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Sunday, February 20, 2011

इक नज़्म उदासी में ......

जहाँ ....
लहर ठहर गई थी
और समुंदर फेंक गया था
उसपर रहम जैसे चंद अल्फाज़
जहाँ दर्द औरत होने का
मुआवज़ा मांगने लगे थे ...
वहीँ मेरी गिरी हुई आँख का पानी
और झुक गया था ....

मेरी छत पर बैठा परिंदा
फिर दर्द के गीत गाने लग पड़ा था
दूर पहाड़ी से दौड़ी चली आई थी उदासी
गले लग कर बोली .........
क्यूँ सस्ते में ही घोल देती हो ये आँसू
लो ओढ़ लो अपनी वही चादर
फटी है तो क्या .....?
है तो तुम्हारी अपनी , बरसों से ....
कुछ और लगा लेना टाँके
कुछ और सी लेना पैबंद
कब्रें सवाल तो करेंगी ..?
तोहमत तो लगायेंगी ...?
अब क्या करोगी हँसी का लिबास ...?
मिट्टी डोल गई है
आसमां खींचने लगा है हाथ
इल्जाम कहाँ रखोगी....?
झोली में गिरे ये शब्द
तुम्हें चुभते रहेंगे ....

उफ्फ्फ.....
जाने क्यूँ ये लोग
बेतहाशा हँसने लगे हैं
चूडियाँ कटघरे में खड़ी
हैरानी से मुझे देखती हैं
किसी ने मेरी कब्र का चेहरा
नाखूनों से कुरेद लिया है
नज़्म फूल मसल रही है
कब्र पर दीया बुझा पड़ा है
मिट्टी खामोश है ....
मेरे दर्द की चादर
और फट गई है ....

मैं लौट आती हूँ वहाँ , जहाँ
लहर ठहरी हुई थी .....
देखती हूँ वह मुहब्बत तमाम के शब्द
मिटाए जा रही थी .....
रेत से ...पानी से ...दरख्तों से ...पत्तों से
मुस्कुराहटों से ..हँसी से ...पलकों से
वह आईने के सामने खड़ी होकर
दुपट्टा ओढ़ती है .....
और फिर उसके टुकड़े टुकड़े कर
फेंक़ देती है समुंदर में .....

उफ्फ्फ.....
मेरी छत पर बैठा
इश्क का परिंदा
दम तोड़ने लगा है ......
मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
अलविदा मित्र ....

पीछे पलटती हूँ ...
तो सामने रात खड़ी है
स्याह रात .....
उदासी के साथ ....
हाथों में मेरी वही फटी
चादर लिए .....!!

78 comments:

  1. पीछे पलटती हूँ ...
    तो सामने रात खड़ी है
    स्याह रात .....
    उदासी के साथ ....
    हाथों में मेरी वही फटी
    चादर लिए .....!!

    सच्ची बहुत उदास नज़्म, लेकिन बहुत सुन्दर.

    ReplyDelete
  2. मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    नज़्म बहुत अच्छी है...हां भाव उदासी भरे हैं.
    लेकिन क्या किया जाए...
    ये भी एक रंग है ज़िन्दगी का.

    ReplyDelete
  3. उफ्फ्फ.....
    मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    पीछे पलटती हूँ ...
    तो सामने रात खड़ी है
    स्याह रात .....
    उदासी के साथ ....
    हाथों में मेरी वही फटी
    चादर लिए
    ek tasvir hai udasi ke hone ki ,jise khincha hai aapke jadui shabdo ne .aur jisse hamari nigahe nahi hatti .bahut khoob .

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  4. नज़्म बेहतरीन है पर इस उदासी का सबब क्या है?

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  5. उदासी के घोर काले बादलों से घिरा
    धरती का उदास चेहरा
    और
    जज़्बात के सागर में
    लहरों का उट्ठा हुआ अथाह तूफ़ान ...

    नज़्म क्या है,,,
    मानो
    किन्ही खुश्क आँखों के सामने
    कुछ इसी तरह का तैरता-हुआ-सा
    अफसुर्दा मन्ज़र .......

    प्रभावशाली कृति !

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  6. Hi..

    Nazm teri main jab bhi padhta..
    Man main ek udaasi chhati..
    Dil par aksar bojh sa aata..
    Hothon par ek aah hai aati..

    Beshak dard hai rahta sang hi..
    Jahan hain rahti khushiyan sang main..
    Par kyon syaah hamesha chunna..
    Jeevan main chhaye har rang main..

    Kabhi ek geet bhi gao..
    Kabhi to muskurao tum..
    Kabhi to tum jara hanskar..
    Hame bhi to hansao tum..

    Sundar nazm, dard ki inteha..

    Deepak..
    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  7. मैं लौट आती हूँ वहाँ , जहाँ
    लहर ठहरी हुई थी .....
    देखती हूँ वह मुहब्बत तमाम के शब्द
    मिटाए जा रही थी .....
    bahut sunder dardbhai

    ReplyDelete
  8. दूर पहाड़ी से दौड़ी चली आई थी उदासी
    गले लग कर बोली .........
    क्यूँ सस्ते में ही घोल देती हो ये आँसू
    लो ओढ़ लो अपनी वही चादर
    फटी है तो क्या .....?
    है तो तुम्हारी अपनी न , बरसों से ....
    कुछ और लगा लेना टाँके
    कुछ और सी लेना पैबंद
    कब्रें सवाल तो न करेंगी ..?
    तोहमत तो न लगायेंगी ...?aapke her shabd kamal ke hote hain , bhawnayen dil mein utar jati hain

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  9. चुपचाप दिल को छु गई नज़्म आपकी... मेरी उदासी की साथी बन गई..

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  10. itnaa dard..... uffff

    as always bohot bohot real image banayi hai aapne, so much so that it hurts ! bohot behtareen

    ReplyDelete
  11. मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    उदासी के दबीज़ कुहासे में लिपटी ख़ूबसूरत नज़्म
    लेकिन हरकीरत जी क्या सच्चे जज़्बात का परिंदा दम तोड़ सकता है ?????
    मेरे नज़रिये से ख़ामोश तो हो सकता है लेकिन इंसान की आख़री सांस तक ये परिंदा उस का साथी ही होता है

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  12. अब क्या करोगी हँसी का लिबास ...?
    मिट्टी डोल गई है
    आसमां खींचने लगा है हाथ
    इल्जाम कहाँ रखोगी....?
    झोली में गिरे ये शब्द
    तुम्हें चुभते रहेंगे ....उफ़...दर्द जैसे लफ़्ज़ों में उतर आया हो. दिल की गहराईयों में उतरती नज़्म

    ReplyDelete
  13. उफ्फ्फ.....
    मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    itna dard...!
    jayda hi udasiyon ko samet liya !

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  14. उदासी का सटीक चित्रण्…………
    क्या करें अब दर्द का लिबास ही अपना लगता है
    वरना मोहब्बत का दामन उदास लगता है

    ReplyDelete
  15. उफ्फ्फ.....
    मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ...

    प्रभावशाली ... उदास नज़्म ... दिल को छु गई ...

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  16. गहरे भाव दर्शाती हुई एक खुबसुरत रचना।

    ReplyDelete
  17. मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ,
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ ,
    अलविदा मित्र ,

    नज़्म अच्छी है,हां भाव उदासी भरे हैं.
    लेकिन क्या किया जाए.
    ये भी एक रंग है ज़िन्दगी का.

    ReplyDelete
  18. पीछे पलटती हूँ ...
    तो सामने रात खड़ी है
    स्याह रात .....
    उदासी के साथ ....
    हाथों में मेरी वही फटी
    चादर लिए ...

    सचमुच बहुत ही उदासी भरी नज़्म

    ReplyDelete
  19. दूर पहाड़ी से दौड़ी चली आई थी उदासी
    गले लग कर बोली .........
    क्यूँ सस्ते में ही घोल देती हो ये आँसू
    लो ओढ़ लो अपनी वही चादर
    फटी है तो क्या .....?

    आप दर्द को बड़े करीने से पिरोती हैं अपनी रचनाओं में, हीर जी .
    वाह,क्या बात है आपके लेखन की.

    ReplyDelete
  20. लो ओढ़ लो अपनी वही चादर
    फटी है तो क्या .....?
    है तो तुम्हारी अपनी न , बरसों से ....
    कुछ और लगा लेना टाँके
    कुछ और सी लेना पैबंद
    कब्रें सवाल तो न करेंगी ..?

    बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति..मन को अंदर तक भिगो देती है...बहुत सुन्दर..आभार

    ReplyDelete
  21. उफ्फ्फ.....
    मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    aaah...

    ReplyDelete
  22. मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    ये शब्‍द ...जिन्‍हें आसानी से पढ़ा जा सकता है पर इनके गहन भावों को व्‍यक्‍त करना हो तो ....नि:शब्‍द कर देती हैं आप ...लाजवाब प्रस्‍तुति ।

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  23. उदास उदास सी बिन्दास पंक्तियां ।

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  24. अत्यंत दर्द भरी रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  25. लाइनों को पढ़ते पढ़ते मैं अंधेरे में उतरता गया फिर अंत में दिखी फटी चादर के साथ कुछ रोशनी ! दर्द और उदासी का गहन चित्रण ! बहुत अच्छी रचना !

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  26. अब तो बसंत भी आ गया फ़ुल भी खिले हे, फ़िर भी ऎसी उदास गजल?लेकिन बहुत सुंदर लगी धन्यवाद

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  27. क्या दर्द है और क्या उदासी है,आपसे बेहतर कोई नहीं जानता है.

    उफ्फ्फ.....
    मेरी छत पर बैठा
    इश्क का परिंदा
    दम तोड़ने लगा है ......
    मैं उसे अश्कों का आखिरी घूँट
    पिलाती हूँ और कहती हूँ .....
    अलविदा मित्र ....

    शिव कुमार बटालवी के बाद दर्द का जिस शिद्दत के साथ आप ब्यान करती हैं,मोजूदा दौर में कोई कर नहीं सकता.
    अगर शिव बिरहे का सुलतान है तो हीर दर्द की मलिका है.
    सलाम.

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  28. खूबसूरत नज़्म

    कल जहाँ ....
    लहर ठहर गई थी
    और समुंदर फेंक गया था
    उसपर रहम जैसे चंद अल्फाज़
    जहाँ दर्द औरत होने का
    मुआवज़ा मांगने लगे थे ...
    वहीँ मेरी गिरी हुई आँख का पानी
    और झुक गया था ....

    जैसा शीर्षक है तो उदासी तो आनी ही थी. अब अगली कड़ी में सूरज से बातचीत जैसे कोई चीज़ लिख डालिए माहौल बदलने के लिए.

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  29. आद. हीर जी,
    इस नज़्म पर कुछ कह सकने में अपने को अक्षम पाता हूँ....
    सादर नमन और शुभकामनाएं....

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  30. ‘क्यूँ सस्ते में ही घोल देती हो ये आँसू ’

    ये आंसू नहीं दिल की ज़ुबान है :(

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  31. उदासी के इस रंग में गहराई तो है
    लेकिन इससे उबरना तो जरूरी है.

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  32. दर्द को शब्दों में यूँ ढालना...
    गज़ब !

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  33. ब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार

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  34. बहुत दर्द भरी रचना एसा दर्द का एहसास किसी और ब्लॉग में महसूस नहीं हुआ इस रचना ने तो हमे भी गमगीन कर दिया दोस्त पर इसे हकीक़त से दूर ही रखना |
    बहुत सुन्दर और दर्द को बहुत खूबसूरती से चित्रित करती रचना |

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  35. bahut acchi nazm...achhi abhivyakti aur shabdon ka chayan bahut acchaa.

    aapki rachna dil ko chhu gayi.

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  36. sunder rachna par udaas badi hai..........

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

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  38. Raat ki syahi subah ke harf ko rang deti hai...kahin na kahin us teergi se ek sunahare bhavisya ka suraj nikalta hai...
    bahut acchi prastuti hai..apki shaili aur bhavon ki abhivyakti baandh lerti hai..
    Shatshah dhanyavaad aisi rachnaaon ke liye.
    कल जहाँ ....लहर ठहर गई थी और समुंदर फेंक गया था उसपर रहम जैसे चंद अल्फाज़ जहाँ दर्द औरत होने का मुआवज़ा मांगने लगे थे ...वहीँ मेरी गिरी हुई आँख का पानी और झुक गया था ....
    Kya bhavavyakti hai..

    Aapne meri rachnayen padhi aur saraha uske liye bhi dhanyavad.Ji han, sari nazmein meri hi hain...koshish karta hun likhne ki..apne ko spandanheen nahin kar sakta...
    Koshish nahin karunga wo karne ki jo likha,nischint rahiye.
    Punah Dhanyavaad.

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  39. पीछे पलटती हूँ ...
    तो सामने रात खड़ी है
    स्याह रात .....
    उदासी के साथ ....
    हाथों में मेरी वही फटी
    चादर लिए .....!!

    बेमिसाल पंक्तियाँ.....बेहतरीन नज़्म

    ReplyDelete
  40. सटीक शब्‍दों में उमड़ती भावनाएं.

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  41. udasi ke sayon me lipti nazm...bahut sundar...

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  42. अकेलेपन का अहसास दिलाती रचना ....भूलने की कोशिश क्यों न की जाए !
    शुभकामनायें आपको !!

    ReplyDelete
  43. बहुत सुन्दर और दर्द को बहुत खूबसूरती से चित्रित करती रचना |
    .........बहुत सुन्दर..आभार

    ReplyDelete
  44. लो ओढ़ लो अपनी वही चादर
    फटी है तो क्या .....?
    है तो तुम्हारी अपनी न , बरसों से ....
    कुछ और लगा लेना टाँके
    कुछ और सी लेना पैबंद
    कब्रें सवाल तो न करेंगी ..?
    तोहमत तो न लगायेंगी ...?
    अब क्या करोगी हँसी का लिबास ...?
    औरत की किस्मत मे पैबन्द लगाने के सिवा बचता ही क्या है। मार्मिक , दिल को छू लेने वाली अभिव्यक्ति। आभार।

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  45. अरे शब्द हि कहाँ बचे..... कि कुछ लिख सकूँ....

    बस आह मन कि वाह बन के निकल गयी...

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  46. @कहीं मेरे लिए ही तो नहीं लिखी आपने ये पोस्ट ......
    ): ):

    अपनेपन से कहे यह मीठे बोल पढ़कर तमाम तकलीफ भूल हंस पड़ा ! आभार आपका ...

    ReplyDelete
  47. रात का स्याह जब हृदय में आकर मिल जाये तो पीड़ा बढ़ जाती है।

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  48. आपकी इस नज़्म पर लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है लेकिन प्रसाद जी की दो पंक्तिया लिखने का जी है .जी भर आया है .

    "जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई
    दुर्दिन में आंसू बनकर वह , आज बरसने आयी "

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  49. पंक्ति दर पंक्ति कविता का हर शब्द बांधता रहा। पूरी कविता पढ़कर ऐसा लगा जैसे मैं भी उदासी की गिरफ़्त में आ गया होऊँ… बहुत खूबसूरत हृदय-स्पर्शी कविता है आपकी…

    ReplyDelete
  50. जाने क्यूँ ये लोग बेतहाशा हँसने लगे हैं चूडियाँ कटघरे में खड़ी हैरानी से मुझे देखती हैं किसी ने मेरी कब्र का चेहरा नाखूनों से कुरेद लिया है नज़्म फूल मसल रही है कब्र पर दीया बुझा पड़ा है मिट्टी खामोश है .... मेरे दर्द की चादर और फट गई है ....मैं लौट आती हूँ वहाँ , जहाँ लहर ठहरी हुई थी ..

    mujhe dar lagta hai aapko comment karne me.... kahi mere shabd chhote na pad jae.
    bahut-2 badhai.

    ReplyDelete
  51. आदरणीया हीर जी '

    सभी नज्मों को पढने के बाद कुछ टीका-टिप्पड़ी करने का मन नहीं करता , बस महसूस कर पा रहा हूँ |

    बस पूर्व की भांति अपूर्व !

    ReplyDelete
  52. बहुत सुंदर हृदय-स्पर्शी कविता

    ReplyDelete
  53. जहाँ दर्द औरत होने का
    मुआवज़ा मांगने लगे थे ...
    वहीँ मेरी गिरी हुई आँख का पानी
    और झुक गया था ..........

    आपकी नज्में पढ़कर मैं रोमांचित हो जाता हूँ ,
    अद्भुत है आप की भाषा .....जैसे भाव अपनी
    पसंद के शब्द चुनने को स्वतंत्र हैं आपके यहाँ !
    दिल के बहुत करीब लगी यह नज़्म !

    ReplyDelete
  54. "जहाँ दर्द औरत होने का/?मुआवज़ा मांगने लगे थे .../वहीँ मेरी गिरी हुई आँख का पानी /और झुक गया था ...." कितनी मार्मिक हैं आपकी कहन. अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान

    ReplyDelete
  55. आद.मिसिर जी, अब्निश जी और रवि जी ,

    जहां सभी ने नज़्म में उदासी और दर्द देखा
    वहीँ आपने भाषा ,कहन और शाब्दिक प्रयोग भी देखे
    और उन पंक्तियों का चुनाव किया
    जो मुझे बेहद प्रिय थीं ....
    शुक्रिया .....

    ReplyDelete
  56. udasiyon ko shbdon ka jama phnana koi aapse seekhe ki cadar pe sitare tk jate hai our vkt likal jata hai unhe ginte ginte .

    ReplyDelete
  57. जहाँ दर्द औरत होने का
    मुआवज़ा मांगने लगे थे ...
    वहीँ मेरी गिरी हुई आँख का पानी
    और झुक गया था ....
    .............अंतर्मन को अनायास ही सोंचने पर विवश करती पंक्तियाँ ...और ...

    दूर पहाड़ी से दौड़ी चली आई थी उदासी
    गले लग कर बोली .........
    क्यूँ सस्ते में ही घोल देती हो ये आँसू
    लो ओढ़ लो अपनी वही चादर
    फटी है तो क्या .....?
    है तो तुम्हारी अपनी न , बरसों से ....
    कुछ और लगा लेना टाँके ....
    ....मुझा जैसा नवागंतुक क्या टिप्पड़ी करे आपके लिखे पर ....बस सीखते ही जाना है जीते ही जाना है वो भाव जो आपकी लेखनी से प्रवाहित होते हैं ...भाग्यशाली हूँ जो ऐसे सशक्त लेखन का गवाह हूँ.

    ReplyDelete
  58. सशक्त चिंतन..

    ReplyDelete
  59. यह नज़्म है या दिल की दीवारों पर किसी गहरे जख्म से रिसता लहू है ।

    नज़्म फूल मसल रही है --कब्र पर दीया बुझा पड़ा है--- मिट्टी खामोश है --
    ज़रूर आसमां ने भी आंसूं बहाए होंगे ।

    लगता है जैसे सारे जहाँ का दर्द समेट दिया है इस नज़्म में ।

    गोवा से लौटा तो अभी यह नज़्म पढ़कर लगा जैसे समुद्र की लहरें चट्टान से टकरा कर कतरा कतरा हुई जा रही हैं ।

    ReplyDelete
  60. दिल को छु गई नज़्म ...
    आपके लेखन की क्या बात है !
    खुबसुरत रचना।

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  61. बेहतरीन ...
    अब मै क्या कहूँ शब्द नहीं मिलते आपको पढने के बाद.

    ReplyDelete
  62. अच्छे भाव समेटे बढ़िया रचना .


    हमारे प्रयास में सहयोगी बने फालोवर बनके उत्साह वर्धन करिए
    आइये हमारे साथ

    यूबीए पर

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  63. "कुछ और लगा लेना टाँके
    कुछ और सी लेना पैबंद
    कब्रें सवाल तो न करेंगी ..?"

    हर पंक्ति उदासी की परत दर परत बन दिलो-दिमाग पे छा जाती है.
    बेहतरीन नज़्म

    ReplyDelete
  64. एक दिन मुझे आपकी कवितायें समझ में आ ही जाएंगी.....
    इसी उम्मीद मे...
    आशीष
    --
    लम्हा!!!

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  65. पीछे पलटती हूँ ...
    तो सामने रात खड़ी है
    स्याह रात .....
    उदासी के साथ ....
    हाथों में मेरी वही फटी
    चादर लिए....!!

    शादी में गई थी --आते ही आपकी नज्म पड़ी --दिल खुश हो गया --उदासी में लिपटी हुई एक और नज्म ---|

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  66. बहुत ही बढ़िया और मायूसी भरा दर्द

    ReplyDelete
  67. n ye rat kategi , n ye chadar sath degi .....aapke lafz kamaal ke hain ...

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  68. आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISH said...

    एक दिन मुझे आपकी कवितायें समझ में आ ही जाएंगी.....
    इसी उम्मीद मे...
    आशीष

    ):):

    ReplyDelete
  69. दर्द भी कभी-कभी बहुत सुकून देता है।

    आपकी कविताएं हृदय के साथ सहजता से तादात्म्य स्थापित कर लेती हैं।

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  70. ''lo odh lo apni wahi chadar ''
    ..kamal hai harkeerat

    ReplyDelete
  71. .पीछे पलटती हूँ ...तो सामने रात खड़ी है स्याह रात .....उदासी के साथ ....हाथों में मेरी वही फटी चादर लिए .....!!
    udsadi ka jiwant nazara...

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