इक कोशिश ....
ज़ख़्मी जुबान
मिटटी में नाम लिखती है
कोई जंजीरों की कड़ियाँ तोड़ता है
दर्द की नज़्म लौट आती है समंदर से
दरख्त फूल छिड़क कर
मुहब्बत का ऐलान करते हैं
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
और हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
मुझे उम्मीद है
इस बार उसकी आँखों से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
हरकीरत हीर ..
ज़ख़्मी जुबान
मिटटी में नाम लिखती है
कोई जंजीरों की कड़ियाँ तोड़ता है
दर्द की नज़्म लौट आती है समंदर से
दरख्त फूल छिड़क कर
मुहब्बत का ऐलान करते हैं
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
और हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
मुझे उम्मीद है
इस बार उसकी आँखों से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
हरकीरत हीर ..
आपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 25/05/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ और हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर रख देती हूँ ....
ReplyDeletebahut khoob...
वाह........
ReplyDeleteआँख से आँसू बहेंगे और लब मुस्कुराएंगे.
सादर
अनु
हृदयस्पर्शी ....बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteजख्मी जुबां और दर्द में डूबा दिल ....
ReplyDeleteसिर्फ अपने ही आंसुओं का मोहताज़ होता है ???
शुभकामनायें!
आंसू बहेंगे तो बुत पिघलेगा ....और मुहब्बत जाग उठेगी ...आदरणीय अशोक जी .....
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अहसास.....आंसू बहेंगे तो बुत पिघलेगा ....और मुहब्बत जाग उठेगी ...्क्या बात है हीर जी..एक पिघलता है दूसरा जागृत होता है..
ReplyDeleteइन आंसुओं से बुत तो क्या, पत्थर भी पिघल जायेगा ।
ReplyDeleteसार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteBHARTIY NARI .
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
ReplyDeleteऔर हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे-----
प्रेम का अदभुत अहसास
बहुत सुंदर नज्म
बधाई
आग्रह हैं पढ़े
ओ मेरी सुबह--
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .मन को छू गयी .आभार . कुपोषण और आमिर खान -बाँट रहे अधूरा ज्ञान
ReplyDeleteसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
मैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
ReplyDeleteऔर हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे....
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पत्थर भी पिघल जाएगा.......
बहुत ही बहतरीन रचना !
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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latest postअनुभूति : विविधा
रेट से बूट बनाने की कोशिश ही सारगर्भित है .... मर्मस्पर्शी ।
ReplyDeleteजिंदगी की एक सच्चाई
ReplyDeleteमैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
ReplyDeleteऔर हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
मुझे उम्मीद है
इस बार उसकी आँखें से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
बहुत ही रूहानी कल्पना, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुन्दर कविता....
ReplyDeleteना जाने कितनी कोशिश करते हैं हम उन्हें अपने रंग में रगने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।।
ना जाने कितनी कोशिश करते हैं हम उन्हें अपने रंग में रगने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।।
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeletekya likhti hai aap...main to bas yahi sochti rah jati hoon..sahi mein!
ReplyDeleteतड़प मजबूर कर देगी...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteplz visit and listen-
मेरी बेटी शाम्भवी का कविता पाठ
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
बहुत बढ़िया हीर जी
ReplyDeleteदरख्त फूल छिड़क कर
ReplyDeleteमुहब्बत का ऐलान करते हैं
बहुत सुन्दर
दिल को छू गई सुप्रभात
ReplyDeleteनिःशब्द करती
उसकी आँखों में तो समंदर बस्ता है हीर जी , ये रेत ये प्रतिमा सब वही तो है बस कसीदाकारी आपकी है बहुत सुन्दर नज़्म !
ReplyDeleteमैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
ReplyDeleteऔर हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
मुझे उम्मीद है
इस बार उसकी आँखें से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
कुछ कहने लायक नहीं छोड़ती ये रचना ...
निःशब्द ...
शब्द कहेंगे, भाव बहेंगे।
ReplyDeleteमुहब्बत मुकम्मल हो. सुंदर नज़्म.
ReplyDeleteमैं रेत से एक बुत तैयार करती हूँ
ReplyDeleteऔर हवाओं से कुछ सुर्ख रंग चुराकर
रख देती हूँ उसकी हथेली पे
रेत का बुत ... हवाओं के सुर्ख रंग
और उसकी हथेली
वाह !!! कैसा ये मंज़र है बस नमी ही नमी है हर तरफ ...
सादर
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
मुझे उम्मीद है
ReplyDeleteइस बार उसकी आँखें से
आंसू जरुर बहेंगे ....!!
,,सच उम्मीद कभी नहीं छोडनी चाहिए ..
इस बार उसकी आँखें से...इस पंक्ति में ऑंखें की जगह "आँखों" या 'आँख' कर लीजिये ..
शुक्रिया कविता जी 'आँख' नहीं 'आँखों' होगा .... ध्यान नहीं गया ....
ReplyDeleteबुतों की बुतपरस्ती कब तक
ReplyDeleteकोशिश कामयाब हो
आँसूओं से भी सुख की अभिव्यक्ति होती ही है ।
ReplyDeleteदर्द की नज़्म लौट आती है समंदर से....
ReplyDeleteवाह बहुत खूब.
वाह हीर जी ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteये आँखे तो भीग गयी हैं।
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