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Thursday, April 7, 2011

दर्द की मुस्कुराहटें ......

समां ने कुछ दर्द के टुकड़े काट कर फिर उछालें हैं ...सालों से हथेली पे ठहरी हुई बूंद ठहाके लगा हँस पड़ी है ...नज्में अपने कटे बाजू देख तड़प उठीं हैं ....खुदा भी बड़ा बेरहम है ..हाथ पकड़ कर खींचता है और फिर धकेल देता है दूसरी तरफ .... दर्द धीमें- धीमें मुस्कुराने लगा है अपनी जीत पर ........
ओ बी ओ परिवार ने इस बार 'दोस्ती' शब्द दिया था नज्मों के लिए ....ये नज्में वहीँ से उपजी हैं .....


()

ये सिहरन सी ...
क्यों है अंगों में ?
ये कौन रख गया है
ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
ये नमी कैसी है आँखों में ..?
के मेरा दोस्त भी आज ....

इश्क़ की नज़्म उतार
सजदे में खड़ा है .....!!

(२)

ब चाँद ने भी

मुँह फेर लिया है ...

वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

बस रात चुपचाप रख जाती है

एक टुकडा दर्द का ......!!

(3)

क्या लिखूँ ....?

शब्द भी मुँह मोड़ने लगे हैं

कुछ दिनों में ये अंगुलियाँ भी

कलम का साथ छोड़ देंगी ....

नामुराद दर्द ......

अब हड्डियों में उतर आया है .....!!

(४)

दीवारें तो ...
खामोश थीं बरसों से
फासले भी तक्सीम किये बैठे थे
अय ज़िस्म..... !
अब इसमें तेरा दर्द भी शुमार हो गया
दोस्त .....

अब छोड़ दे तन्हाँ मुझे ......!!

(५)

ह सारे ख़त

जो तूने मुहब्बत में लिखे थे

हाथों में काँपने लगे हैं ....

मैं हथेली में तीलियाँ लिए बैठी हूँ

इससे पहले कि दर्द बेनकाब हो जाये

लगा दूँ आग इनमें ......!!

(६)

लो....

मैंने उतार दी है नज़्म

तेरे नाम की इन आँखों से

टांक दिए हैं सारे गीत मोहब्बत के

अंधेरों की कब्र में ...

आ इस अजनबी रात के सीने पर

गैर सा कोई गीत लिख दें ......!!

(७ )

मजोर हुई काया

अकड़ी हुई अंगुलियाँ ....

नकारे हुए हाथ ....

अब अपनी ही लिखी तहरीरों पर

लगाते हैं ठहाके ....

और दर्द है के कपड़े उतारे बैठा है ......!!

(८)

हैरां न होना
ग़र मैं न लौटूँ ....
सामने की कब्र में ...
जश्न भी है और मुशायरा भी
अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
अय दोस्त.... !
आ अब उतार दे मुझे इस

कब्र में .....!!


97 comments:

  1. बस एक शब्द ...लाज़बाब !!!
    हरेक नज़्म जैसे एक टीस सी दे जाती है....
    फिर भी बार-बार पढ़ने को मजबूर करती है..

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  2. उसके हिस्से में
    कैसे आ गया
    इतना दुःख
    दुखियारी निशा की तरह......!.
    शायद इसीलिये
    दोनों में
    गहरी दोस्ती है
    ...................................
    .....................................
    वह
    जब भी अकेली होती है
    हृदय
    निकल कर आ जाता है बाहर
    जैसे कि प्रसव हुआ हो
    अभी-अभी
    किसी दर्दीले गर्भ का.
    वह
    दवात समझ कर
    रख लेती है उसे
    अपने पास
    पर तभी
    उसकी दवात से
    काली स्याही जैसा दुःख
    कोई फैला जाता है
    उसकी
    ख़ामोशी के कैनवास पर.
    वह
    अपनी आँखों को डुबोती है उसमें
    खींचती है
    कुछ सिसकती रेखाएं
    उसकी सिसकी को
    जो भी सुनता है
    सिर्फ इतना ही कहता है
    "क्या गजब की नज़्म है...........
    ज़रूर 'हीर' ने लिखी होगी".

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया ! हमेशा की तरह...

    ReplyDelete
  4. अब चाँद ने भी
    मुझ फेर लिया है ...
    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ......!!

    dard se hi baaten hoti hain
    dard hi takta hai mujhe
    khidki se bhi her raat wahi dekhta hai....

    ReplyDelete
  5. अब चाँद ने भी

    मुझ फेर लिया है ...

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का ......!!

    हर नज़्म पढ़ कर दर्द उतरता चला गया ...
    बहुत मार्मिक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. क्या लिखूँ ....?

    शब्द भी मुँह मोड़ने लगे हैं

    बस.... यही कहूंगा.. सुंदर... अति सुंदर :)

    ReplyDelete
  7. वह सारे ख़त

    जो तूने मुहब्बत में लिखे थे

    हाथों में काँपने लगे हैं ....

    मैं हथेली में तीलियाँ लिए बैठी हूँ

    इससे पहले कि दर्द बेनकाब हो जाये

    लगा दूँ आग इनमें ......!!.....virah ki intiha......kitane aansu........

    ReplyDelete
  8. इतना दर्द कहां से समेट लाती हैं हरकीरत जी? लगता है जैसे दर्द की सियाही से लिखे शब्द हों...

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  9. tees dard kee tsunamee laaee hai duba gayee aapkee har gazal

    ReplyDelete
  10. बहुत ही सुंदर .....सभी रचनाएँ लाजवाब..... हर गहन अभिव्यक्ति होती है आपके शब्दों में....

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  11. समुद्र की लहरों की तरह उछाल फेंकती हर क्षणिका।

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  12. hrkirat ji bhtrin rchnaaon or bhtrin flsfe ke liyen mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

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  13. अंतरतम से निकले गहन भाव हैं यह .............. आतंरिक स्पंदन को अनियंत्रित कर देने वाले .... अद्भुत !

    ReplyDelete
  14. अब चाँद ने भी
    मुँह फेर लिया है ...
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ......

    नज़्म की खिडकियों से झांकता चाँद भी
    अमावस की झलक दे रहा है
    और
    नामुराद दर्द ......
    अब हड्डियों में उतर आया है .....
    कमज़ोर हुई काया,
    अकड़ी हुई उंगलियाँ ,,

    मोहतरमा ,,,
    कलम के साथ साथ
    केल्शियम बहुत ज़रूरी है आजकल (:

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया ! हमेशा की तरह...

    ReplyDelete
  16. लो.... मैंने उतार दी है नज़्म
    तेरे नाम की इन आँखों से
    टांक दिए हैं सारे गीत मोहब्बत के
    अंधेरों की कब्र में ... आ इस अजनबी रात के सीने पर
    गैर सा कोई गीत लिख दें ......!!

    bahut khoob !

    ReplyDelete
  17. हाय रब्बा, ऐणा दर्द...

    वॉलनी आएंटमेंट भिजवावां कि...

    हुण साडे कोलों ए उम्मीद ते करो न कि तुआडे लिखे दियां तारीफ़ा कर कर के साडा मुंह ही दर्द करन लग जाए...

    जय हिंद...

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  18. यह दर्द ...और ये शब्‍द ...किसी एक की तारीफ करना मुश्किल है, सभी एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं ।

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  19. हरकीरत जी , ' सिरहन ' ये शब्द सिहरन होता है ...
    बेहद खूबसूरत है नज्म ...कब्र में जश्न ..सच कहा ..जश्न के बिना आदमी की गुजर होती नहीं ...अपने जैसों के लिए ग़मों की रात ही जश्न बनी बनी

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  20. आपकी इन नज्मों को पढ़कर ग़ालिब का यह शेर याद आ गया---
    मेरे हिस्से में गम गर इतने थे.
    दिल भी यारब कई दिए होते.

    ReplyDelete
  21. ये सिरहन सी ...
    क्यों है अंगों में ?
    ये कौन रख गया है
    ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
    ये नमी कैसी है आँखों में ..?
    के मेरा दोस्त भी आज ....

    इश्क़ की नज़्म उतार
    सजदे में खड़ा है
    ..
    ..
    शब्द भी मुँह मोड़ने लगे हैं

    कुछ दिनों में ये अंगुलियाँ भी

    कलम का साथ छोड़ देंगी ....

    नामुराद दर्द ......

    अब हड्डियों में उतर आया है
    ..
    ..
    हीर जी आपके शब्द और आपके भाव मेरे दिल के बहुत करीब होते हैं....लगता है जैसे कोई मेरे दर्द को उघाड़ रहा है
    शायद इसीलिए आपको पढना हमेशा सुकून देता है !

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  22. मौन भी हूँ और निशब्द भी……………………

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  23. @ आद दानिश जी,
    अब दर्द केल्शियम की हद पार कर चुका है .....):

    @ खुशदीप जी ,
    एह सारे एक्सपेरिमेंट तां कर लय.....):

    @ शारदा जी दर्द ने शब्द भी भुला दिए ....):

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  24. आप तो जो भी लिखती हैं सीधा दिल की तह तक जाता है.हर नज़्म लाजबाब है .दुसरी और तीसरी बहुत ज्यादा पसंद आईं.

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  25. अब चाँद ने भी

    मुझ फेर लिया है

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का !!

    हर नज़्म पढ़ कर दर्द उतरता चला गया
    मार्मिक प्रस्तुति

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  26. रूह की गहराई से निकली उम्दा नज्में , पता नहीं आप इतना गहराई में जाकर फिर निकलती कैसे और कितने समय में हो . इस बात पर ब्लोगर्स को शोध करना चाहिए . मै बापुरा बुडन डरा रहा किनारे बैठ .

    ReplyDelete
  27. नामुराद दर्द ......
    अब हड्डियों में उतर आया है .....!!

    कुछ लेते क्यों नहीं !

    अय ज़िस्म..... !
    अब इसमें तेरा दर्द भी शुमार हो गया

    ज़िस्म कब मन से जुदा हुआ है ।

    कमजोर हुई काया

    अकड़ी हुई अंगुलियाँ ....

    च्यवनप्राश कैसा रहेगा ।
    वैसे दानिश साहब की प्रेस्क्रिप्शन भी सही है ।

    सामने की कब्र में ...
    जश्न भी है और मुशायरा भी
    अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
    अय दोस्त.... !
    आ अब उतार दे मुझे इस

    कब्र में .....!!

    तौबा तौबा , अब कब्रिस्तान में भी मुशायरा होने लगा ।

    वाह , बहुत खूब ।

    आपकी नज़्में दर्द को भी ग्लेमेराइज कर देती हैं ।

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  28. डॉ साहब ......

    ):):

    @ अब कब्रिस्तान में भी मुशायरा होने लगा...

    यूँ तो महफ़िल में कमी कोई न थी,बस
    संग तेरा होता तो मजा कुछ और होता

    ReplyDelete
  29. एक से बढ़ कर एक! मौन होकर दर्द सोखने के लिए...

    ReplyDelete
  30. जब 'पीड़ा' प्रेम से पैदा होती है
    तब निकलती हर 'आह' में गान सुनाई देता है.
    आपके भावों की तरणी बेतरतीब बह ज़रूर रही है लेकिन गज़ब का उफान है, हम तो बह गये.

    ReplyDelete
  31. यूँ तो महफ़िल में कमी कोई न थी,बस
    संग तेरा होता तो मजा कुछ और होता.

    ..... आपका हर अंदाज़ शायराना है.

    ReplyDelete
  32. प्रतुल जी ...
    लीजिये अभी -अभी अमित जी के ब्लॉग पे आपको याद करके आई हूँ और आप यहाँ ....डॉ साहब के साथ कब्र की महफ़िल में उतरने को तैयार हैं ....

    आपके लिए अर्ज है ....

    ये कब्र ही है अंतत: अपना मकां इक जमाने से
    ये और बात है के खौफ़ रहा सबको इसमें उतरने से

    ReplyDelete
  33. कमजोर हुई काया

    अकड़ी हुई अंगुलियाँ ....

    नकारे हुए हाथ ....

    अब अपनी ही लिखी तहरीरों पर

    लगाते हैं ठहाके ....

    और दर्द है के कपड़े उतारे बैठा है ......!!

    लाजवाब। हर नज्म एक से बढ़कर एक है।

    ReplyDelete
  34. कष्टदायक , दर्द में डूबी सी ....

    ReplyDelete
  35. ओह ! आपका शायराना अंदाज़ भी ग़ज़ब है ।
    आज ही शायरी की किताब खरीदते हैं । :)

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  36. aaj to bas gazab hi kar di aapne....kya kahoon....

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  37. This comment has been removed by the author.

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  38. दर्द को दर्द से रूबरू होने दें
    दर्द खुद दर्द की दास्तान लिखेगा.

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  39. आदरणीय हरकीरत जी आप कभी तो थोड़ा खराब लिख दिया करिये |बहुत खूबसूरत नज्में बधाई और शुभकामनाएं |

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  40. आ इस अजनबी रात के सीने पर
    गैर सा कोई गीत लिख दें ......!!

    - bemisaal.

    ek pustak ka naam yaad aa gaya........ dard likhon main kiske naam......

    ReplyDelete
  41. मानवीय दर्द .....बेहद सुन्दर ..

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  42. अब चाँद ने भी
    मुझ फेर लिया है ...
    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ......!!

    हर नज़्म ज़िन्दगी की संवेदना को जी रही है !पढ़ने के बाद जीवन को छू कर महसूस करने जैसा अहसास होता है !
    आपकी रचनाएँ मानवीय संवेदना की अनकही दास्ताँ हैं !
    धन्यवाद !

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  43. वही कहना है हमेशा की तरह...लाजवाब
    सभी के लिए..बस वही कहना है

    शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  44. yekse yek badhkar sunder sabse jaada achhi pahali najm lagi..

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  45. अब चाँद ने भी
    मुझ फेर लिया है ...
    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ......!!
    सुंदर... अति सुंदर ....

    ReplyDelete
  46. नामुराद दर्द ......

    अब हड्डियों में उतर आया है .....!!
    ------------------------

    अय दोस्त.... !
    आ अब उतार दे मुझे इस
    कब्र में .....!!

    ......................... यहीं से तो दर्द कविता (नज्म) में उतरता है! सभी रचनाएँ गहराई लिए हुए हैं।

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  47. मैंने उतार दी है नज़्म
    तेरे नाम की इन आँखों से
    टांक दिए हैं सारे गीत मोहब्बत के
    अंधेरों की कब्र में
    आ इस अजनबी रात के सीने पर
    गैर सा कोई गीत लिख दें

    वाह, क्या ख़ूब लिखती हैं आप।
    पढ़कर लगता है, यह तो मेरी ही व्यथा-कथा है।

    ReplyDelete
  48. bahut khoob sach main laazabo..

    अब चाँद ने भी

    मुँह फेर लिया है ...

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का ......!!

    kya likha hain ye to....
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

    ReplyDelete
  49. आपके ब्लॉग पर आकर दर्द की इस शानदार अभिव्यक्ति से स्तब्ध हूँ.शब्द नहीं मिल रहे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए.आपकी कलम को सलाम.
    आप एक बार मेरे ब्लॉग पर आईं थीं.बहुत अच्छा लगा.मेरी पोस्ट 'वन्दे वाणी विनयाकौ' पर आपका इंतजार है.

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  50. aadarneey heer ji
    सादर नमन
    'दर्द धीमे धीमे मुस्कुराने लगा है'..... ."

    सचमुच! आपके लफ़्ज़ों में ढलकर अश्क भी मुस्कुराने लगते हैं....
    "ज़िंदगी का फलसफा समझाने लगा है.
    'दर्द धीमे धीमे मुस्कुराने लगा है'..... ."
    सादर...

    ReplyDelete
  51. वह सारे ख़त

    जो तूने मुहब्बत में लिखे थे

    हाथों में काँपने लगे हैं ....

    मैं हथेली में तीलियाँ लिए बैठी हूँ

    इससे पहले कि दर्द बेनकाब हो जाये

    लगा दूँ आग इनमें ......!!
    हरकीरत जी बहुत सुन्दर रचनाएँ क्षणिकाएं ,सुन्दर शब्द ,हिंदी का अच्छा ज्ञान संजोया है आप ने ,कुछ दर्द दिल में उतर कर नजरों में समाया रहता है और फिर दर्द बिना आहट के भी हमें बहुत सिखाता है शुभ कामनाएं आयें हमें भी अपना समर्थन सुझाव दें न
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

    ReplyDelete
  52. "E jism ab isme dard bhi shumaar ho gyaa hai ,faasle to takseem kiye baithhe the "-kyaa andaaze byaan hai huzoor kaa -gaalib ne kisi jhaunk me nahin khaa hogaa -kehten hain ki gaalib kaa hai andaaze byaan aur ,le aayenge baazaar se ....
    veerubhai .

    ReplyDelete
  53. दर्द निचोड़ा आंसू निकले,आंसू निचोड़ा लहू बन गया,
    ये तेरे रूह की तलाश थी,जिस तलाश में खुद लाश सा हो गया ।

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  54. लिखना चाह रहा हूं, पर लिखने की कोशिश में अंगुलियां लिख देती हैं आपकी नज्म या फिर हरकीरत 'हीर', थोड़ी देर प्रतीक्षा के बाद भी जब मैं अपने में नहीं आ सका तो सोचा जो लिखा जा रहा है वही लिख दूँ, आखिर बात अभिव्यक्ति की है, उद्देश्य सराहना का है ।

    ReplyDelete
  55. वह सारे ख़त
    जो तूने मुहब्बत में लिखे थे
    हाथों में काँपने लगे हैं ....
    मैं हथेली में तीलियाँ लिए बैठी हूँ
    इससे पहले कि दर्द बेनकाब हो जाये
    लगा दूँ आग इनमें
    हरकीरत जी, हर नज़्म उम्दा है, ये खास तौर पर पसंद आई.

    ReplyDelete
  56. @(३)कविता अंतर्मन को छू गयी,अपने अहसास साझा करने का आभार !

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  57. यह रचनाएं तो मुझे भी अच्छी लगी...बधाई.

    वैसे आपकी एक कविता हमसफ़र पत्र में तो छपी है...प्यारी सी.

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  58. अक्क्षिता जी ,
    अरे वाह ......सच्ची .....
    मुझे तो पता भी नहीं ये पात्र खान से छपता है संपादक कौन हैं ....
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया बताने के लिते ...कौन सी नज़्म है ....?

    ReplyDelete
  59. आदरणीया हीर जी ,
    सभी नज्में... एक से बढ़कर एक .....दर्द से भरी ..
    बस महसूसता ही हूँ ...

    ReplyDelete
  60. अब चाँद ने भी

    मुँह फेर लिया है ...

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का ......!!
    aapki rachna har dafe kamaal ki hi hoti hai jo man ko khushi aur sochne ki sthiti ko duvidha me daal deti ,kya kahe tarif me ,laazwaab

    ReplyDelete
  61. हमेशा की तरह फिर लाजवाब रचना।
    कहां से चुन-चुन कर लाती हैं शब्द।
    बेहद दर्द छुपा है रचना में।

    ReplyDelete
  62. बड़े दिनों बाद आई इस राह पर, बड़ी सुंदर कविताएं

    ReplyDelete
  63. kuchek post par ant-ant me jane pe.........hi maja aa ta hai...

    kyon-ke post ke gazal pe....
    tippaniyon ka bahar cha jata hai...

    pranam.

    ReplyDelete
  64. कमाल का शब्द विन्यास है

    ReplyDelete
  65. आदरणीया हीर जी

    सादर सस्नेहाभिवादन !
    ………!
    ………!
    * वैशाखी पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! *
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  66. चांद ने मुह फेर लिया आंखों में नमी है। शरीर में तेरा दर्द शामिल होकर दर्द हडिडयों में उतर आया है। या तो कोई गैर सा गीत लिखदे या फिर तीलियां लिये बैठी ही हूं। अन्धेरे नज्मों से भरे है न लौटॅंू तो हैरान मत होना न ही इन्तजार करना ।

    ReplyDelete
  67. ये सिहरन सी ...
    क्यों है अंगों में ?
    ये कौन रख गया है
    ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
    ये नमी कैसी है आँखों में ..?
    के मेरा दोस्त भी आज ...

    बहुत सुंदर पोस्ट

    ReplyDelete
  68. हीर जी

    अरसे बाद ब्लॉग पर कमेन्ट करने बैठा तो आपके ब्लॉग कि याद आ गयी.....सरपट आ गए आपके ब्लॉग पर, आपकी नज्में एक अनकहा जादू हैं......!



    ये सिहरन सी ...
    क्यों है अंगों में ?
    ये कौन रख गया है
    ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
    ये नमी कैसी है आँखों में ..?
    के मेरा दोस्त भी आज ....

    इश्क़ की नज़्म उतार
    सजदे में खड़ा है .....!!

    .......हम इस नज़्म के सजदे में खड़े हैं.

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  69. लो....

    मैंने उतार दी है नज़्म


    तेरे नाम की इन आँखों से


    टांक दिए हैं सारे गीत मोहब्बत के


    अंधेरों की कब्र में ...

    आ इस अजनबी रात के सीने पर


    गैर सा कोई गीत लिख दें ......!!
    bahut khoob Harkeerat ji.

    ReplyDelete
  70. हैरां न होना
    ग़र मैं न लौटूँ ....
    सामने की कब्र में ...
    जश्न भी है और मुशायरा भी
    अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
    अय दोस्त.... !
    आ अब उतार दे मुझे इस

    कब्र में .....!!

    love this one......

    ReplyDelete
  71. एक एक शब्द दर्द का एहसास दिलाते हुए भी दर्द को सेलीब्रेट करने का साहस और निमंत्रण भी .
    कमाल की अनुभूति !

    ReplyDelete
  72. अब चाँद ने भी
    मुँह फेर लिया है ...
    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ..

    सभी क्षणिकाएं लाजवाब....

    ReplyDelete
  73. आपने मेरे ब्लॉग पर आकर अपनी शानदार टिपण्णी से मुझे कृतार्थ किया.अब आपको पुनः बुलावा है
    राम-जन्म दिन के शुभावसर पर .रामजन्म -आध्यात्मिक चिंतन-१ मेरी नई पोस्ट है.आशा है आप अवश्य आकर मेरा हौंसला अफजाई करेंगीं.

    ReplyDelete
  74. इतना दर्द कहाँ से लाती हैं हीर जी.
    बहुत बेदर्द है ये दर्द,
    जान ले लेता है.

    बस इतना ही कहूँगा

    थोड़ा दर्द मैं भी ओक में भर लूं,
    मेरे भी कुछ ज़ख्म हो गए है जवां

    ReplyDelete
  75. किसी इक नज़्म के बारे में कहना मुनासिब नहीं होगा........हर नज़्म नज़्म तारा है चमकता है अपनी जगह.................वाह!!!

    ReplyDelete
  76. हैरां न होना
    ग़र मैं न लौटूँ ....
    सामने की कब्र में ...
    जश्न भी है और मुशायरा भी
    अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
    अय दोस्त.... !
    आ अब उतार दे मुझे इस

    कब्र में .....!
    harkeerath ji bahut dil se likha hain aapne .
    aapka ek comment 30 jan. ka n jane kaise mere padhne se rah gaya tha jisme aapne bal kavita bhejne ke sambandh me mujhse kaha tha .is vishay me jaroor batayen .shubhkamnaon ke sath ..

    ReplyDelete
  77. अब चाँद ने भी

    मुँह फेर लिया है ...

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का ......
    - वैसे तो सभी क्षणिकाएँ अलग-अलग अन्दाज़ लिये हुए हैं पर हरकीरत जी ये पंक्तियाँ बहुत गहराई तक भ्गो देती हैं ।

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  78. अब चाँद ने भी
    मुँह फेर लिया है ... वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का.......... Harkirat sahib aapki har nazm dil se likhi gayi nazm hai aur jab mine inko pdha to ye nazme'n dil ki gahraiyo'n tak pahunch gayi....Ek rachnakar yadi dil tak pahuchne mein kamyab hota hai to ye uski kalam aur ahsaas ki jeet hai aur aap ismen safal rahi hain... Dil ki gahraiyo'n se likhi gayi sundar rachnaye'n Badhai

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  79. दीदी देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हू ....जिंदगी की इस होड में हर तरफ शायद मै बहुत समय नहीं दे पाती हू .....

    अब चाँद ने भी
    मुँह फेर लिया है ...
    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ......!!

    आपकी हर नज्म लाजवाब है ....

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  80. सामने की कब्र में ...
    जश्न भी है और मुशायरा भी
    अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
    अय दोस्त.... !
    आ अब उतार दे मुझे इस

    कब्र में .....!!
    दर्द ही दर्द है इस्क ही इश्क है ।

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  81. अब चाँद ने भी
    मुँह फेर लिया है ...
    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर
    बस रात चुपचाप रख जाती है
    एक टुकडा दर्द का ......

    bahut hi gahrai hai har nazm men. sabhi bahut hi sunder aur bhavon se bhari hai............. sunder prastuti.

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  82. आप जब जब भी मेरे ब्लॉग पर आतीं हैं,धन्य कर देतीं है मुझे अपने खूबसूरत अंदाज से.मेरा मनोबल बढ़ा देती हैं,दर्द को तो मानो कोसों दूर भगा देतीं हैं.
    अब आपका इंतजार है मेरी पोस्ट रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन -२ पर,जो मैंने परसों जारी की है.कृपया,आइयेगा जरूर,भूलिएगा नहीं.

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  83. aafreen. very fine writings.
    सच-खंड श्री हुजुर साहिब दी शान विच ;-
    साहिब तेरे हुजुर विच, आवन सीस निवाण |
    पीर, पैगम्बर, बादशाह, फक्कर ते विद्वान ||
    हुजुर-साहिब दी शान है, बख्शन, भुल्लनहार |
    सबै एहो आखदे, तू दाता दातार ||
    बन्दा अपने-आप नूँ, समझे लक्ख होशियार |
    हुजुर-साहिब दे हुकुम तों, जा सकदा नहीं बाहर ||

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  84. MAM PAHLI BAR AAPKE BLOG PAR AAYA HUN. . . KAHNE KE LIYE LAFZ NAHI MIL RAHE HAIN,.. . . . . . . . SUNDAR RACHNA. . . . . . AGAR MUMKIN HO TO EK BAAR MERE BLOG PAR AAYEN. . . DHANYWAAD. . . . . . .JAI HIND JAI BHARAT

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  85. बहुत अच्छी प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  86. Sunday, April 24, 2011
    तवायफ़ की इक रात ....

    तवायफ़ की इक रात ....


    मैं फिर .....
    अनुवाद हो गई थी
    उसी तरह , जिस तरह
    तुम उतार कर फेंक गए थे मुझे
    अन्दर बहुत कुछ तिड़का था
    ग़ुम गए थे सारे हर्फ़ ....


    रात मुट्ठी में
    राज़ लिए बैठी रही ...
    जो तुम मेरी देह की
    समीक्षा करते वक़्त
    एक-एक कर खोलते रहे थे
    हवा दर्द की आवाजें निगलती ...
    जर्द, स्याह, सफ़ेद रंग आग चाटते
    कई गुनाह मेरी आहों में
    चुपचाप दफ़्न होते रहे ......


    बस ये .....
    बिस्तर पर पड़ा जनेऊ
    खिलखिला कर हँसता रहा
    जो तुमने मुझे छूने से पहले
    उतार कर रख दिया था
    सिरहाने तले ......!!

    Posted by हरकीरत ' हीर' at 1:53 PM 124 comments

    Thursday, April 7, 2011
    दर्द की मुस्कुराहटें ......

    आसमां ने कुछ दर्द के टुकड़े काट कर फिर उछालें हैं ...सालों से हथेली पे ठहरी हुई बूंद ठहाके लगा हँस पड़ी है ...नज्में अपने कटे बाजू देख तड़प उठीं हैं ....खुदा भी बड़ा बेरहम है ..हाथ पकड़ कर खींचता है और फिर धकेल देता है दूसरी तरफ .... दर्द धीमें- धीमें मुस्कुराने लगा है अपनी जीत पर ........
    ओ बी ओ परिवार ने इस बार 'दोस्ती' शब्द दिया था नज्मों के लिए ....ये नज्में वहीँ से उपजी हैं .....


    (१)

    ये सिहरन सी ...
    क्यों है अंगों में ?
    ये कौन रख गया है
    ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
    ये नमी कैसी है आँखों में ..?
    के मेरा दोस्त भी आज ....

    इश्क़ की नज़्म उतार
    सजदे में खड़ा है .....!!

    (२)

    अब चाँद ने भी

    मुँह फेर लिया है ...

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का ......!!

    (3)

    क्या लिखूँ ....?

    शब्द भी मुँह मोड़ने लगे हैं

    कुछ दिनों में ये अंगुलियाँ भी

    कलम का साथ छोड़ देंगी ....

    नामुराद दर्द ......

    अब हड्डियों में उतर आया है .....!!

    har abhivyakti laajawab!!!!!!!!!

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  87. तवायफ़ की इक रात ....


    मैं फिर .....
    अनुवाद हो गई थी
    उसी तरह , जिस तरह
    तुम उतार कर फेंक गए थे मुझे
    अन्दर बहुत कुछ तिड़का था
    ग़ुम गए थे सारे हर्फ़ ....


    रात मुट्ठी में
    राज़ लिए बैठी रही ...
    जो तुम मेरी देह की
    समीक्षा करते वक़्त
    एक-एक कर खोलते रहे थे
    हवा दर्द की आवाजें निगलती ...
    जर्द, स्याह, सफ़ेद रंग आग चाटते
    कई गुनाह मेरी आहों में
    चुपचाप दफ़्न होते रहे ......


    बस ये .....
    बिस्तर पर पड़ा जनेऊ
    खिलखिला कर हँसता रहा
    जो तुमने मुझे छूने से पहले
    उतार कर रख दिया था
    सिरहाने तले ......!!


    Posted by हरकीरत ' हीर' at 1:53 PM 125 comments

    Thursday, April 7, 2011
    दर्द की मुस्कुराहटें ......

    आसमां ने कुछ दर्द के टुकड़े काट कर फिर उछालें हैं ...सालों से हथेली पे ठहरी हुई बूंद ठहाके लगा हँस पड़ी है ...नज्में अपने कटे बाजू देख तड़प उठीं हैं ....खुदा भी बड़ा बेरहम है ..हाथ पकड़ कर खींचता है और फिर धकेल देता है दूसरी तरफ .... दर्द धीमें- धीमें मुस्कुराने लगा है अपनी जीत पर ........
    ओ बी ओ परिवार ने इस बार 'दोस्ती' शब्द दिया था नज्मों के लिए ....ये नज्में वहीँ से उपजी हैं .....


    (१)


    ये सिहरन सी ...
    क्यों है अंगों में ?
    ये कौन रख गया है
    ज़िस्म पर बर्फ के टुकड़े ?
    ये नमी कैसी है आँखों में ..?
    के मेरा दोस्त भी आज ....

    इश्क़ की नज़्म उतार
    सजदे में खड़ा है .....!!

    (२)

    अब चाँद ने भी

    मुँह फेर लिया है ...

    वह नहीं आता अब मेरी खिड़की पर

    बस रात चुपचाप रख जाती है

    एक टुकडा दर्द का ......!!

    उमेश मदहोशी जी के ब्‍लॉग से मिला आप का पता
    और मिला ये दर्द का सिलसिला । क्‍या बात ।
    दिल को छू लिया हर शब्‍द ने । ये शब्‍द लिए अपने अपने हिस्‍से में बंटा दर्द।

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  88. चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !
    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  89. हरकीरत हीर जी
    सादर सस्नेह अभिवादन !

    रचनाएं आपकी कितनी कितनी बार पढ़ी हैं … एक बार और पढ़ कर जा रहा हूं

    आपकी अनुपस्थिति में मेरी उपस्थिति दर्ज़ कर लीजिएगा … :)

    हार्दिक शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  90. उफ़! येह नन्ही सी जान और इतना दर्द समेटे हुए पिछली पोस्ट पर"जनेऊ"की बहस सुन कर भाग आया|जैसे कोई गांव का शेहर में आ जाता है ,और पढ़े -लिखों में कोई अनपढ़ बस वैसा ही हाल मेरा है |वैसे दूसरी बात सच है |पर फिर भी कुछ देर बैठना चाहता था, इस महफ़िल में |
    "हैरां न होना
    ग़र मैं न लौटूँ ....
    सामने की कब्र में ...
    जश्न भी है और मुशायरा भी
    अँधेरे, नज्मों से भरे पड़े हैं
    अय दोस्त.... !
    आ अब उतार दे मुझे इस

    कब्र में .....!!"बस अब चलता हूँ ...

    खुश रहो,स्वस्थ रहो ,दर्द से दुरी बनाओ |
    आशीर्वाद!
    अशोक सलूजा !

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  91. वेसे तो हर रचना बहुत अच्छी लगी.......बहुत खूब लिखती हैं आप...
    भावनाएं तो आपकी कलम के निकलती हैं तो शब्द बन जाती है....
    "....बस रात चुप चाप रख जाती है एक दर्द का टुकड़ा ......"
    ये पंक्ति तो दिल में चोट दे गयी!!

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  92. Pannon m, bahut kuchh likha h,

    Dil ki garaiyon, m Utar jata h.

    Na Chah kar Bhi rukana parta h,

    un words par jo Dil ke Karib lagte H.

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