Pages

Pages - Menu

Wednesday, August 15, 2012

आज़ादी से कुछ सवाल ......

Inline image 1

ज़ादी पर कुछ लिखना चाहा तो जेहन में पिछले महीने की घटी घटनाएं अभी ताजा थीं ....घटा तो यहाँ बहुत कुछ कोकराझार और धुबड़ी  में जो  हजारों लोग बेघर बैठे हैं उनके लिए क्या आज़ादी ....? 9 जुलाई को  जी.एस.रोड में  घटी घटना जहां इक लड़की की  इज्ज़त 20 लड़कों द्वारा तार-तार कर दी जाती है......२२ जुलाई २०१२ राजस्थान के उदयपुर जिले में   एक शर्मसार कर देने वाले घटनाक्रम में युवती को  प्रेम करने के जुर्म में उसके प्रेमी के साथ उसे पूरे गांव के सामने निर्वस्त कर पीटा  जाता है और नंगा कर पेड़ से बांधा दिया  जाता है .....१६ जुलाई २०१२ इंदौर में  एक महिला पिछले चार सालों से पति द्वारा किये गए असहनीय कृत्य को अपने सीने में छुपाये ख़ुदकुशी कर  लेती है.... शंकालु पति ने अमानवीयता की सारी हदें पार करते हुए पत्नी के गुप्तांग पर ताला लगा  रखा  था । इसका खुलासा  तब हुआ जब अस्पताल में डॉक्टरों ने जांच की .....ऐसी घटनाओं को देखते हुए  सोचती हूँ  कि हम कितने स्वतंत्र हुए हैं ......? या महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर क्या स्तिथि है ......? क्या आज़ादी का गरीब तबके में कोई महत्त्व है ...? क्या आज़ादी सिर्फ बड़े लोगों का ज़श्न बन कर नहीं रह गई है .....? इस बार सोचा यही सवाल आज़ादी से क्यों न किये जायें .....

आज़ादी पर मेरे कुछ हाइकू देखें  यहाँ .......

आज़ादी से कुछ सवाल ......


रुको ....!
जरा ठहरो अय आज़ादी .....
तुम्हें केवल ज़श्न मनाने के लिए
हमने नहीं दिया था तिरंगा
इसे फहराने से पहले तुम्हें
देने होंगे मेरे कुछ सवालों के जवाब ....

उस दिन तुम कहाँ थी
जिस दिन यहाँ बीस लोग बीच सड़क पर
उतार रहे थे मेरे कपड़े ....?
या फिर उस दिन ....
जिस दिन प्रेम करने के जुर्म में
मुझे नंगा कर लटका दिया गया था
दरख़्त से ....?
या उस दिन ....
जब मेरी खुदकशी के बाद तुमने
खोला था ताला मेरे गुप्तांग से ...?
या फिर उस दिन ...
जिस दिन नन्हीं सी मेरी लाश
तुम्हें मिली थी कूड़ेदान में ...?

मौन क्यों हो ...?
लगा लो झूठ का कितना ही आवरण भले
पर यह सच है ....
तुम  छिपी बैठी हो सिर्फ और सिर्फ
अमीरजादों और नेताओं की टोपियों तले
कभी किसी गरीब  की झोंपड़ी में झांकना
तुम  टंगी मिलोगी किसी
सड़े हुए खाली थैले में
या किसी टूटी खाट  पर
 ज़िन्दगी की आखिरी साँसे गिनती
फुटपाथों पर कूड़े के ढेर में देखना
कटे अंगों की चीखों में
जहां तुम्हें जन्म देने का भी मुझे
अधिकार नहीं ....

आज़ादी ...
जाओ लौट जाओ ,पहले
पाक और साफ कर लो अपनी आन
 खोल दो मेरे बंधन
जोड़ दो मेरे कटे पंख ...
कर दो मुझे भी स्वतंत्र
फिर हम और तुम मिल कर गायेंगे
आसमां में ....
जन ,गण  मन का
पावन गान ....!!

54 comments:

  1. excellent ,marvellous,,
    i am speechless Harkeerat ji
    aatma ko chhoo liya ek kadwi sachchai ko bayan karti ap ki is kavita ne

    ap ki lekhni ko salam !!

    ReplyDelete
  2. बहुत बढिया रचना है सही सवाल उठाये...बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  3. बहुत खूबसूरत रचना………………स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  4. सार्थक एवं विचारणीय भाव लिए रचना...

    ReplyDelete
  5. bahut khoob...
    shandar rachana

    ReplyDelete
  6. आओ एक और जंग की तैयारी करें
    पहले अपनों के लिए लड़े थे
    आज अपनों से लड़ना ही होगा .… !!दीदी के शब्द
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ .... !

    ReplyDelete
  7. आज़ादी ...
    जाओ लौट जाओ ,पहले
    पाक और साफ कर लो अपनी आन
    खोल दो मेरे बंधन
    जोड़ दो मेरे कटे पंख ...
    कर दो मुझे भी स्वतंत्र
    फिर हम और तुम मिल कर गायेंगे
    आसमां में ....


    ....…स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  8. भारत के ६६वे स्वाधीनता , स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाइयाँ ढेरों अनेकों शुभ-कामनाएं

    ReplyDelete
  9. हमारे पूर्वजों ने तो हमें पाक साफ आज़ादी ही सौंपी थी , अपने खून से सींचकर .
    हमने ही इसे नापाक बना दिया .
    अभी तो लड़नी है लड़ाई , गुलामी की इन जंजीरों से जिनमे जकड़े , आज के युवा भूल रहे हैं आज़ादी की कीमत और महत्त्व .

    सोचने पर मजबूर करती , झंझोड़ने वाली रचना .
    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें .

    ReplyDelete
  10. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  11. वास्तविकता का सुन्दर चित्रण हुआ है आपकी इस कविता में

    ReplyDelete
  12. मार्मिक .. रोंगटे खड़े हो गए इस राच्जना को पढ़ के आपकी ... ये आज़ादी क्या सच्ची है ...

    ReplyDelete
  13. झकझोर देती है आपकी कविता... शायद आपके सवाल का उत्तर ना मिले... कोई दे न सके.... ऐसे में आज़ादी की क्या और कैसे शुभकामना दूं...

    ReplyDelete
  14. मैंने जब भी देखा
    वो मुझे
    जार-जार रोती मिली ।
    जब भी पूछा
    कि आख़िर हुआ क्या?
    वो मारे डर के ख़ामोश हो जाती।
    एक दिन मैंने कहा
    डरो मत, कुछ तो बोलो
    वो बड़ी मुश्किल से बोल पाई
    सिर्फ़ इतना
    कि
    मैं जेल से निकल कर
    हर घर में क़ैद हो गई हूँ
    जहाँ एक अदद जेलर होता है
    और होते हैं
    उसके दिये कुछ बच्चे
    जिनकी गुलामी में
    मैं
    ताज़िन्दगी
    बा-मशक्कत
    सज़ा भोगती हूँ
    ना जाने किस अपराध की।
    मैंने पूछा-
    ....लेकिन तुम्हारी वर्दी पर
    कहीं क़ैदी नम्बर तो लिखा नहीं
    कैसे मान लूँ
    कि तुम क़ैद हो ?
    वो बोली-
    यह भी मेरी सज़ा का एक हिस्सा है
    कि मुझे नम्बर से नहीं
    मेरे नाम से पुकारा जायेगा
    मैं इस मुल्क की "आज़ादी" हूँ

    हीर जी को आदाब ! एक मुद्दत के बाद आज आपकी लेखनी को सलाम करने का मौका मिला है।

    ReplyDelete
  15. आपकी भावनाओं को सलाम है हरकीरत जी। कल मैं भी कुछ ऐसे ही सवालों से दो-चार हो रहा था। आपकी कविता का शीर्षक देखा तो लगा कि सवाल और संदेह बाकियों के मन में भी है। कैसी आजादी अगर लोग गुलामी जैसे हालातों में जीने को मजबू हैं..बचपन सिसक रहा है...बालिकाओं की हत्या हो रही है...महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहा है..। संयोग से मैं उदयपुर के पास के जिले डूंगरपुर में हूं। आदिवासी अंचल में घटी इस घटना को यहां के संदर्भ में देखने से तस्वीर ज्यादा साफ होगी। आदिवासी अंचल में वैसे तो शादी के बाद किसी और के साथ शादी को मान्यता दी जाती है। लेकिन विवाहेत्तर संबंधों को समाज बड़ी गलत निगाह से देखता है...यहां तक कि उच्च शिक्षा पाने वाले युवा भी उसको उसी नजर से देखते हैं। जिसके बारे में व्यापक स्तर पर संवाद की जरूरत है। लेकि घटना और सनसनी के बाद मामला शांत हो जाता है। अगर इस घटना विशेष को छोड़कर क्षेत्र का मूल्यांकन करें तो आदिवासी समाज में महिला-पुरुष के संबंधों की स्थिति काफी बेहतर कही जा सकती है। महिलाएं अपने हितों के लिए आगे आ रही हैं। इस बारे में अपने ब्लॉग पर लिखा है। कोशिश करता हूं कि आगे भी इस तरह का लेखन करू जो आदिवासी समाज के बारे में एक समझ बनाने में मदद करे। अपनी समस्याएं सामने रख रही हैं। अंत में कविता के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  17. आपकी ज़्यादातर रचनाये दिल पर वार करती हैं ....आज दिलो दिमाग पर वार हुआ है..
    निःशब्द हूँ हीर जी...
    आज़ादी के पर्व की शुभकामनाएं देने का साहस नहीं जुटा पा रही हूँ.
    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  18. पता नहीं
    पर मुझे नहीं
    लगता अब
    वो लौट भी
    पायेगी
    उसे भी तो
    शर्म आयेगी
    आजादी
    कैसे कहूँ
    तू लौट जा !

    बहुत सटीक भाव !

    ReplyDelete
  19. बहुत सही सवाल उठाये हैं आपने. मन को उद्वेलित कर रहे हैं इसके भाव. मुझे सरदार अली जाफरी की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं

    "कौन आज़ाद हुआ..
    किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी
    मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का
    मादरे-हिंद के चेहरे पे उदासी है वही."

    ReplyDelete
  20. आज़ादी ...
    जाओ लौट जाओ ,पहले
    पाक और साफ कर लो अपनी आन
    खोल दो मेरे बंधन
    जोड़ दो मेरे कटे पंख ...
    कर दो मुझे भी स्वतंत्र
    फिर हम और तुम मिल कर गायेंगे
    आसमां में ....
    जन ,गण मन का
    पावन गान ....!!
    सचमुच शब्द नहीं हैं तारीफ़ के लिए हरकीरत जी. शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  21. कितना सुन्दर लिखा आपनें... वाह

    ReplyDelete
  22. हर चेतन मन यह सोचने को मजबूर |

    ReplyDelete
  23. atyant bhawpoorna wa wastawik ko chhooti rachana....umda

    ReplyDelete
  24. आज 16/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

    ReplyDelete
  25. आज़ादी तो पावन ही सौंपी गयी थी , हम ही हैं जो संभाल नहीं पाए और धूमिल कर दी उसकी प्रभा !

    ReplyDelete
  26. कौन खोलेगा बंधन आजादी के !
    अब तो यही प्रश्न सालता है !

    ReplyDelete
  27. बहुत सुंदर , ये सवाल सदियों से मुँह बाए खड़े हें और आजादी के बाद तो आपने विकराल रूप में आ खड़े हुए है. ऐसी मर्मस्पर्शी रचना के लिए आभार !

    ReplyDelete
  28. प्रश्न बेचैन कर देने वाले हैं पर उत्तर तो खोजने ही होंगे।

    ReplyDelete
  29. आजादी - यानि स्त्री विम्ब
    मुझे भी चाहिए जवाब
    किसने किया मेरा हरण
    काश्मीर से कन्याकुमारी तक
    कितने हैं कंस और दुह्शासन !

    ReplyDelete
  30. सवाल तो वास्तव में अबूझ हैं .........अब समय आ गया है की स्वतंत्र होने की वास्तविक परिभाषा का भान हमें हो जाये !

    ReplyDelete
  31. मर्मस्पर्शी रचना ...............मार्मिक एहसास।

    ReplyDelete
  32. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई
    भारत के 66 वेँ स्वाधीनता दिवस की

    इंडिया दर्पण
    की ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  33. उफ्फ्फ बेहद मार्मिक...सच है एक आजाद भारत का नग्न दृश्य है यह भी.....ये मानसिक गुलामी है इससे निजात पाकर ही हम सच में आजाद होंगे।

    ReplyDelete
  34. एक कटु सत्‍य यह भी है ... बेहद सशक्‍त अभिव्‍यक्ति ... आभार आपका

    ReplyDelete
  35. एक अन्दर तक सिहरा देने वाली प्रस्तुति बहुत मार्मिक चिंतनीय विषय ---हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  36. ऐसी टीस की बहुत जरूरत है...ये वो दर्द है जो होना जरूरी है..ऐसा ही कुछ झकझोर देने वाला लिखने और पढ़ने की जरूरत है भाषणबाजी के बजाए..अच्छा लगा यहां आकर

    ReplyDelete
  37. Itna bda sach aur jurrat......aap to hain hi sach ki pribhasha...slaaam....

    ReplyDelete
  38. बहुत ही सही सवाल उठाये है
    बढिया रचना !
    ਹਰਕੀਰਤ ਜੀ,
    ਹਿੰਦੀ ਮੇਂ ਤੋ ਆਪ ਹਾਇਕੁ ਲੇਖਨ ਮੇਂ ਆ ਹੀ ਚੁੱਕੀ ਹੋ ...ਅਬ ਪੰਜਾਬੀ ਭੀ ਹੋ ਜਾਏ ਤੋ ਕੈਸਾ ਰਹੇਗਾ। ਮੁਝੇ ਪਤਾ ਹੈ ਆਪ ਦੋਨੋਂ ਭਾਸ਼ਾ ਮੇਂ ਲਿਖਤੀ ਹੋ।
    ਪੰਜਾਬੀ ਹਾਇਕੁ ਕੇ ਲੀਏ ਪੰਜਾਬੀ ਹਾਇਕੁ ਬਲਾਗ ਕਾ ਲਿੰਕ ਭੇਜ ਰਹੀ ਹੂੰ...http://haikulok.blogspot.com.au
    ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ੀ ਹੋਗੀ ਗ਼ਰ ਆਪ ਪੰਜਾਬੀ ਹਾਇਕੁ ਸੇ ਭੀ ਜੁੜੇਂ।
    ਹਰਦੀਪ



    ReplyDelete
  39. सिर्फ ढेर सारी मुबारकबाद

    ReplyDelete
  40. Vastaviktaa se parichay karaati prastuti... Sundar

    ReplyDelete
  41. ਹਰਦੀਪ ਜੀ ਜੋ ਲਿਖਾ ਵੋ ਭੀ ਆਪ ਲੋਗੋੰ ਕੀ ਵਜਾਹ ਸੇ ਹੀ ....:))

    ਆਪ ਲੋਗ ਲਿੰਕ ਭੇਜਤੇ ਰਹਤੇ ਹੋ ਤੋ ਪੜ੍ਹ ਪੜ੍ਹ ਕਰ ਲਿਖਣੇ ਕੀ ਇਛਾ ਜਾਗ ਉਠੀ .....

    ਚਲਿਏ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਜਰੁਰ ਕਰੁਂਗੀ .....!!

    ReplyDelete
  42. हर दिन कहीं न कहीं कमजोर पर जुल्म का कहर बरपता है.. इसे देख तो यही लगता है आजादी भ्रम है.. एक भूल भुलैया है जिसमें आम आदमी भटकता फिरता है ..
    ........
    एक बार फिर से आजादी के मायने समझने की जरुरत आन पड़ी है ..
    ..कटु सत्य की जीवंत तस्वीर सबके सामने प्रस्तुत के लिए आभार

    ReplyDelete
  43. बेहद मार्मिक
    दुखद पर कटु सत्य....

    ReplyDelete
  44. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

    ReplyDelete
  45. आज़ादी ...
    जाओ लौट जाओ ,पहले
    पाक और साफ कर लो अपनी आन
    खोल दो मेरे बंधन
    जोड़ दो मेरे कटे पंख ...
    कर दो मुझे भी स्वतंत्र
    फिर हम और तुम मिल कर गायेंगे
    आसमां में ....
    जन ,गण मन का
    पावन गान ...
    ये आपकी क़लम का जादू है...मुबारकबाद...ईद की भी.

    ReplyDelete
  46. सोचनीय. हमें आजादी को सार्थक बनाना होगा.

    ReplyDelete
  47. सचमुच यह आजादी कहने भर को है -कहाँ आजाद हुए हम खुद अपने ही और अपनों के दिए कितने बन्धनों से -
    सोचने को मजबूर करती कविता !

    ReplyDelete
  48. pehle kadwa sach...fir ummeed ke cheentein....bauhat sunder..

    ReplyDelete
  49. सवाल ही सवाल ..केसी आज़ादी कोन सी आज़ादी..जीना मजबूरी है.बेहतरीन लिखा आपने. आपके अच्छे लिखे पर कुछ पंक्तिया याद आई सो अर्ज हैं
    तिजोरियों पर साँपों के पहरे हैं आज़ादी के दिन
    फुटपाथ पर वही भूखे बच्चे है आज़ादी के दिन
    स्कूल का झंडा नेता जी बाट में हो रहा है गीला
    बरसात में भीगते बच्चे खड़े हैं आज़ादी के दिन
    मजदूर को क्या मालूम आज है दिन कोन सा
    नंगा बदन वही खून पसीने है आज़ादी के दिन
    ..........
    अधनंगे बच्चे मोटरबाईको के साथ भाग रहे है
    नन्हे से हातो में बेचते तिरंगे आज़ादी के दिन
    कल एक विधायक क़ानून तोड़कर चले गए थे
    अखबार में आये फोटो उनके आज़ादी के दिन
    तुम भी तो आलम सवेरे ही से पव्वा खोल बेठे
    खूब ले रहे हो छुट्टी के मजे आज़ादी के दिन.

    ReplyDelete