफ़ताब...
किसी
उपनाम से ही सही
तुम्हारे प्रत्युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्हीं पन्नों में...
वाह बहुत खूब लिखा आपने। साथ ही अनुराग जी के कमेंट से सहमत हूँ।
क्या बात है
मोह लिया इस कविता ने और खास कर इमरोज के जिक्र ने
bahut sundar hai. badhai.
hameshaa ki tarah .......
behtareen
kuch baaten aisi hi hoti hai ..
आज तुम्हारे लिए मैंने शब्दों को बांधा है....
bahut sundar ..
बहुत सुंदर कविता ... दिल को छूने वाली!
bahut khoob. aapka aasman rikt nahi hai. bus badlon ki ot main chhup gaye hain taare. jaldee hi akash saf hoga or taron ki roshani se jagmag ho uthega aapka aangan.
achha likha hai aapne. jeevan se juda, jeevan ke kareeb.
mere blog (meridayari.blogspot.com) par bhi aayen
वाह हरकीरत जी एक और बढिया कविता
समेट लूं सारा आकाश अच्छा बिंब्
harkiratji,
har vyakti kee tarah aapkee kavitayen bhee sanvedit man ka pratibimb hain. par aapkee kavitaon me vah sanvedna itnee saralata se sirf kuch linon aur chand shabdon me hee ghaneebhoot hojatee hai.
jeevan ke aapke aasman ke
sandarbh me ho sakta hai ki ...............vah to rikt hai shoonya saa, bhram hai shitij sa.......! par aapkee kavitayen sanvedna ke vistar ka antarikch hain.anant aur sampoorna.
meree blogger mitr shamaji ka shukragujar hoon ki unse aapkee kavitaon kee tareef sun aapke lekhan tak pahuncha aur aapke samagra to naheen par bahut saare kathya tak pahuncha aur umdaa abhivyakti ka aanand paa saka.
aapke likhe ka aage bhee aise hee intezar hoga.aap aise hee likhtee rahen .
meree badhayiyan .
सुन्दर कविताएँ !
किसी
उपनाम से ही सही
तुम्हारे प्रत्युत्तरों को
ढूंढा करूँगी मैं
इन्हीं पन्नों में...
आपका पुर उम्मीद होना अच्छा लगा, दर्दे दिल की सबसे कारगर दवा उम्मीद ही है .
उम्मीद है उत्तर-प्रत्युत्तर के सिलसिले में आपके शब्द बंधते रहेंगे , साहित्य -सर्जन होता रहेगा.
म.ह.
http://www.mansooralihashmi.blogspot.com
http://www.hashimiyaat.mywebdunia.com
कसूर
धड़कनों का नहीं
कसूर नजरों का था
कुछ तुम्हारी
कुछ मेरी...
बहुत सुन्दर नज़्म ..गहन भाव लिए हुए
उस समय नहीं आये थे तो क्या..अब आ गये. :)
उत्तर प्रत्युत्तर की एक बेहतरीन रचना…………कभी कभी किसी खास के लिए ही कुछ होता है जो रह भी जाता है और कह भी दिया जाता है।
बहुत खूब! बहुत सुन्दर कविता!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है
....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप
.. ....संगीता स्वरूप
. .
खूबसूरत ख्वाहिशें! सुन्दर अभिव्यक्ति।
मंगल कामनाएं आपको !
शुन्य सा
भ्रम है
क्षितिज सा...
बहुत खूब लिखा आपने।
बहुत-बहुत खूबसूरत दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ....
~सादर!!!
speechless
काबिल-ए-गौर है कि मेरी कल्पना को कोई इमरोज नहीं है। कल्पनाओं की सीमाओं को जानने के बावजूद जीवन में सपनों का बने रहना, इसकी सुंदरता भी है और तकलीफ भी। उत्तर-प्रत्युत्तर के सिलसिले में जीवन चलता रहता है। बहुत-बहुत शुक्रिया।
वाह बेहतरीन रचना के लिये बधाई हरकीरत जी।
भावो का सुन्दर समायोजन......
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