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Friday, February 4, 2011

पत्थर हुई बूंद ....बैसाखियाँ.....और फफोला ....

कुछ नज्में .....

(
)

पत्थर हुई बूंद ....

ये कैसे पत्थर हैं
सिसकते हुए ....?
कहीं मिट्टी काँपी है
कोई रात ....
रिश्ता पीठ पर लादे
दहाड़ें मारती है ...
बेखबर से लफ्ज़
अँधेरे की ओट में
चाँद तारों की राह
चल पड़े हैं ....
मुझे पता है ...
तूने तूफ़ानों को
नहीं बेचीं थी नज़्म
फिर ये ज़ख्म क्यों
बिखरे पड़े हैं ...?
जब तुम ....
आखिरी बार मिले थे
तभी ये बूंद पत्थर
बन गई थी .......
आज इसकी कब्र पे
मिट्टी डाल दें .......!!

()


तेरा  आना .....


कुछ दिन ...
जहाँ तुम ले गए थे
बड़ा हसीन सा तसव्वुर था
इश्क़ पानियों में तैरने लगा था
हवा चुपके से छलका जाती
आँखों का जाम  .....
मन आवारा सा हुआ जाता
मैं हिमालय की चोटि पर बैठी
बो देना चाहती सारे मुहब्बत के बीज
आसमां के आँगन में  ...
देखना चाहती ....
कैसे मुहब्बत की आग से
पिघलते हैं सितारे .
कैसे मुहब्बत जिस्म जलाती है  
नदी  डूब जाती है समंदर में  
इक मुद्दत बाद
आज फिर ख्यालों  में 
हँसी आई है  .....!!

()

बैसाखियाँ.....

क्यों ख़ामोश से
कमजोर ,जर्द हुए खड़े हो ...?
मुहब्बत के ताप की तहरीर से
बिदक कर भागना चाहते हो ....?
अच्छा किया जो भागते वक़्त
अपनी बैसाखियाँ फेंक दीं ....
देखना चाहती हूँ
कितनी जल्द तुम
गंतव्य तक
पहुँच जाते हो ......!?!

()

दर्द .....

हिमालय की
चोटि
पर बैठ ....
प्रेमालाप करने लगे थे
दो शख्स .....
दर्द उधेड़ देने की कोशिश में
और बुनते गए चारों ओर

आज फिर चाँद रोयेगा
किसी मजार पे बैठ ....

()

फफोला.....
सुनो .....
वह जो अंगुली पर
फफोला निकल आया था ....?
उसे मैंने मसलकर
नमक लगा दिया है ....
अब तुम्हारी यादें
दर्द नहीं देतीं ......!!

81 comments:

  1. तूने तूफ़ानों को
    नहीं बेचीं थी नज़्म
    फिर ये ज़ख्म क्यों
    बिखरे पड़े हैं ...?


    सीने में दबे तूफान तो अल्फ़ाज़ बनके कभी न कभी तो बाहर निकलेंगे ही। सभी कविताएं सुंदर और मन को छूने वाली- बधाई स्वीकारे ‘हीर’ जी॥

    ReplyDelete
  2. हीर जी ! कैसे इतना खूबसूरत लिख लेती हैं आप...
    आपका आना और फफोला ...उफ़ शब्द नहीं मिल रहे.

    ReplyDelete
  3. दर्द का मौसम फिर लौट आया है हसीन और नए कपड़े पहन कर...

    ReplyDelete
  4. हरकीरत जी प्रणाम !

    "बड़ा हसीन सा तसव्वुर था
    इश्क़ पानियों में तैरता"

    वाह क्या लिखा है ... खालिश रूमानी

    "मुहब्बत के ताप की तहरीर से
    बिदक कर भागना चाहते हो ....?"

    सवाल अच्छा है ...

    ReplyDelete
  5. बेहद उम्दा ... लगे रहिये आप ऐसे ही ... जय हो !


    बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - मेरे लिए उपहार - फिर से मिल जाये संयुक्त परिवार - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

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  6. फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!


    उफ़्फ़ :-(

    ReplyDelete
  7. ओह ! तुने तूफानों को नहीं बेचीं थी नज्म....सुन्दर रचना, आभार.

    ReplyDelete
  8. सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!
    सारी कवितायेँ अन्तरमन को भिगोने वाली है सिर्फ यही कह सकती हूँ वाह! वाह!

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  9. माशा अल्लाह!
    पांचो एक से बढ़कर एक.
    आप जैसी उस्ताद शायरा की तारीफ़ करूं तो कैसे.

    शायद दर्द को भी सदियों बाद नयी परिभाषा मिल गयी आप कवितायों के रूप में.
    आप की कवितायें दर्द बयां नहीं करती बल्कि दर्द हंढाती हैं.
    आप की कवितायें दर्द से मुक्ति नहीं चाहती.
    बल्कि आप की कवितायें दर्द की बुक्कल में ताप तलाश करती हैं.

    ढेरों सलाम.

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  10. मैं हिमालय की चोटी से
    टाँग देना चाहती
    सारे दर्द आसमां में...
    देखना चाहती ....
    कैसे मुहब्बत की आग से
    पिघलते हैं तारे .....
    ...
    jab jayen taangne to kuch aag muhabbat ki wahan se bhi le aanye...
    kya tareef karun, bas padhu padhti rahun... kabhi chup si kabhi bol ke

    ReplyDelete
  11. हीर जी,
    कैसे मुहब्बत की आग से
    पिघलते हैं तारे .....

    बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  12. फफोले के साथ ऐसा सलूक ... यह किस रस की कविता है.

    ReplyDelete
  13. सिसकते हुए पत्थर , उम्मीदों का स्याह होना ,मुहब्बत से भागना , दर्द को उधेडने के बजाये बुन देना , और यादों का दर्द .....एक एक शब्द दर्द से भीगा हुआ ....

    ReplyDelete
  14. pahli kshanika se to ..."sara shagufta' kee nazmon ka andaaz jhalak raha hai aur ye andaaz pahli baar kaheen aur mila hai...ghazab...doosri kshanika ne kai rangon se bhari ek image saamne rakh di... bhale hee ummeedon ka rang syah hua.. baisakhiyaan bhi bahut acchi kshanika hai... dard aur phaphola bhi khub hain..par meri sabse fav...pahli kshanika hai.. :)

    Saadar

    ReplyDelete
  15. सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!



    कैसे क्या कहूँ ....निशब्द कर दिया आपने ..इस फफोले का जबाब नहीं .....सब एक से एक बढ़कर हैं और गहरे अर्थ संप्रेषित करती हुई ...बस रम जाने को कहती हैं ....आपका तहे दिल से शुक्रिया

    ReplyDelete
  16. ek ek nazm moti hai....kya likhti hain aap....bohot bohot hi kamaal ki imagination hai aapki...its out of this world...tooo good :)

    ReplyDelete
  17. dil ke ander jagah bana gayi aapki ye rachna.....

    ReplyDelete
  18. dard bhare najm ke to aap sultana ho Harqeerat jee...........:)

    sare ek se badh kar ek....!!
    Praveen ne sahi kaha..."panchratna"

    ReplyDelete
  19. उफ्फ , आप क्या पीती हैं , क्या खाती हैं , सब दर्द में ढल कर नज्मों में उतर आता है ,

    ReplyDelete
  20. सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!

    अब तो दर्द भी मुझे देख सिसकता है।

    एक से बढकर एक ……………दर्द की इबारत लिख दी है।

    ReplyDelete
  21. न जाने क्या होता है 'हीर' जी आपकी किसी किसी कविता में कि पढ़ लेने के बाद बहुत देर तक बेचैनी -सी बनी रहती है। 'फफोले' वाली ऐसी ही कविता है। बहुत करीब सी लगती हैं आपकी कविताएं… एक अनुरोध- क्या आप अपने ब्लॉग के टैक्स्ट मैटर का फोन्ट साईज बढ़ा सकती हैं? बहुत बारीक है, इसे थोड़ा बड़ा होना चाहिए ताकि आसानी से बग़ैर आँखों पर ज़ोर डाले पढ़ा जा सके।

    ReplyDelete
  22. harkirat ji ...fafole waali poem padhkar man disturb ho gaya hai ji ...bahut shaandar tareeke se baat kahi aapne

    ReplyDelete
  23. तूने तूफ़ानों को
    नहीं बेचीं थी नज़्म
    फिर ये ज़ख्म क्यों
    बिखरे पड़े हैं ...?
    बहुत खूब...सारी नज्मे मीठी सी दर्द में भीगी सी हैं.

    ReplyDelete
  24. सुनो .
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है .
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं!!
    कैसे क्या कहूँ ,निशब्द कर दिया आपने .इस फफोले का जबाब नहीं ,सब एक से एक बढ़कर हैं और गहरे अर्थ संप्रेषित करती हुई ,बस रम जाने को कहती हैं .
    शुक्रिया

    ReplyDelete
  25. हमेशा की तरह बहुत ही भावपूर्ण कविताएं लिखी हैं आपने, हरकीरत जी।

    सभी रचनाऐ प्रभाव छोड़ती हैं मन पर।
    लेकिन यह कुछ खास लगी-

    क्यों ख़ामोश से
    कमजोर जर्द हुए खड़े हो
    मुहब्बत के ताप की तहरीर से
    बिदक कर भागना चाहते हो
    अच्छा किया जो भागते वक़्त
    अपनी बैसाखियाँ फेंक दीं
    देखना चाहती हूँ
    कितनी जल्द तुम
    गंतव्य तक
    पहुँच जाते हो ।

    ReplyDelete
  26. हीर जी,

    आपके ब्लॉग पर आकर लगता है लफ्ज़ मर गएँ हैं.....मिलते ही नहीं कमबख्त .......क्या करूँ? आप कैसे इतनी खूबसूरती से इन अल्फाजो को इतना खुबसूरत जमा पहनती हैं........हैट्स ऑफ लेडी.....

    ये कैसे पत्थर हैं
    सिसकते हुए ....?
    कहीं मिट्टी काँपी है
    कोई रात ....
    रिश्ता पीठ पर लादे
    दहाड़ें मारती है ...
    बेखबर से लफ्ज़
    अँधेरे की ओट में
    चाँद तारों की राह

    वाह..वाह....वाह....वाह....वाह....वाह.....अनंत

    ReplyDelete
  27. तूने तूफ़ानों को
    नहीं बेचीं थी नज़्म
    फिर ये ज़ख्म क्यों
    बिखरे पड़े हैं ...?

    सोच रही हूं ...किसकी तारीफ करूं क्षणिकाओं की ...आपकी सोच की ...या लेखनी की जिनसे ये शब्‍द जन्‍म लेते हैं ...बेमिसाल प्रस्‍तुति ..।

    ReplyDelete
  28. जब तुम ....
    आखिरी बार मिले थे
    तभी ये बूंद पत्थर
    बन गई थी .......
    आ आज इसकी कब्र पे
    मिट्टी डाल दें .......!!
    .....
    .....
    .....
    सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!

    ..
    ..
    हीर जी आपकी तारीफ में कुछ कहना मुझ जैसे नौसिखिये के लिए तो सूरज को दीपक दिखाने के समान ही है ....हर भाव स्तरीय है ..हर कविता श्रेष्ठ !

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  29. आपकी रचनाओं पर कुछ भी कहना मेरे लिए हमेशा बहुत मुश्किल होता है. सूर्य को दिया दिखाने जैसा लगता है.
    बस निःशब्द हो जाता हूँ.

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  30. nishabd. rooh ko bheetar tak cheerne wale hain apke ehsaas.

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  31. क्या कहूं ...निशब्द हूँ ....

    ReplyDelete
  32. .

    एक नक़ल कविता :

    अ-क्षर हुई पीड़ा ...

    ये कैसे अक्षर हैं
    खिसकते हुए ...? [कानों में चुपचाप]
    कहीं पीड़ा प्यापी है
    कोई हॉर्ट...
    वेदना 'धड़कन' पर लादे
    गुमसुम हुई बैठी है.
    अस्फुट से स्वर
    दबे हुए होंठ में
    विरहिणी की कराह
    लग रहे हैं...
    मुझे पता है
    आपने सुनाने को
    नहीं लिखी है नज़्म
    फिर ये कमेन्ट क्यों
    बिखरे पड़े हैं...?
    जब आप
    आखिरी बार मिले थे
    तभी ये पीड़ा अ-क्षर
    बन गई थी...
    आ आज़ इसकी गूँज में
    अर्थ डाल दें...!!

    ____
    अ-क्षर से तात्पर्य — चिर स्थायी, अनश्वर
    हॉर्ट — दिल
    .

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  33. उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ...

    heeer ji, kya khoob ukera hai aap ne dard ko. ha nazm bahut hi behtarin hai..........sunder prastuti.

    ReplyDelete
  34. .

    'फफोला' ...
    को मैंने जब तोला
    तब ....

    @ लाजवाब सहिष्णुता.
    इतना दर्द सह लेते हैं आप!


    दर्द पीने की आदत जो पड़ गयी है.
    या फिर नासूर पर नमक लगाकर विरह की पीड़ा की दिशा बदल देने का प्रयास है आपका?

    .

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  35. बहुत सुंदर क्षणिकाएं.... प्रभावी और संवेदशील ...

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  36. अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!
    पर क्या ह्रदय मानता है।
    बेहद दर्द छुपा है इस नज्म में।
    शुक्रिया इतनी जीवंत नज्म को हम सबके साथ शेयर करने के लिए।

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  37. yekse yek badhiya hamesha ki taraha..........

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  38. दर्द उधेड़ देने की कोशिश में
    और बुनते गए
    चारों ओर .....

    क्या बात है हीर जी,बहुत सही और बहुत अच्छा लिख रही हैं आप.वाह वाह.

    ReplyDelete
  39. सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं
    sach men yae to dard ki parakastha ho gayee.bhawuktapurn abhiyakti.

    ReplyDelete
  40. Is bar bhi kamaal ki nazme likhi h... badhai



    Indian Sushant

    ReplyDelete
  41. सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!

    Harkirat ji aapki ek ek nzam bahut khoobsuart hai. kya kahoon kaise kahoon kuch kya tarif karoon kuch samaj mein nahi aa raha.

    bas aapki kalam ko salaam .

    ReplyDelete
  42. हीर जी,
    कैसे मुहब्बत की आग से
    पिघलते हैं तारे ..
    बहुत अच्छी प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  43. तभी ये बूंद पत्थर
    बन गई थी .......
    आ आज इसकी कब्र पे
    मिट्टी डाल दें .......!!
    एक एक शब्द दर्द से भीगा हुआ ,बधाई......

    ReplyDelete
  44. बेखबर से लफ्ज़
    अँधेरे की ओट में
    चाँद तारों की राह
    चल पड़े हैं ....

    बहुत खूब ।

    कैसे मुहब्बत की आग से
    पिघलते हैं तारे .....

    सशक्त भाव ।

    फफोले पर नमक लगा दिया है ।
    उफ़ ! कितना बेदर्दी !

    आज फिर जिंदगी की कशमकश से भरी हुई बेहतरीन रचना ।

    ReplyDelete
  45. प्रशंसा के लिये उपयुक्त शब्द नहीं हैं मेरी शब्दावली में…… हर बार बस मुग्ध हो जाता हूँ पढ कर ! मानस को समृद्ध करने के लिये बहुत आभार।

    ReplyDelete
  46. सतश्रीअकाल ,शब्द नही मिल रहे हे --क्या कहू--हरकीरत जी ,कितनी सिद्दत से आपकी नज्मो का इन्तजार रहता हे --इतनी दर्द में डूबी हुई नज्मे शायद ही मेने कभी पड़ी हे --धन्यवाद आपका या उस वाहेगुरु का जिसके कारण हमारी मुलाकात हुई ?


    सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!

    ReplyDelete
  47. कितना बैचैन कर देने वाली हर नज़्म है आपकी ! हर शब्द मन में किसी अनकही वेदना को जगाता है ! आपकी लेखनी को नमन ! बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें !

    ReplyDelete
  48. सुनो .....
    वह जो अंगुली पर
    फफोला निकल आया था न ....?
    उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं ......!!
    ye lines sabse best hain
    kaafi acchi poems likhi hain dil khush ho gaya


    mere blog ko bhi follow kijiye taaki mujhe apane aap ko sudharane ka mauka mile
    dhanaywad
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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  49. This comment has been removed by the author.

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  50. रचनाएं
    पढ़ लेने से ही मन में कहीं गहरे उतर जाती हैं
    हर पढने वाला अपने आप को
    उन में कहीं खोज ही लेता है
    लेकिन
    कुछ कहने के लिए
    शब्द , मानो . साथ छोड़ जाते हैं
    बस इक गहरी-सी आह......
    बस !!

    ReplyDelete
  51. हीर जी,
    नमस्कार !
    एक से बढकर एक
    कैसे मुहब्बत की आग से
    पिघलते हैं तारे ..
    बहुत अच्छी प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  52. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    धन्यवाद

    http://unluckyblackstar.blogspot.com/

    ReplyDelete
  53. कई बार लगता है कि तारीफ़ से परे कैसे लिखा जाता है?
    जवाब यूँ मिला करता है...

    बहुत अच्छी लगीं सभी नज्में

    ReplyDelete
  54. आद.हरकीरत जी,

    नज्मों ने चुनकर दिए कुछ ऐसे सौगात ,
    अंतर्मन की प्यास को बढ़ा गयी बरसात !

    नज़्मों ने दिल को छू लिया !भावपूर्ण नज़्मों के लिए बधाई और बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  55. "जब तुम ..../आखिरी बार मिले थे/ तभी ये बूंद पत्थर/ बन गई थी ......./आ आज इसकी कब्र पे/ मिट्टी डाल दें .......!!" | मन को झकझोरने वाली पंक्तिया हैं आपकी. मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान

    ReplyDelete
  56. आदरणीया हरकीरत जी बहुत सुन्दर नज्में हैं बधाई बसंत की भी और कविताओं की भी |

    ReplyDelete
  57. आदरणीया हरकीरत जी बहुत सुन्दर नज्में हैं बधाई बसंत की भी और कविताओं की भी |

    ReplyDelete
  58. दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
    आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  59. harkirat ji
    kisi ek ke baare me kya likhun ,saari kisaari nazme itni gaharai samete huye hain apne aap me ki mai to bas usme dubki laga gai.bahut bahut behtreendard ,gila shikva imtehan ,insabko aapne badi hi khoob surti ke saath bayan kar diya hai.
    hardik badhai
    poonam

    ReplyDelete
  60. कम शब्दों में मगर कई भावों को अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  61. आदरणीया हरकीरत हीर जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    सर्वप्रथम बसंत पंचमी की हार्दिक बधाइयां एवम् शुभकामनाएं !

    … और रचनाओं पर 4 तारीख को भी कुछ भी कहे बिना लौट गया था , आज एक बार फिर उसी मौन का आश्रय ले रहा हूं …
    हां , लेकिन कृपया दर्ज़ करलें - फफोला पढ़ कर तड़प उठा …
    … … … ? !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  62. भगवान के लिए ऐसी हृदय विदारक रचनाएं न लिखा करें …

    कम अज कम
    भगवान के बंदों लिए … … …


    :)
    Be Happy !

    ReplyDelete
  63. ffole ko mslne ke liye jigra chahiye , tsvur me hi shi , bat khyaal ki hai our khyaal dard ki chashni me dubki lga ke aaya hai our fir kuchh ffole sath le aaya hai . chlo in chashni me doobe ffolon se ru b ru hua jaye fir ek our nye ahsaas ke liye .
    bhut khoobsurat likhti hai aap .

    ReplyDelete
  64. उसे मैंने मसलकर
    नमक लगा दिया है ....
    अब तुम्हारी यादें
    दर्द नहीं देतीं .

    dil ko bahut gahraee ak touch kar gai

    ReplyDelete
  65. गागर में सागर सा एहसास लिये हैं नज्‍में।

    ---------
    ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।

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  66. हिमालय की
    चोटि पर बैठ ....
    प्रेमालाप करने लगे थे
    दो शख्स .....
    दर्द उधेड़ देने की कोशिश में
    और बुनते गए चारों ओर
    आज फिर मुहब्बत रोई है
    किसी मजार पे बैठ ....
    ....sab najmein bahut achhi lagi lekin yah nazam ek jeewant drashya upasthit kar gaya.. aabhar

    ReplyDelete
  67. बहुत अच्छी प्रस्तुति.बेहद उम्दा

    ReplyDelete
  68. एक साअथ इतना सारा॒॒!!!!!!१


    बहुत कुछ मिल गया पढ़ने को आपके ब्लॉग पर ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


    तूने तूफ़ानों को
    नहीं बेचीं थी नज़्म
    फिर ये ज़ख्म क्यों
    बिखरे पड़े हैं

    क्यों??
    आज के लिये अच्छा प्रश्न है।

    एक निवेदन-
    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

    ReplyDelete
  69. बस मैं तो पढ़ती रह जाती हूँ..... आपके शब्दों को बाँधने का अंदाज बेहद अनोखा है.

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  70. बड़ा हसीन सा तसव्वुर था
    इश्क़ पानियों में तैरता
    हवा चुपके से छलका जाती
    मय इन आँखों की .....

    वाह, क्या खूब कहा आपने.

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  71. फफोला ,दर्द, या फिर बैसाखियाँ .....
    वही कह सकता है,जो इन्हें सह सकता है
    बस इतना ही कहूँगी इनकी चमक में सूरज की तपिश झलकती है
    बहुत ही सुंदर .....'फफोला ' अति मार्मिक

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