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Monday, December 9, 2013

मुहब्बत कब मरी है …

मुहब्बत कब मरी है …

चलो आज लिख देते हैं
सिलसिलेवार दास्तान
तमाम उम्र के मुर्दा शब्दों की
जहां मुहब्बतों के कितने ही फूल
ख़ुदकुशी कर सोये पड़े हैं
कब्रों में …

तुम बताना स्याह लफ्ज़
पागल क्यों होना चाहते थे
टूटे चाँद की जुबान खामोश क्यों थी
कोई कैद कर लेता है बामशक्कत
मुहब्बतों के पेड़ों की छाँव
दो टुकड़ों में काटकर
फेंक देता है चनाब में ....

सुनो ....
मुहब्बत कब मरी है
वह तो ज़िंदा है कब्र में भी
कभी मेरी आँखों से झाँक कर देखना
उस संगमरमरी बुत में भी
वह मुस्कुराएगी …

यकीनन ....
वह फिर लिखेगी इतिहास
'कुबूल - कुबूल' की जगह वह नकार देगी
तुम्हारी हैवानियत की तल्ख़ आवाज़
बिस्तर पर चिने जाने से बेहतर है
वह खरोंच ले अपने ज़ख्म
और बुझे हुए अक्षरों से
फिर मुहब्बत लिख दे …!!

हीर …

21 comments:

  1. यकीनन ....
    वह फिर लिखेगी इतिहास
    'कुबूल - कुबूल' की जगह वह नकार देगी
    तुम्हारी हैवानियत की तल्ख़ आवाज़
    बिस्तर पर चिने जाने से बेहतर है
    वह खरोंच ले अपने ज़ख्म
    और बुझे हुए अक्षरों से
    फिर मुहब्बत लिख दे …!!
    हैवानियत के विरुद्ध उठती आवाज -बहुत सुन्दर
    नई पोस्ट नेता चरित्रं
    new post हाइगा -जानवर

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  2. बिस्तर पर चिने जाने से बेहतर है
    वह खरोंच ले अपने ज़ख्म
    और बुझे हुए अक्षरों से
    फिर मुहब्बत लिख दे …!!
    बहुत ही सुंदर नज्‍म..बधाई

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  3. ☆★☆★☆


    कभी मेरी आँखों से झाँक कर देखना
    उस संगमरमरी बुत में भी
    वह मुस्कुराएगी …
    यकीनन ....
    वह फिर लिखेगी इतिहास

    वाह कहूं या आह!

    आदरणीया हरकीरत 'हीर' जी
    हमेशा की तरह आपकी पहचान के अनुरूप
    हर्फ-हर्फ में दर्द के दरीचे !
    पंक्ति-पंक्ति में काव्य-सौंदर्य !!
    वाक्य-वाक्य में शिल्प-सौष्ठव !!!

    सुंदर श्रेष्ठ सृजन हेतु
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    ईश्वर आपको स्वस्थ-सानंद रखे...

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. बहुत ही सुंदर नज्‍म..बधाई

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  5. सुनो ....
    मुहब्बत कब मरी है
    वह तो ज़िंदा है कब्र में भी
    कभी मेरी आँखों से झाँक कर देखना
    उस संगमरमरी बुत में भी
    वह मुस्कुराएगी …

    AAPANE SACH KAHA YE KAYANAT TAK ZINDA RAHATI HAI

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  6. बहुत ऊंची है उड़ान तेरी,
    तेरे शब्‍द ख्‍याल पहचान तेरी

    उम्‍दा। वह खरोंच ले अपने ज़ख्म
    और बुझे हुए अक्षरों से
    फिर मुहब्बत लिख दे …!!

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (10-12-2013) को मंगलवारीय चर्चा --1456 कमल से नहीं झाड़ू से पिटे हैं हम में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. Mohabbat kab mari hai ...

    Waah ! Bahut khoob

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  9. तुम्हारी हैवानियत की तल्ख़ आवाज़
    बिस्तर पर चिने जाने से बेहतर है
    वह खरोंच ले अपने ज़ख्म
    और बुझे हुए अक्षरों से
    फिर मुहब्बत लिख दे …!!

    आमीन ....

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  10. एक शाख़ पर टिका है ....
    http://www.parikalpnaa.com/2013/12/blog-post_10.html

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  11. बहुत ही बेहतरीन रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. मुहब्बत के नाम पे कैसे खरोंच ले वो अपना जख्म ... उसे मिटना होगा हमेशा हमेशा के लिए ...

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  13. भाई राजेन्द्र जी जैसे लफ्ज़ नहीं हैं हमारे पास , तारीफ़ करने के लिए ! :)
    शुभकामनायें।

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  14. बहुत खूबसूरत.......वाकई...मोहब्बत को क्या खूब जाना है ...!!!

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  15. प्यार की आस, अधिकार की प्यास, व्यापार का प्रयास

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  16. bahut umdaa...samvedana se bhari huii.

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