मित्रो
, बेहद ख़ुशी की बात है आज मेरा पंजाबी का काव्य संग्रह .''खामोश चीखां
'' ( खामोश चीखें ) छप कर आ गया है ....जोकि दिल्ली 'शिलालेख प्रकाशन' से
प्रकाशित हुआ है .....इस पुस्तक के प्रकाशन का सम्पूर्ण श्रेय इमरोज़ जी
को जाता है ...'शिलालेख प्रकाशन' से अब तक अमृता-प्रीतम की पुस्तकें
प्रकाशित होती रही हैं इमरोज़ जी ने मेरा यह काव्य संग्रह भी वहीँ से
प्रकाशित करवाया ...इस पुस्तक में इमरोज़ जी के बनाये
३० चित्र हैं ....कवर पृष्ठ भी उन्हीं का बनाया हुआ है ... ....समर्पित
है -'दुनिया के तमाम उन शख्सों को जो मुहब्बत को देह नहीं समझते ' ......
इस काव्य संग्रह की एक छोटी सी नज़्म आप सब लिए .....
तुम और मैं ....
तुमने तो ..
कई बार मेरा हाथ पकड़ा
बुलाया भी
मैं ही हवाओं का
मुकाबला न कर सकी
वे मेरा घर भी उजाड़ गईं
और तुम्हारा भी ....!!
बहुत ख़ूब,
ReplyDeleteकमबख़्त ये हवायें, इन्हें कौन रोकेगा भला।
आपको ढेर सारी बधाइयाँ
ReplyDeleteथोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कह गयीं आप !!
बधाई बधाई हीर जी....
ReplyDeleteक्या हिंदी में अनुवाद भी उपलब्ध हो सकेगा???
सादर
अनु
dher sari badhaiyaan
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ........... हीर कहूँ या अमृता की छवि
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई .....
ReplyDeleteखूबसूरत नज़्म ....
बहुत बहुत बधाई आपको..... लेखन की यात्रा यूँ ही चलती रहे, शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत ख़ूब,
ReplyDeleteआपको ढेर सारी बधाइयाँ,
बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteविपरीत हवाओं का मुकाबला करने के लिए,
ReplyDeleteबड़ी हिम्मत चाहिए होती है ...
सुन्दर नज्म .....पुस्तक प्रकाशन की ढेरों बधाई जी, !
बहुत-बहुत बधाई सहित अनंत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteइस पुस्तक के प्रकाशन की ....
सादर
काव्य संग्रह के लिए बधाई और शुभ कामनाएं
ReplyDeleteलिखते रहिये ..
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ओर शुभकामनायें ...
ReplyDeleteकुछ ही शब्दों में दूर का लेखा जिखा लिख दिया ..
नज्म से पता लग रहा है कि वाकई नायाब नज्में होंगी इसमे, हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ...
ReplyDelete---------------
हिंदी में पढ़ने को कब मिलेगी ?
अच्छा प्रयास है। बधाई।
ReplyDelete-- जो मोहब्बत को देह नहीं समझते -- वाह , बहुत खूब।
दराल साहब ये प्रयास मेरा था ही नहीं जो कुछ किया इमरोज़ जी ने किया ...मैंने तो बस नज्में भेज दीं ....
ReplyDeleteमैं ही हवाओं का
ReplyDeleteमुकाबला न कर सकी
वे मेरा घर भी उजाड़ गईं
और तुम्हारा भी ....!!
बेहतरीन नज्मों के प्रकाशन के लिए बधाई
प्रयास करके संग्रह का आनंद लिया जायेगा
बहुत सुन्दर. बधाइयां.
ReplyDeleteखूबसूरत नज़्म,काव्य-संग्रह के लिए बधाइयां ओर शुभ-कामनाएं....
ReplyDeleteवाह ..लख लख बधाइयां
ReplyDeleteकाव्य संग्रह की बहुत बहुत बधाइयां !
ReplyDeleteनज़्म बहुत खुबसूरत बन पड़ी है !
हरकीरत जी त्वानू लख लख वदैयाँ | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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तुमने तो ..
ReplyDeleteकई बार मेरा हाथ पकड़ा
बुलाया भी
मैं ही हवाओं का
मुकाबला न कर सकी
वे मेरा घर भी उजाड़ गईं
और तुम्हारा भी ....!!
....यह छोटीसी लेकिन बहुत बड़ी कविता अगर इसी किताब का एक अंश है ..तो पूरी किताब...!!!पढ़ने की उत्कंठा तीव्र हो गयी.....बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत उपलब्धि के लिए
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteBadhaayiyan ji...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हीर जी !
ReplyDeleteवाह क्या बात है.....खूबसूरत.." जो मोहब्बत को देह नहीं समझते .." दाद कूल फरमाइयेगा ...!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ।।
ReplyDeletemem
ReplyDeletepranam , punjaabi kaavy sangrah ke liye bahut bahut badhai , pustak apne aap me naayab hogi kyunki ek imraj saahab ke chitro ki aavy karti aur doosri aap ke bemisaal nazme .
sunder choti si kavita ke liye bhi badhai
saadar
सुन्दर पंक्तियाँ. बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत और बहुत ही मुबारकबाद ! आपका पंजाबी के दालान में पंजाबी लफ़्ज़ों के साथ स्वागत है , लफ्ज़ फूलों जैसे तो हो सकते हैं लेकिन आपकी कविता जितने कीमती नहीं !
ReplyDeleteआदरणीय दर्शन जी उससे भी कीमती आपकी यहाँ हाजिरी है ....
ReplyDeleteपुस्तकें अभी मिली नहीं ...मिलते ही भेजती हूँ आपको ....
लेखन का सफर ऐसे ही निरवरत चलता रहे और आप नित नयी ऊचाइयां छुए.
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई और शुभकामनायें!
गहन एहसास ...बहुत सुन्दर नज़्म ...और हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई ...!!
ReplyDeleteगहन एहसास ...बहुत सुन्दर नज़्म ...और हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई ...!!
ReplyDeletesankalan to dekhna padega
ReplyDeleteapko subhkamnayen !
ReplyDeleteBadhaee bahut bahut.
ReplyDeleteवाह हीर जी वाह..मुबारक हो किताब के प्रकाशन का....अमृता-इमरोज के साथ आप भी जुड़ गई है। एक अनोखा रिश्ता...वैसे भी जहां मोहब्बत हो...मोहब्बत को मिलते शब्द हों..वहां अनोखा औऱ अपनत्व से भरा रिश्ता जुड़ ही जाता है। बहुत दिन बाद आना सार्थक हो गया आपके ब्लॉग पर।
ReplyDeleteइन हवाओ क साथ बह जाइये
ReplyDeleteये जहा ले जाये चले जाओ
बधाई !
आपको बहुत बधाई व सादर नमस्कार ..♥..
ReplyDeleteहरकीरत जी।
ReplyDeleteमैं इस पुस्तक को पढना चाहता हूँ।
बताइए कैसे और कहाँ से प्राप्त करूँ इसे।
shaandaar!
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