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Thursday, July 26, 2012

तेरी होंद , रिश्ता दर्द और उडारी ......



Photo: Mum's Interview...........................!! 
 









               टी.वी.पर साक्षात्कार देती आपकी 'हीर'                                                     





'हिंदी जन चेतना' में प्रकाशित यही रचनायें                                                                  
(जुलाई- सितम्बर अंक 2012 )

 (1)

तेरी होंद.....                                                       
आज ...
न जाने क्यों
अंधे ज़ख्मों की हँसी
तेरी  होंद से
मुकरने लगी है ...
चलो यूँ करें मन
पास के गुरुद्वारे में                                                       
कुछ धूप-बत्ती जला दें                                              
और आँखें बंद कर
उसकी होंद को महसूस करें
अपने भीतर .....
                                                                   
(२)
रिश्ता दर्द ...

इक शज़र है
ज़ख्मों का कहीं भीतर
वक़्त बे वक़्त
उग आते हैं कुछ स्याह से पत्ते
रुत आये जब यादों की इस पर
हर्फ़ -हर्फ़ रिश्ता है
दर्द .....

(३)

उडारी.....

तेरे घर से
विदा होते वक़्त
छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
बाबुला.....
जो कभी बुलाओ तो याद रखना
अब नहीं होगी मेरे पास
पंखों की उडारी .....

(४)

पैरहन ...

वक़्त की....
 किलियों पे टंगा है
तकदीरों का पैरहन
नामुराद कोई उतारे
तो पहनूं .....

(५)

जली नज्में ....

रात चाँद ने
मुस्कुरा  के पूछा
कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
न कोई गीत न नज़्म ...?
मैंने कहा ..
मेरी हजारों नज्में
रोटी के साथ
तवे पे जल गईं .....

65 comments:

  1. तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी .....
    ....

    रात चाँद ने
    मुस्कुरा के पूछा
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....
    उफ् कुछ भी कहना कहां मुमकिन है आपके लिखे पर ... बस पढ़ना और आपको महसूस करना है ...

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  2. पढ़ रही हूँ बार बार.....जी भरे तो ठहरूं...

    तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी .....

    बहुत सुन्दर....
    बाबुल के घर जाने को तो बिना पंखों के भी उड़ जाती हैं बेटियाँ.....बस कोई जंजीर न बंधी हो पाँव में..

    सादर
    अनु

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  3. तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी .....

    यही तो बेबसी है

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  4. इक शज़र है
    ज़ख्मों का कहीं भीतर
    वक़्त बे वक़्त
    उग आते हैं कुछ स्याह से पत्ते / waah harkeerat

    ReplyDelete
  5. बहुत ही खुबसूरत...

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  6. पंखो की उडारी..........उफ़ जान ले गयी ..यह पंक्तियाँ ..बहुत सुन्दर ..

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  7. कितना दर्द ...छू कर हृदय की धड़कन बढ़ा गया ..बहुत बार पढ़ा.....
    बहुत सुंदर लिखा है हरकीरत जी .....!!

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  8. कैसे कहूं कि ऐसी कविता हर किसी की कलम का नसीब नहीं होती |

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  9. khoobsoorat najme...bas hond maane samajh nahi aya..

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  10. बहुत सुन्दर ..दिल को छूने वाली पंक्तियाँ

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  11. behad sundar kritiyan


    ----
    Tech Prevue Blogging ki baatein

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  12. हर्कीरत जी ..शब्द नहीं हैं मेरे पास ...कैसे आपकी लेखनी की तारीफ करूँ ...ऐसे भाव और ऐसी अभिव्यक्ति है कि मर्म को छू गयी ... बार बार पढ़ने से भी मन नहीं भरता ...इस्से पहले भी एक तिप्पणी की थी ..शायद स्पैम मे हो ...!!
    बहुत सुंदर लिखा है ..!!

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  13. शारदा जी आप तो पंजाबी हैं ..'.होंद' पंजाबी का ही शब्द है
    आजकल हिंदी में काफी व्यवहार हो रहा है ....'अस्तित्व'
    'teri होंद ' से मतलब ईश्वर के होने से है ....

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  14. वक़्त की....
    किलियों पे टंगा है
    तकदीरों का पैरहन
    नामुराद कोई उतारे
    तो पहनूं .....
    किसे कहूँ अपना किसे कह दू बेगाना
    आपने बात ऐसी कह दी ,कहाँ खोजूं पैमाना

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  15. सभी एक से बढ़कर एक ...टीस सी छोडती हुई

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  16. सभी सुंदर ...उडारी आँखें नम कर गयी ....

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  17. अभी अभी आपकी नज्मे पढ़ी . दिल को छु गयी . दूसरी वाली नज़्म तो बस अपनी सी लगी .. मेरे ही भावो को जैसे आपने लफ्ज़ दे दिए है .

    सलाम कबुल करे.
    विजय

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  18. रिश्ता दर्द . उडारी--- दोनो बहुत अच्छे लगे लेकिन सभी काबिले तारीफ हैं। बधाई।

    ReplyDelete
  19. रिश्ता दर्द . उडारी--- दोनो बहुत अच्छे लगे लेकिन सभी काबिले तारीफ हैं। बधाई।

    ReplyDelete
  20. रात चाँद ने
    मुस्कुरा के पूछा
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....

    वास्तविकता जिसमें बेपनाह दर्द है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  21. इक शज़र है
    ज़ख्मों का कहीं भीतर
    वक़्त बे वक़्त
    उग आते हैं कुछ स्याह से पत्ते
    रुत आये जब यादों की इस पर
    हर्फ़ -हर्फ़ रिश्ता है
    दर्द ..... आपका अंदाज अमृता प्रीतम को छूकर कलम उठाता है

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  22. तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी ...

    उफ़ ... कैसे सोच लेती हैं इतना सब कुछ ... दर्द की लकीर उतर जाती है पढ़ के और सोच के .... हर क्षणिका बेमिसाल ... कमाल ..

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  23. तारीफ तो सभी कर रहे हैं . हम तो आपको टी वी पर देख कर ज्यादा खुश होते यदि पता होता , कब आ रही हैं . लेकिन ख़ुशी अभी भी है . बधाई जी .
    कई नए लफ़्ज़ों को पढ़कर सर घूम सा रहा है . :)

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  24. @ उफ़ ... कैसे सोच लेती हैं इतना सब कुछ ...

    नासवा जी सोचना कैसा ....
    अगर विदा होते वक़्त बेटी अपने पंख
    खुद पिता के घर छोड़ कर नहीं आती
    तो ससुराल में तो कतर ही दिए जाते हैं
    ये तो जग जाहिर है ....
    विवाह के बाद अपनी मर्जी से कोई औरत जी पाई है भला ....?
    न जाने कितनी लक्ष्मण रेखाओं में उसकी हँसी गुम कर दी जाती है ....

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  25. बहुत ही बेहतरीन
    बनाई हैं
    मगर गुस्सा भी
    आ रहा है
    क्यों इतनी सुंदर
    सी नज्में
    रोटियों के
    संग जलाई हैं !!

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  26. बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  27. मन को छू लेने वाली रचनाएं....

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  28. स्वागतम हरकीरत जी,
    " उठती है इक टीस सी ... गहराइयों में,
    पढ़ के आपकी नज्में !"

    वेहतरीन ...वाह !!!

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  29. वक़्त की....
    किलियों पे टंगा है
    तकदीरों का पैरहन
    नामुराद कोई उतारे
    तो पहनूं .....

    गजब..हर क्षणिका दमदार..

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  30. इक शज़र है
    ज़ख्मों का कहीं भीतर
    वक़्त बे वक़्त
    उग आते हैं कुछ स्याह से पत्ते
    रुत आये जब यादों की इस पर
    हर्फ़ -हर्फ़ रिश्ता है
    दर्द .....

    एक से बढकर एक . कुछ खास है आपकी लेखनी में जो बिना पढ़े रहा नहीं जाता . पढ़ते वक्त लगता है जैसे अपना ही हाल पढ़ रहा हूँ .

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  31. बहुत सुन्दर व् मन को छू जाने वाली क्षणिकाएं .आभार

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  32. This comment has been removed by the author.

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  33. मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....

    वाह बेहतरीन, लाजवाब करती नज्में।

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  34. मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं ..... वाह!
    अद्भुत बिम्ब प्रयोग/संकेत होते हैं आपकी नज्मों में आदरणीया हीर जी...
    सभी क्षणिकाएं उम्दा...
    सादर बधाई स्वीकारें.

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  35. निशब्द कर दिया आपने .....वाह ..बेहद खूबसूरत लेखनी

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  36. हीर जी ,आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर

    वक़्त की....
    किलियों पे टंगा है
    तकदीरों का पैरहन
    नामुराद कोई उतारे
    तो पहनूं .....

    की कवाँ ...वाह...त्वाडा जवाब नहीं...हर क्षणिका दिल को झकझोर जाती है. लफ़्ज़ों को नज्मों को सजाने का हुनर कोई आप से सीखे...कमाल करदे ओ तुसी...
    नीरज

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  37. hamesha ki tarah awaak kar dene wali kshanikayen.

    HOND ka matlab theek se samajh nahi aaya.

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  38. आपकी अंतिम पंक्तियों में बहुत कड़वा सच उजागर हुआ है

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  39. तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी .....
    उफ़...बस कमाल ही है..

    ReplyDelete
  40. रात चाँद ने
    मुस्कुरा के पूछा
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....

    बस पढ़ता गया ...
    बहुत अच्छा लगा ..
    सुंदर !

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  41. रात चाँद ने 
    मुस्कुरा  के पूछा 
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में 
    रोटी के साथ 
    तवे पे जल गईं .....
    उफ़ कितना दर्द है आपकी रचना में .......
    मन को छू लेने वाली रचनाएं....

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  42. वक़्त की....
    किलियों पे टंगा है
    तकदीरों का पैरहन
    नामुराद कोई उतारे
    तो पहनूं .....

    क्या कहूँ बस सीधे दिल को छू जाती हैं आपकी नज्में.

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  43. तेरी "होंद"..... ने परेशानी में डाला ,जवाब पढ़ कर दूर भी हो गयी |
    तुम्हारे(आपके)बंधू, लिखे एहसास ..महसूस तो कर
    सकता हूँ लेकिन बयाँ नही ...!!! निशब्द!
    खुश रहो !

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  44. सुन्दर अति सुन्दर , शुभकामनाएं.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारें, प्रतीक्षा है आपकी .

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  45. chidiya da chamba re babul asi ud jana.....

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  46. वाह क्या बात है मज़ा आ गया

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  47. वाह-वाह.... !लाजवाब ,बेहतरीन नज्में .... :)

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  48. मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं ....
    shaandar...
    aapbeeti....

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  49. .

    "चलो यूँ करें मन
    पास के गुरुद्वारे में
    कुछ धूप-बत्ती जला दें
    और आँखें बंद कर
    उसकी होंद को महसूस करें
    अपने भीतर ....."

    … … …
    यही रास्ता है …
    जब चारों तरफ़ अंधेरा हो …
    प्रार्थना कर ! प्रार्थना कर ! जगत के पालनहारे से …

    "तेरी होंद....." के अलावा "उडारी....." और "पैरहन ..." ने मन पर प्रभाव छोड़ा … … …

    टी.वी.पर साक्षात्कार तथा 'हिंदी जन चेतना' में रचनाएं प्रकाशित होने पर बधाई !!

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  50. तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी .....
    ....

    रात चाँद ने
    मुस्कुरा के पूछा
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....

    इन दो नज्मों ने लिए मेरे पास शब्द जीरो हो गए हैं ..........आई म जस्ट फीलिंग !

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  51. मन को छूआ ही नही बल्की अंदर तक बैठ गई..

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  52. बहुत सुन्दर मन को छु लेनेवाली रचनाये
    बारहा पढ़ने लायक..
    बहुत - बहुत बेहतरीन:-)

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  53. khoobsoorat tashbeehen,gehre bhaav
    zaur-e-qalam aur ziaada

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  54. रात चाँद ने
    मुस्कुरा के पूछा
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....

    लाजवाब ,बेहतरीन नज्में....

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  55. उफ़ ... कमाल हैं सभी ... बस अंदर तक महसूस करने के लिए ...

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  56. वक़्त की....
    किलियों पे टंगा है
    तकदीरों का पैरहन
    नामुराद कोई उतारे
    तो पहनूं .....
    आदरणीया हरकीरत जी ...बहुत खूबसूरत जज्बात ...सब कुछ उतर जाएगा प्यार से सज जाएगा ..राहें आसन हो जाती हैं जब मन मजबूत कर कदम बढ़ते चलें
    रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई आप सपरिवार तथा मित्र मण्डली को भी ...
    भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

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  57. रात चाँद ने
    मुस्कुरा के पूछा
    कहाँ थी तुम इतने दिनों ...?
    न कोई गीत न नज़्म ...?
    मैंने कहा ..
    मेरी हजारों नज्में
    रोटी के साथ
    तवे पे जल गईं .....

    हीर जी इस नज्म ने तो घायल सा कर दिया ।

    हौंद का मतलब होना या अस्तित्व है क्या ।

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  58. aapki rachnayen padh kar bahut kuch kahne ka jee chahta hai..magar shabd shayad kahin ghum ho gaye hain..bas munh se waah waah..hi nikalta hai.

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  59. बहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।

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  60. बहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।

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  61. अति सुन्दर. बहुत भावपूर्ण शब्द.

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  62. "तेरे घर से
    विदा होते वक़्त
    छोड़े जा रही हूँ मैं अपने पंख
    बाबुला.....
    जो कभी बुलाओ तो याद रखना
    अब नहीं होगी मेरे पास
    पंखों की उडारी"
    वाह...सुन्दर,भावपूर्ण...बहुत बहुत बधाई...

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