है इश्क़ खुदा , इश्क़ ही रब्ब है , इश्क़ ही शीरी-फरहाद बन जाता
कह दो जो दो लफ्ज़ इश्क़ के , हर ज़ख्म दर्द का खुद सिल जाता
१४ फ़रवरी इश्क़ का दिन है ...मोहब्बत का दिन है ...शीरी का दिन है ...फरहाद का दिन है ...हीर-रांझे का दिन है ...सोहणी - महिवाल का दिन है ......तो आइये इस दिन का जश्न मनाते हैं इस नज़्म के साथ ......
आज की नज़्म इस मोहब्बत के नाम .......
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......
मैं बीज हूँ मोहब्बत का ....
तू इश्क़ की ज़मीं पे उगा जरा
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......
तू गुनगुना के मुझे देख जरा
मैं सारी हयात तेरे साथ चलूं
तू महबूब मेरा बन तो जरा
मैं ख़त हूँ इक प्यार भरा,मेरी
इक-इक सतर तू पढ़ तो जरा
मैंने गुंध लिया है इसे आटे में
तू कोई रोटी इश्क़ की उतार जरा
आ बुरकी इश्क़ की मिलकर तोडें
कर अना दिल से हम दूर जरा
मैं चिराग़ हूँ हीर की मज़ार का
परवाना बन तू जल तो जरा
मैं आग हूँ , इक शरमाई हुई ........
तू इस बुत से नकाब उतार जरा ..
मत पढ़ इश्क़ का फतवा जालिम
ये जात खुदा की मान जरा ...
इश्क़ नहीं बसता जिस दिल में
वो हैवान का घर ये मान जरा
मैं चनाब हूँ , मैं रबाब हूँ ...
मैं हुस्नो - इल्म का शबाब हूँ
मैं मुहब्बत का सुर्ख गुलाब हूँ
तू खुश्बुएं लुटा के देख जरा .....
इक ज़ख्म हूँ मैं दर्द भरा ...
तू इश्क़ के धागे से सी जरा
हर दर्द रिस कर बह जायेगा
तू इश्क़ की दवा लगा तो जरा
इक रात हूँ मैं इश्क़ भरी
तू द्वार पे दस्तक दे तो जरा
इस स्याह रात की हथेली पर
कोई रंग हिना का उतार जरा
मैं सोहणी का कच्चा घडा भी हूँ
तू इश्क़ के दरिया में डूब जरा
इस इश्क़ की इबादत को कभी
तू बन के राँझा पढ़ तो जरा
मैं महक भी हूँ ,मैं आब भी हूँ
मैं नींद तेरी का ख्वाब भी हूँ
मेरे लब पे रख के लब कभी
तू जाम इश्क़ का उतार जरा
मैं बीज हूँ इक मोहब्बत का
तू इश्क़ की ज़मीं पे उगा जरा
मैं गीत हूँ , तेरे इश्क़ का ......
तू गुनगुना के मुझे देख जरा .....
bahut sundar geet hai..
ReplyDeleteमैं सोहणी का कच्चा घडा भी हूँ
ReplyDeleteतू इश्क़ के दरिया में डूब जरा
इस इश्क़ की इबादत को कभी
तू बन के राँझा पढ़ तो जरा
मैं महक भी हूँ ,मैं आब भी हूँ
मैं नींद तेरी का ख्वाब भी हूँ
मेरे लब पे रख के लब कभी
तू जाम इश्क़ का उतार जरा
kuch der tak maine ise gungunane ki koshish ki , sohni ka nasha hai aisa ki puchiye mat...
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ReplyDeleteवाह जी !! क्या बात है...
ReplyDeleteकोशिश कर रही हूँ गुनगुनाने की ... :)
मैं बीज हूँ मोहब्बत का ....
ReplyDeleteतू इश्क़ की ज़मीं पे उगा जरा
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......
तू गुनगुना के मुझे देख जरा
क्या बात है हरकीरत जी. बहुत सुन्दर. रश्मि जी की तरह मेरा भी मन हुआ, इसे गुनगुनाने का.
तू गुनगुना मैं गीत हूँ
ReplyDeleteमुझे चूम ले तेरा मीत हूँ
..वाह! वाह! तबियत प्रसन्न करने वाले भाव हैं।
yeh ishk kambakht cheez hi aisi hai...bahut sundar.
ReplyDeleteheer ji bahut hi sunder prastuti...
ReplyDeleteहीर जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति... सामयिक ..वेलेंटाइन दे पर .. उम्दा ... गीत
ReplyDeleteवेलेंटाइन डे के दिन इश्क में पगी आपकी ये नज़्म पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteप्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteउम्दा गीत!
ReplyDeleteइश्क की फितरत बहुत नाज़ुक है.
ReplyDeleteआप का गीत भी बहुत ही नाज़ुक है.
इक ज़ख्म हूँ मैं दर्द भरा ...
तू इश्क़ के धागे से सी जरा
हर दर्द रिस कर बह जायेगा
तू इश्क़ की दवा लगा तो जरा
बहुत ही उम्दा.आपकी कलम को ढेरों सलाम.
मैं ख़त हूँ कोई प्यार भरा एक एक सतर तू पढ़ तो जरा...मैं बीज हूँ मुहब्बत का ...
ReplyDeleteक्या कहें ...डूब रहे हैं उतर रहे हैं ...
बेहद खूबसूरत गीत ...
मैं गीत कोई गा लेती जो तू गुनगुना जरा लेता
मैं हंस देती खिलखिलाकर जो तू मुस्कुरा जरा लेता ...
मैं गीत हूँ , तेरे इश्क़ का ......
ReplyDeleteतू गुनगुना के मुझे देख जरा .....
bahut hi sunder bhav
मैं बीज हूँ मोहब्बत का ....
ReplyDeleteतू इश्क़ की ज़मीं पे उगा जरा
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......
तू गुनगुना के मुझे देख जरा
ise kahte prem ki abhivyakti vh bhi prem divas pe badhai
तू गुनगुना मैं गीत हूँ
ReplyDeleteमुझे चूम ले तेरा मीत हूँ
yeh ishk kambakht cheez hi aisi hai...bahut sundar.
हीर जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
गुनगुनाने को मजबूर करता है आपका गीत\ बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहीर जी ,बहुत खूबसूरती से एक-एक शब्दों को पिरोया हे और इस शब्द रूपी माला के द्वारा आपका हार्दिक स्वागत करती हु ---बधाइयाँ !!!
ReplyDeleteपटना साहिब की धार्मिक -यात्रा पर आकर इज्जत बक्शे |
aapki style se hatkar hai ye nazm heer ji....aur kya khoob hai.....beautiful !
ReplyDeletesachmuch geet hai...goonj raha hai ab tak....
मैं महक भी हूँ ,मैं आब भी हूँ
ReplyDeleteमैं नींद तेरी का ख्वाब भी हूँ
मेरे लब पे रख के लब कभी
तू जाम इश्क़ का उतार जरा
itna pyra darshati rachna..:)
happy valentine's day to all!!
bahut hi sunder geet
ReplyDelete..
प्रेम दिवस की सुन्दर अभिव्यक्ति………गुनगुनाती हुई……………प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ!
ReplyDeletebaut sunder geet rachna.
ReplyDeletebahut hi khoob
ReplyDeletetaarif k liye shabad kam pad rahe hain
sach main bahut hi shandar likha hain
Bahut hi pyari geet hai.
ReplyDeletebadhai.
hamare angan me bhi padhar kar hame kuchh gyan dene ka nek kaz kare. :) :)
sukriya.
खूब.. बहुत ही सुन्दर गीत. आज के दिन प्रेम की सम्पूर्ण बात की है आपने. बधाई
ReplyDeleteमैं चनाब हूँ , मैं रबाब हूँ ...
ReplyDeleteमैं हुस्नो - इल्म का शबाब हूँ
मैं मुहब्बत का इक गुलाब हूँ
तू खुश्बुएं लुटा के देख जरा .....
पर हर कोई इन खुशबूओं को लुटाना नहीं जानता ....मर्मस्पर्शी ...
इश्क के दिन की एक सटीक रचना। इश्क के इस नज्म में एहसासों की रंगत ने आज के दिन को और खूबसूरत कर दिया। ज़िंदगी की जद्दो ज़हद में दिल के कोमल अहसासों को काग़ज़ पर उतार पाना आसान काम नहीं, इश्क के दिन की आपको शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteमैं बीज हूँ मोहब्बत का ....
ReplyDeleteतू इश्क़ की ज़मीं पे उगा जरा
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......
तू गुनगुना के मुझे देख जरा
वाह ...लाजवाब कर दिया है आपकी इन पंक्तियों ने इनमें तो वो जादू है जो हर एक को गुनगुनाने पर मजबूर कर रहा है ।
यह गुनगुनाहट बनी रहे।
ReplyDeleteहीर जी,
ReplyDeleteमुहब्बत की महक है इस नज़्म में.....इश्क इबादत से कम नहीं है......बहुत ही खूबसूरत नज्म......खुदा आपको मुहब्बत से नवाज़े....आमीन|
हीर जी !
ReplyDeleteमहोहारी गीत जिसे गुनगुनाने को जी चाहे.
valantaain day par sunder prem geet
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना, आभार.
ReplyDeletedard bhari geet ...aap ki koyi ek aur kaveeta..chhatisgadh ke kisi patra men chapa tha...dinank..11-02-2011 (bol note karake rakha hun...abhi yaad nahi aa raha hai )..bahut-bahut badhai..aap ko..aur bhi mere post par bhi aane aur utsah badhane ke liye...
ReplyDeletemain geet hu tere ishq ka.....
ReplyDeleteharkeerat ji bahut hi khoob
बेहद खूबसूरत गीत ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
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ReplyDelete'मैं चिराग हूँ हीर की मज़ार का
ReplyDeleteपरवाना बन तू jala तो जरा
..............................................
मैं सोहणी का कच्चा घड़ा भी हूँ
तू इश्क की दरिया में डूब जरा
आदरणीया हीर जी ,
बहुत सुन्दर रचना , हर बंद मन को मुग्ध करता है |
ਵਾਹ ਜੀ ਵਾਹ !!
ReplyDeleteਤੁਸੀਂ ਤੇ ਏਸ ਵਾਰ ਕਮਾਲਾਂ ਹੀ
ਕਿਤਿਯਾੰ ਹੋਯਿਯਾੰ ਨੇ ਜੀ ...
ਲਫਜਾਂ ਨੂੰ ਮੌਕ਼ੇ ਮੁਤਾਬਿਕ ਢਾਲ ਕੇ
ਬੜਾ ਸੋਹਣਾ ਗੀਤ ਲਿਖ ਛੱਡਯਾ ਏ......
गाता-गुनगुनाता प्यारा नगमा.
ReplyDeleteइक रात हूँ मैं इश्क़ भरी
ReplyDeleteतू द्वार पे दस्तक दे तो जरा
इस स्याह रात की हथेली पर
कोई रंग हिना का उतार जरा
...दिल कहता है कि यह रचना कभी खत्म न हो और पढते और गुनगुनाते रहो..हरेक पंक्ति मन को छू जाती है. बहुत सुन्दर
harqirat ji
ReplyDeleteWah! kya khoob likha hai aapne ki padhne wale usme duub kar rah jaaye .
nazren hain ki hatna hi nahi chahati aapki pyar bhari nazmon se.
bahut hi behatreen .lazwaab ,
bahut bahut badhai--
इक ज़ख्म हूँ मैं दर्द भरा ...
तू इश्क़ के धागे से सी जरा
हर दर्द रिस कर बह जायेगा
तू इश्क़ की दवा लगा तो जरा poonam
इक ज़ख्म हूँ मैं दर्द भरा ...
ReplyDeleteतू इश्क़ के धागे से सी जरा
हर दर्द रिस कर बह जायेगा
तू इश्क़ की दवा लगा तो जरा
वाह जी वाह , अपने तो हमें एक और रिसर्च का टॉपिक दे दिया ।
बहुत खूबसूरत नज़्म है ।
प्रेमपूर्वक लिखी हुई ।
लेकिन ये दानिश जी क्या कह गए जी पंजाबी में , समझ में नहीं आया ।
मैं महक भी हूँ ,मैं आब भी हूँ
ReplyDeleteमैं नींद तेरी का ख्वाब भी हूँ
मेरे लब पे रख के लब कभी
तू जाम इश्क़ का उतार जरा
यह नज़्म एहसासों का समुद्र है ....बहुत खूबसूरत
`मैं चिराग़ हूँ हीर की मज़ार का
ReplyDeleteपरवाना बन तू जल तो जरा '
रांझा ने यही तो किया था:(
मैं सारी हयात तेरे साथ चलूं
ReplyDeleteतू महबूब मेरा बन तो जरा
मैं ख़त हूँ इक प्यार भरा,मेरी
इक-इक सतर तू पढ़ तो जरा
mashallah
आप सभी से क्षमा चाहते हुए .....
ReplyDeleteआज मन बहुत ही उदास है .....
इतनी टिप्पणियों में से मैं
किसी के भी ब्लॉग पे नहीं जा सकी
शायद इस स्थिति से निकलने में थोडा वक़्त लगे ....
तब तक के लिए ...हीर आपके ब्लॉग पे न आ पाए
तो बुरा न माने ....
सगेबोब जी से निवेदन है दानिश जी की टिपण्णी का
अनुवाद दराल जी को बता दें .....
मैं महक भी हूँ ,मैं आब भी हूँ
ReplyDeleteमैं नींद तेरी का ख्वाब भी हूँ
मेरे लब पे रख के लब कभी
तू जाम इश्क़ का उतार जरा
हीर जी,
ये valentine day पर विशेष प्रस्तुति लग रही है.
उदासी के ये बादल अपने भीतर दर्द की बेशुमार ख़ुश्बू समाये हुए इस नील गगन में उड़ते-उड़ते कहाँ नहीं पहुँच रहे हैं .....आपकी इस उदासी को आदाब ज़ो इतनी बेहतरीन नज्मों से दुनिया को नवाज़ रही है .....आपकी मोहब्बत के सैलाब को आदाब ज़ो हर किसी को डूब जाने को मजबूर कर देती है ..........आपके इश्क की गहराई को आदाब जिसे नाप सकना हर किसी के बस की बात नहीं ......
ReplyDeleteहीर जी ! आपके श्री चरणों में आदाब के पहाड़ अर्पित करने को जी कर रहा है ....आदाब ! ! ! ! ! ! !
उदासी के ये बादल अपने भीतर दर्द की बेशुमार ख़ुश्बू समाये हुए इस नील गगन में उड़ते-उड़ते कहाँ नहीं पहुँच रहे हैं .....आपकी इस उदासी को आदाब ज़ो इतनी बेहतरीन नज्मों से दुनिया को नवाज़ रही है .....आपकी मोहब्बत के सैलाब को आदाब ज़ो हर किसी को डूब जाने को मजबूर कर देती है ..........आपके इश्क की गहराई को आदाब जिसे नाप सकना हर किसी के बस की बात नहीं ......
ReplyDeleteहीर जी ! आपके श्री चरणों में आदाब के पहाड़ अर्पित करने को जी कर रहा है ....आदाब ! ! ! ! ! ! !
आदरणीया हीर जी
ReplyDeleteस आदर स स्नेह अभिवादन !
आज ( यानी कल 14 फरवरी को ) सवेरे नज़्म पढ़ कर गया था तो रस परिवर्तन पा'कर बहुत ख़ुशी हुई थी…
गुनगुनाने की भी कोशिश की थी …
गा नहीं पाया …
कम्बख़्त गला ख़राब था , पिछली रात एक विवाह भोज में आइसक्रीम के चार चार प्याले गटक गया था इस कारण …
अब आपकी इजाज़त ले'कर गाऊंगा :)
इश्क़ नहीं बसता जिस दिल में
वो हैवान का घर ये मान जरा
क्या बात कही है ! आपका अंदाज़ चुराऊं तो कहूं ओये होए ! क्या बात है ! छा गए जी !
… लेकिन शाम के बाद … ???
# सावधान !
दराल साहब , दानिश जी के नेतृत्व में पूरा ब्लॉगजगत आपके घर के आगे भूख हड़ताल कर देगा … अगर आपने उदासी को तुरंत दुश्मनों के घर दफ़ा नहीं किया तो … :)
♥ ♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
♥ प्रणय दिवस मंगलमय हो ! :)
बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ख़ूबसूरत है ये मिठास, बनी रहे हमेशा।
ReplyDeleteharkirat ji, kaya kahun mast lajavab geet hai. muhabbat ka beej ishk ki jamin me hi panapta hai.....
ReplyDeleteमैं महक भी हूँ ,मैं आब भी हूँ
ReplyDeleteमैं नींद तेरी का ख्वाब भी हूँ
मेरे लब पे रख के लब कभी
तू जाम इश्क़ का उतार जरा
प्यार की खुशबू बिखेरती सुन्दर सी प्यारी नज़्म !
मैंने गुंध लिया है इसे आटे में
ReplyDeleteतू कोई रोटी इश्क़ की उतार जरा
आ बुरकी इश्क़ की मिलकर तोडें
कर अना दिल से हम दूर जरा
उफ्फ्फ....क्या लिखती हैं आप...आफरीन...आफरीन...
नीरज
बहुत मधुर बहुत प्यारा गीत ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आद. हीर जी,
ReplyDeleteसादर अभिवादन
कुछ अंतराल बाद आया और इस बासंती नज़्म से मुलाक़ात हुई... क्या कहने...
"सुरमई सी ताव है, इस इश्क के अलाव में
बस बह चला निर्द्वंद सा ही, भाव के बहाव में"
बसंत ऋतु की शुभकामनाये... सादर...
आदरणीय दराल जी, नमस्कार.
ReplyDeleteइस से पहले कि दानिश जी की गयी टिप्पणी को आप भूल जाएँ उसका हिंदी अनुवाद हाज़िर है.
दानिश जी ने लिखा है"वाह जी वाह,आपने तो इस बार कमाल ही कर दिया है.लफ़्ज़ों को मौके के मुताबिक ढाल कर बहुत सुन्दर गीत लिख छोड़ा है."
हीरजी,शुक्रिया ,आपने बन्दे को इस काबिल समझा देरी के लिए मुआफी चाहूंगा..
शुक्रिया ज़नाब ।
ReplyDeleteदानिश जी को गुरमुखी में पहली बार पढ़ा था ।
हीर जी तो हमेशा ही कमाल करती हैं ।
उफ़....मैं गम हो रहा हूँ....इस कविता में... क्यूंकि यह कविता नहीं....इश्क है...और जिससे मुझे सदा से ही इश्क है....ओ रे...कोई मुझे आ के संभालो....हरकीरत जी मुझे बचा लो..!!
ReplyDeleteइतने दिनों बाद वापिस ब्लॉग जगत पर आई तो आपकी इस नज्म से परिचय हुआ ।
ReplyDeleteमौका हो दस्तूर हो और हीर जी की कलम हो और गीत मुहब्बत का हो तो कोई कैसे न कायल हो जाये ।
मै चनाब हूँ, मै रबाब हूँ
मैं हुस्नो - इल्म का शबाब हूँ
मैं मुहब्बत का सुर्ख गुलाब हूँ
तू खुश्बुएं लुटा के देख जरा .....
बेहद सुंदर ।
थपेड़ा जी यूँ थपेड़े न खाइए
ReplyDeleteजरा खुद को भी तो संभालिये
गर इश्क से इश्क है आपको
तो इसमें डूबने से न घबराइए
आदरणीय हीर जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
प्यार की खुशबू बिखेरती सुन्दर सी प्यारी नज़्म !
प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
ReplyDeleteकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
bahut hi sundar heer ji...
ReplyDeleteहरकीरत जी , आपकी शायरी बहुत अलग है -जिसकी शुरुआत तो इस दुनिया से होती है परन्तु इसका सिरा किसी दूसरी दुनिया से जा मिलता है ;लगता है पाठक भी उसी में विलीन हो गया है । कविता की यह ऊँचाई और उदात्तता शब्दों को गरिमा प्रदान करती है ।
ReplyDeleteमैंने गुंध लिया है इसे आटे में
ReplyDeleteतू कोई रोटी इश्क़ की उतार जरा
आ बुरकी इश्क़ की मिलकर तोडें
taking these lines ....
इश्क बड़ी अजीब शै है .....परवीन शाकिर लिखती है
ReplyDeleteबस इक निगाह की थी उसने
सारा चेहरा निखर गया है
sagar siddiqui said....
रूदाद -ए - मुहब्बत क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए
दो दिन की मसररत क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए
and our faiz sahab......
kabhii kabhii yaad me.n ubharate hai.n naqsh-e-maazii miTe miTe se
vo aazamaa_ish sii dil-o-nazar kii, vo qurabate.n sii vo faasale se
ऐसे गीत को कौन न गुनगुनाना चाहेगा।
ReplyDeleteबधाई।
---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
मीठी और सुरीली सदाएं.
ReplyDeletebahut sunadar.
ReplyDeletebhai wah......
ReplyDeletebhai wah
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeletekisi galati se ye messege char baar chala gaya hai. sorry.
ReplyDeleteharkirat , bahut der se is nazm par hoon .. kya kahun , this is one of your best nazms...
ReplyDeletedil me dard ka ahsaas utaarti hui nazm.. aapki lekhni ko salaam.
----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
in fact , ishq par isse behatar kuch ho bhi nahi sakta tha
ReplyDeletebadhayi
मैं आग हूँ , इक शरमाई हुई ........
ReplyDeleteतू इस बुत से नकाब उतार जरा ..
wah kya khoob likha hai apne ........bilkul sajeev chitran..der hui hai mujhe apke blog tk pahuchane me...sadar abhar Heer ji