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Friday, November 4, 2011

बिक गया अमृता का मकां ......

मेरी यही पोस्ट डेली न्यूज़ की पत्रिका खुशबू में कुछ इस प्रकार छपी जो मुझे मेल से वर्षा जी ने भेजी ....

बिक
गया अमृता का मकां ......


ਉਸ ਨਾਲ ਰਲ ਕੇ
ਇੱਟ ਇੱਟ ਕਮਾ ਕੇ
ਇੱਟ ਇੱਟ ਲਾ ਕੇ
ਇਕ ਮਕਾਨ ਬਣਾਇਆ ਸੀ
ਤੇ ਸਾਹ ਸਾਹ ਜਿਉਂ ਕੇ
ਇਕ ਸਾਥ ਵੀ…

ਸਾਥ ਤੇ ਸਾਥ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਵੀ
ਇਕ ਮਕਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ
ਇਹ ਮੈਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਅਦ
ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਹੈ…

ਹੁਣ ਸਾਮਾਨ ਤੇ ਮੇਰਾ
ਕੱਲ੍ਹ ਦੇ ਮਕਾਨ ਵਿਚ ਹੈ
ਤੇ ਮੈਂ ਸ਼ਿਫਟ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ-
ਸਾਥ ਦੇ ਮਕਾਨ ਵਿਚ…

ਮੇਰਾ ਨਵਾਂ ਪਤਾ
ਮਕਾਨ ਨੰਬਰ ਗਲੀ ਨੰਬਰ ਸੜਕ ਨੰਬਰ
ਇਲਾਕਾ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ
ਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਦਾ ਪਤਾ
ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ
ਆਪਣਾ ਆਪ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ…

-ਇਮਰੋਜ਼.....


अमृता की संजोयी यादें अब मलवे के ढेर में दफ़्न हो गयीं हैं ....

पिछले दिनों क्षणिकाओं के लिए इमरोज़ जी को कई बार फोन किया ....हर बार वो कहते जल्द ही भेज रहा हूँ ...मैं इन्तजार करती और फिर फोन करती ....आज करीबन चार महीने बाद इमरोज़ जी का कोरियर आया ...करीब ३५ पन्नो की सामग्री ...कुछ क्षणिकाएं ..कुछ नज्में ...कुछ शायरी ....बस नहीं था तो वो पता ....''२५ हौज ख़ास, दिल्ली '' ....

कई बार पन्ने पलट कर देखा इमरोज़ , एन -१३,
ग्रेटर कैलाश-१, फस्ट फ्लोर , न्यू दिल्ली .....पर हौज खास कहीं न दिखा ....

आज अचानक नेट पे एक पंजाबी साईट खोलते वक़्त इन पंक्तियों पर नज़रें जड़ सी गई ....'' इमरोज़-अमृता का हौज खास का घर ढह गया है '' उफ्फ.....दिल धक् सा रह गया .....अभी पिछले ही साल एक अज़ीज़ मित्र मेरी नज्में लेकर इमरोज़ जी के पास गए थे ...उन्होनें उस मकान की इक-इक वस्तू का कुछ यूँ ज़िक्र किया जैसे अमृता आज भी वहाँ साँस ले रही हो ...घर की इक -इक दीवार कैनवास बनी हुई थी और अमृता हर दीवार का आसमां ....उसके एवार्ड, उसकी तस्वीरें , उसकी पुस्तकें .....खुद इमरोज़ जी भी यूँ बात कर रहे थे जैसे अमृता अब भी उनके साथ हो ...पूछने पर उन्होंने कहा भी ,'अमृता गई ही कहाँ है , वो तो आज भी जिन्दा है ...घर की इक-इक दीवार में , छत पर खिले इक-इक फूल की महक में , इक-इक पत्ती में वह नज़्म बन खड़ी है ...मैं रोज़ सवेरे शाम इन्हें पानी देता हूँ वो मेरे साथ मुस्कुराती है ...हर ओर अमृता की होंद का एहसास ...'अमृता-इमरोज़' की सांझी नेम प्लेट , 'नागमणि' का नाम , वह दरवाजा जिस पर गुरमुखी में अमृता ने लिखा था ,'' परछाइयों को पकड़ने वालो ,छाती में जलती आग की कोई परछाई नहीं होती '' ....उफ्फ....कितना मुश्किल हुआ होगा इमरोज़ के लिए वह घर छोड़ना ....उन तमाम यादों को टूट कर बिखरते हुए देखना ....अमृता को गए ६ वर्ष हो गए ....उसकी यादें ...उसके सपने ...उसके दर्द उस घर के इक-इक ईंट में बसे हैं ....उफ्फ....यूँ लग रहा है जैसे जीते जी किसी ने मेरा कोई अंग काट लिया हो ....इमरोज़ ने क्यूँ कर जरा होगा ये सब ....दिल माना नहीं तुरंत फोन लगाया उन्हें ....पर मेरी आवाज़ भरी हुई थी ...सीधे पूछ बैठी ..अमृता की यादों को क्यूँकर ढहने दिया आपने ...उन्होंने कहा ढहा नहीं बेच दिया ...बच्चों को कुछ रकम की जरुरत थी ....यहाँ हमने दो फ़्लैट लिए हैं ....पर तुम मन छोटा न करो मैं अमृता की तमाम यादें अपने साथ ले आया हूँ ....वह नेम प्लेट , दरवाज़ा, तमाम तस्वीरें ,एवार्ड , उसका पलंग ....बल्कि अमृता का एक अलग से कमरा बना दिया है ..उससे भी अधिक सुन्दर ....कभी दिल्ली आई तो तुम्हें दिखाऊंगा ...और तुम कोई नज़्म क्यों नहीं भेज रही ..? लिख भी रही हो या नहीं ..? मैंने अभी ३१ को इक नज़्म लिखी है तुम्हें भेजता हूँ ...तुम्हें पता है न अमृता आई भी ३१ को थी और गई भी ३१ को ...?...मैंने शीर्षक भी '३१ ...' ही रखा है ....उन्होंने विषय मोड़ दिया था ...पर मेरा मन अभी भी हौज खास के उसी मकां में उलझा था ...कभी अमृता ने चाहा था कि उसका वह कमरा मियुजियम बने पर अब अमृता की तमाम यादों पर इक बहुमंजिला ईमारत तामीर होने जा रही थी ...क्या अमृता उस मिट्टी को छोड़ पायेगी ....? उसकी रूह उसकी आत्मा वहाँ के जर्रे-जर्रे में बसी है .....आह ....!...आज इतना तो कहूँगी कि पंजाब की साहित्यिक संस्थाएं , पंजाब सरकार , पंजाब साहित्य अकादमी अपने साहित्कारों की निशानियाँ सँभालने में नाकाम रही .....

ऊपर इमरोज़ की 'नए पते' पर लिखी इक नज़्म का हिंदी अनुवाद ......

उसके साथ मिलकर
ईट-ईट कमा कर
ईंट ईंट लगा कर
इक मकां बनाया था
और साँस-साँस जी कर
इक साथ भी ....

साथ और साथ का एहसास भी
इक मकां होता है
यह मुझे उसके जाने के बाद
पता चला है .....

अब सामान तो मेरा
कल के मकां में है
पर मैं सिफ्ट कर गया हूँ
साथ के मकां में ....

मेरा नया पता
मकान न. ,गली न.,सड़क न .
इलाका और शहर मैं ही हूँ
और अपने आप का पता
और कोई नहीं होता
अपना आप ही होता है ....

इमरोज़ .....(अनु: हरकीरत 'हीर')
*************************

यकीं नहीं होता
अब भी इमरोज़ ...
क्यूँ कर बाँट दी तुमने साँसे
यकीं मानों वो अब भी वहीँ है
क्यूँकर लगने दी तुमने
अपनी सांसों की कीमत ?
वह देख वह अब भी तड़प रही है
उस मलवे के ढेर तले ....
अपनी उसी नज़्म को तलाशती
जो कई बार उसने
तुम्हारी पीठ पर लिखी थी ...


याद होगा तुम्हें ....
यहीं ज़िन्दगी के कई पन्ने जन्में थे
यहीं ज़िस्म के कई अक्षर खिले
यहीं मोहब्बत ने दीयों में तेल डाला
यहीं ख़ामोशी ने लिबास उतारा
यहीं इश्क ने उम्र की कड़वाहट पी ...
तुमने क्यूँकर बोली लगने दी ....?
इमरोज़ ....!
तुमने क्यूँकर बाँट दी साँसें .....

वह घर घर नहीं था ...
मंदिर था इश्क का
वहीँ बैठ अमृता ने लिखे

कई पत्थरों पे फरमान
अम्बर के आले में सूरज को जलाया
धागे जोड़-जोड़ कर फटे शालुओं को सिया
आज तेरे हाथों से ये रौशनी कैसे गिर गई
इमरोज़ ....!
तूने छाती को चीरकर
दर्द क्यों न दिखलाया.... ?

इमरोज़ तूने क्यूँकर बाँट दी साँसे .....?
इमरोज़ तूने क्यूँकर बाँट दी साँसे .....??

हीर......

115 comments:

  1. धर्मयुग में अमृता प्रीतम ने अपने घर बनवाने से सम्बंधित संस्मरण लिखे थे....कि कैसे पैसे जोड़-जोड़ कर उन्होंने घर बनवाये और उनके उस घर की तमाम तस्वीरें भी छपी थीं उसमे कहीं कहीं अमृता प्रीतम की कोई नज़्म इमरोज़ ने बड़ी कलात्मकता से उकेरी थीं...धुंधली सी याद है उन तस्वीरों की

    जो लोग इस मकान का मोल नहीं समझ सके...उनसे क्या शिकवा

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  2. खूबसूरत नज्में

    पीडादायक घटना

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  3. आज आपने बहुत भावुक कर दिया, शब्द शब्द दर्द झलक रहा है।

    इमरोज़ तूने क्यूँकर बाँट दी साँसे .....??
    बहुत बेहतरीन।

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  4. आज इतना तो कहूँगी कि पंजाब की साहित्यिक संस्थाएं , पंजाब सरकार , पंजाब साहित्य अकादमी अपने साहित्कारों की निशानियाँ सँभालने में नाकाम रही .....

    ये केवल पँजाब की ही बात नहीं है हरकीरत जी ,कहने में दुख तो होता है पर ये हमारे देश की बदक़िस्मती है कि हमारे यहाँ साहित्यकारों को बहुत जल्द भुला दिया जाता है
    दुखदायी है वो सब कुछ जो हुआ

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. और अपने आप का पता
    और कोई नहीं होता
    अपना आप ही होता है ....

    आपके अनुवाद से सुन्दर नज्म पढने का मौका मिला..

    इमरोज जी ने मजबूरियों के बाद भी अमृता जी की यादें संजोने की कोशिश की. वैसे घर बिकने कि बात से बहुत तकलीफ हुई , सरकार या फिर शहर के बुद्धिजीवी भी मिलकर बचा सकते थे.

    घर कभी खाली नहीं होता..
    बसती है उसमें रूहें
    और बसाने वाले की
    सूरत और सीरत भी..
    बरसों बरस तक..
    चाहो तो जीलो
    संग उनके..
    सीख लो कुछ उनसे
    और बाँट लो उनकी तनहाई भी.

    आपका बहुत-बहुत शुक्रिया.. हमें या और भी कई जनों को शायद इस बात का पता नहीं चल पाता .

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  7. आपने सारा दर्द उतार दिया शब्दों में...
    बेहद पीड़ादायक है धरोहर का ढह जाना!

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  8. आदरणीया हीर जी
    सस्नेहाभिवादन !

    बिक गया अमृता का मकान ......
    पढ़ कर बहुत दुख हुआ
    दुख अमृता जी के मकान के ढहने का कम आपकी भावुकता की पराकाष्ठा से उत्पन्न एहसास "जीते जी किसी ने मेरा कोई अंग काट लिया हो" का अधिक हुआ …

    इमरोज़ ख़ुद आसानी से कह दे - "ढहा नहीं बेच दिया ...बच्चों को कुछ रकम की जरुरत थी ...."
    …और आप !!

    हर चीज़ नाशवान है हीर जी ! …अपने वश में है उतना तो हम अफ़सोस करें , बाकी चिंता परमात्मा पर छोड़दें तो बेहतर नहीं होगा ? माफ़ करें , अगर मैं आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हूं …
    …और अब जब मकान ढह ही चुका है , वहां किसी प्रयास से फिर वहां वैसा ही मकान बना भी दिया जाए ( जिसकी संभावना है भी नहीं ) तो भी वह बात तो बननी नहीं न !

    सच भी है - अपने आप का पता और कोई नहीं होता , अपना आप ही होता है .... बाकी नश्वर चीज़ों में किसी का अस्तित्व तलाशना , और ख़ुद को तबाह करके तलाशना सही नहीं ।
    आपसे अपनत्व महसूस होने के कारण कह रहा हूं …
    ख़ुद को संभालें …
    कुछ पंक्तियां याद हो आईं , आपको नज़्र हैं -
    जो लोग अभी तक नाम वफ़ा का लेते हैं
    वो जान के धोखे खाते , धोखे देते हैं
    हां ठोक बजा के हम ने हुकम लगाया है
    सब माया है
    जब देख लिया हर शख्स यहां हरजाई है
    इस शहर से दूर एक कुटिया हम ने बनाई है
    और उस कुटिया के माथे पर लिखवाया है
    सब माया है


    Always Be Happy & Remain Happy !

    हां , कविता मन छू लेने वाली है …

    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. मेरा नया पता
    मकान न. ,गली न.,सड़क न .
    इलाका और शहर मैं ही हूँ
    और अपने आप का पता
    और कोई नहीं होता
    अपना आप ही होता है ....

    कहें गहरे उतरते शब्द ..... मन मायूस हुआ अमृता जी के घर के बारे में जानकर .....

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  10. दुखद, यादों की भव्य इमारत को यूँ ढहाना उचित नहीं।

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  11. दुखद है, साहित्यिक हस्तियों की बहुमूल्य यादों का इस तरह छितरा जाना ...

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  12. अच्छा लगा पढ़ कर...हम सभी ...जड़ चीज़ों से तभी जुड पाते हैं..जब किसी सजीव को उससे जोड़ लेते हैं.....

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  13. साहित्य और साहित्यकार को लोग खासकर सत्ता मे बैठे लोग नही समझना चाहते। बहुत मार्मिक है यह प्रसंग। आपकी नज्मे भी खूबसूरत हैं।

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  14. "अक्सर
    यादों और ख़्वाबों की
    पूरी बारात तक समा जाती है
    उसके भूखे पेट में...
    सचमुच!
    मजबूरी की पेट बहुत बड़ी होती है."

    दुखद है यह जानना...
    जाने कितनी मजबूरी में उठाया गया होगा इमरोज जी द्वारा यह कदम... इस एहसास को भी आप ही लफ्ज़ दे सकती हैं...

    सादर....

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  15. इस 'पीर' पर आहत होता है मन,हीर जी.

    आपकी प्रस्तुति तीर की तरह दिल के पार हुई जी.

    मेरे ब्लॉग पर आप कभी आतीं थीं
    लगता है वो बात नही अब मेरे ब्लॉग में
    जो आपको भाती थी.

    आप ही बताईये मैं क्या करूँ.
    वह ही लिखूँ जो आपको भी पसंद आये.

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  16. pidadayak varnan hai...
    najmo ne bhi dil ko jhakjhor kar rakh diya..
    jai hind jai bharat

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  17. वह घर घर नहीं था ...
    मंदिर था इश्क का
    वहीँ बैठ अमृता ने लिखे
    कई पत्थरों पे फरमान
    अम्बर के आले में सूरज को जलाया
    धागे जोड़-जोड़ कर फटे शालुओं को सिया
    आज तेरे हाथों से ये रौशनी कैसे गिर गई
    इमरोज़ ....!
    तूने छाती को चीरकर
    दर्द क्यों न दिखलाया.... ?.....

    दर्द कौन दिखा पाता है
    जो दर्द जीता है
    वह दर्द देखता भी है

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  18. काफी मार्मिक है ये पोस्ट आपकी.........अमृता जी वाकई बहुत अच्छी फनकार थी............खुदा उनको जन्नत अता करे.......आमीन |

    उनकी प्रति आपके समर्पण के जज़्बे को सलाम |

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  19. खूबसूरत कविता और खूबसूरत अनुवाद

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  20. आप मेरे ब्लॉग पर आयीं,बहुत ही अच्छा लगा मुझे.आपके प्रश्न सद् चिंतन की तरफ उन्मुख करते हैं.मैंने आपके प्रश्नों का उत्तर अपने ब्लॉग पर देने का प्रयास किया है.समय मिले तो देख लीजियेगा,प्लीज.

    बहुत बहुत आभार आपका.

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  21. kuchh bol nahi paa raha hun...
    dil bhari bhari sa ho gaya..

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  22. दोनों ही रचनाएँ बेहद खूबसूरत और मर्मस्पर्शी हैं .

    लेकिन इमरोज़ ने जो फैसला लिया , वो सोच समझ कर ही लिया होगा .
    इस नश्वर संसार में किसी भी वस्तु से मोह नहीं पालना चाहिए , यह गीता का उपदेश है .

    यादें दिल में रहेंगी --लेकिन उस मकां की नहीं , उन पलों की जो एक साथ गुजारे गए .

    हरकीरत जी , आपकी कोमल भावनाओं को ठेस न पहुंचे, यही कामना है .

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  23. ओह ! बाद में पढ़ा --राजेन्द्र जी ने भी अपने शब्दों में बिल्कुल यही बात कही है .
    दुःख तो होता है , लेकिन खुद को संभालना भी पड़ता है .
    शुभकामनायें जी .

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  24. aapka toofaan ab hamare bheetar hai

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  25. हरकीरत जी,
    ये पोस्ट बेहद भावुक करने वाली है...
    सच मानिए कुछ भी कहते नहीं बन रहा है...
    आपने शिकवा-गिला भी कुछ ऐसे अल्फ़ाज़ में किया कि.........
    दिल भर आया.......
    आंखें नम हो गईं.

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  26. आप की दी हुई जानकारी से मैं भी वाकिफ हूँ ...
    और पते से भी ..और मजबूरी से भी,जो उन्होंने बताई ...पर क्या करे कोई !!!

    सादर इमरोज जी के लिए :
    प्यार का अंदाजे-बयाँ
    जिसका हमेशा मूक था
    आँखें थी जिसकी बंद
    निशाना अचूक था ||

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  27. महज़ ईंट पत्थर गारे से घर नहीं बनता और उनके मिट जाने से मिटता भी नहीं...घर घरवालों से बनता है...इमरोज़ जी ने क्या खूब कहा है:-

    ਮੇਰਾ ਨਵਾਂ ਪਤਾ
    ਮਕਾਨ ਨੰਬਰ ਗਲੀ ਨੰਬਰ ਸੜਕ ਨੰਬਰ
    ਇਲਾਕਾ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ
    ਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਦਾ ਪਤਾ
    ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ
    ਆਪਣਾ ਆਪ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ…

    ReplyDelete
  28. सुलगती आग पर रोटियाँ तो सभी सेंक लेते हैं
    कभी राख पर कोशिश करके देखी होती
    हर जर्रे मे सिर्फ़ अमृता दिख रही होती……………

    अब इसके बाद और क्या कहूँ

    जिस्म गया, जान गयी ,रूह गयी
    अब ईंट- पत्थरों को समेटने से क्या होगा
    मै तो फ़िज़ा के जर्रे जर्रे मे बिखर गयी
    अब मिट्टी को खंगालने से क्या होगा

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  29. और अपने आप का पता
    और कोई नहीं होता
    अपना आप ही होता है ....

    इमरोज़ जी ने न जाने कितना दर्द सहा होगा ..
    राजेन्द्र जी की बात से सहमत ..

    आपकी भावनाएं गहन अनुभूति व्यक्त कर रही हैं ..

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  30. .....ਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਦਾ ਪਤਾ
    ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ
    ਆਪਣਾ ਆਪ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ…

    बस इतने ही शब्द हैं ,, जो दिलासा दे पा रहे हैं
    बाक़ी सब तो दुनिया है बस दुनिया ही
    इस खबर पर ,
    इस नज़्म पर ,
    और
    नज़्म के बाद आपकी भावनाओं पर
    जाने क्यूं ,, कुछ कह नहीं पा रहा हूँ ...

    क्या मुहोब्बत,क्या रिफाक़त,क्या वफ़ा,क्या दोस्ती
    फ़ीक़े पड़ जाते हैं सारे , मालो-ज़र के सामने

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  31. और अपने आप का पता
    और कोई नहीं होता
    अपना आप ही होता है ....
    सच तो यही है ... दर्द की आवाज किसने सुनी है

    सिवा सहने के ...मन के किसी कोने में दर्द दुहरा रहा है अपने आपको ..।

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  32. इससे पहले भी मैंने कहीं पढ़ा था की इमरोज जी उस घर मैं अमृता जी से बाते करते है कहते हैं की वो यही है.. आज फिर पढ़ा .....जब उस घर की ईट ईंट बिखरी होगी तब साथ-साथ न जाने क्या-क्या बिखरा होगा..
    आपकी लिखी रचना मन को छू गई...

    ReplyDelete
  33. आद. राजेन्द्र जी , दराल जी , नीरज जी आपने जो कहा
    वो इक आम साधारण घर के लिए तो ठीक है
    पर अमृता जैसी अमूल्य निधि के घर के लिए हरगिज नहीं ....
    उस घर की इक-इक सांस बहुत कीमती थी ....
    ये अपने अपने सोचने का नजरिया है ....
    हो सकता है आपकी नज़रों से मैं देखती तो यही कहती .....
    पर मेरे लिए अमृता का घर बिकना बहुत दुखदाई है ...

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  34. मेरा नया पता
    मकान न. ,गली न.,सड़क न .
    इलाका और शहर मैं ही हूँ
    और अपने आप का पता
    और कोई नहीं होता
    अपना आप ही होता है ...


    जानकर दुःख हुआ....

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  35. कीं नहीं होता
    अब भी इमरोज़ ...
    क्यूँ कर बाँट दी तुमने साँसे
    यकीं मानों वो अब भी वहीँ है
    क्यूँकर लगने दी तुमने
    अपनी सांसों की कीमत ?
    वह देख वह अब भी तड़प रही है
    उस मलवे के ढेर तले ....
    अपनी उसी नज़्म को तलाशती
    जो कई बार उसने
    तुम्हारी पीठ पर लिखी थी ...

    याद होगा तुम्हें ....
    यहीं ज़िन्दगी के कई पन्ने जन्में थे
    यहीं ज़िस्म के कई अक्षर खिले
    यहीं मोहब्बत ने दीयों में तेल डाला
    यहीं ख़ामोशी ने लिबास उतारा
    यहीं इश्क ने उम्र की कड़वाहट पी ...
    तुमने क्यूँकर बोली लगने दी ....?
    इमरोज़ ....!
    तुमने क्यूँकर बाँट दी साँसें .....

    वह घर घर नहीं था ...
    मंदिर था इश्क का
    वहीँ बैठ अमृता ने लिखे
    कई पत्थरों पे फरमान
    अम्बर के आले में सूरज को जलाया
    धागे जोड़-जोड़ कर फटे शालुओं को सिया
    आज तेरे हाथों से ये रौशनी कैसे गिर गई
    इमरोज़ ....!
    तूने छाती को चीरकर
    दर्द क्यों न दिखलाया.... ?

    इमरोज़ तूने क्यूँकर बाँट दी साँसे .....?
    इमरोज़ तूने क्यूँकर बाँट दी साँसे .....??

    उफ़! कितना दर्द हैं --इमरोज की इन पंक्तियों में ---कितना कुछ समेटा होगा उन्होंने ---सामान तो इक्कठा हो सकता हैं पर यादे इक्कठा कैसे करे कोई ?????

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  36. विचलित कर देने वाली सुन्दर रचना

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  37. अमृता के जाने का घाव अभी भरा नहीं होगा कि उन्हें अब यादों से भी वंचित कर दिया गया :(

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  38. Oh.!no! Dukhdai suchanaa.
    Punah vistrit tippani likhunga.
    Very sad..

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  39. से पता चला कि अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। विस्तार से पढने पर जाना घर बिका ही नहीं घूल घूसरित भी हो चुका है। इमरोज जी ने इस बात की दिलासा दी है कि अमृता जी की यादों से जुडी तस्बीरें और अन्य सारी चीजें वे अपने साथ ले जाये है साथ ही मकान को बेचने का कारण बच्चों को पैसे की जरूरत बताया।वाह रे इमरोज! पैसों की चाहे जैसी भी जरूरत क्यों न रही हो , अमृता जी से जुडी से जुडी इस विरासत को बेचने में तुम्हे कोई तकलीफ नहीं हुयी? फिर तुम कैसे दावा करते थे कि अमृता तो अब भी इसी घर में बसती है और वह तुम्हारे लिये मरी नहीं है।तुमने साबित कर दिया है कि तुमने हमेशा अमृताजी का उपयोग स्वार्थ के लिये ही किया। चाहे वे जीवित रही हों या अब उनके मरने के बाद ।अपनी जीवनी में अमृता जी के द्वारा लिखे हुये शब्द यह हकीकत खुद ही बयाँ कर रहे हैं1964 में जब इमरोज ने हौज खास में रहने के लिये पटेलनगर का मकान छोडा था तब अपने नौकर की आधी तनख्वाह देकर उसके पास एक सौ और कुछ रूपये बचे थे । पर उन दिनो उसने एक एडवरजाइजिंग फर्म में नौकरी कर ली थी, बारह तेरह सौ वेतन था, इसलिये उसे कोई चिंता भी नहीं थी। पर एक दिन - दो तीन महीने बाद - उसने लाउड-थिंकिंग के तौर पर मुझसे कहा था -‘मेरा जी करता है, मेरे पास इस हजार रूपया हो, ताकि जब भी जी में आये नौकरी छोड सकूँ।’ मंहगाई बढ रही थी पर इसकी कही हुयी बात , मेरा जी करता था पूरी हो जाय। तुम्हे याद होगा इमरोज कि तुम्हारी इस ख्वाइश को पूरा करने में तब भी अमृता जी ने तुम्हारी मदद की थी और ग्रीन पार्क में किराये का मकान लेकर बाटिक का तजुर्बा शुरू किया था और इसका हश्र पुनः यहाँ लिखने की जरूरत नहीं है।मुन्शी प्रेमचन्द्र का लमही हो या सुमित्रानंदन पंत का कौसानी कभी देखना जाकर इन जगहों को कैसे रहेजकर रखी गयी हैं इन साहित्यकारों से जुडी वस्तुये और उनके निवास स्थान को?वाह रे इमरोज! मेरे पास शब्द नहीं है पंजाब की संस्कृतिक विभाग और तुम्हें कोसने के लिये। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। आदरणीय इमरोज जी आप अमृता जी के सच्चे दोस्त तो नहीं अमृता के नाम पर जीने वाले सच्चे परजीवी अवश्य साबित हुये हो सो आपसे क्या उम्मीद करूँ? मुझे तो लगता है कि आप कल अमृता जी से जुडी वस्तुओं की नीलामी करते हुये भी नजर आ सकते हैं। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति और पंजाब सरकार के संस्कृति सचिव को मै इस संदर्भ में एक पत्र अवश्य भेज रहा हुँ।

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  40. मार्मिक प्रसंग।
    सरस्वती के आराधकों का ऐसे कष्टों से सामना होता ही है।

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  41. मेरा नया पता
    मकान न. ,गली न.,सड़क न .
    इलाका और शहर मैं ही हूँ
    और अपने आप का पता
    और कोई नहीं होता
    अपना आप ही होता है ....

    दिल में एक टीस उठती है ऐसी घटनाओं पर. पर इतना सब ऐसी ही भूलना संभव नहीं होता. साहित्यकारों और कलाकारों का ध्यान सरकार का ध्यान कभी नहीं जाता. एक एक कर पुरानी धरोहरें जा रही है.

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  42. अशोक जी बहुत -बहुत शुक्रिया ...
    आपने कुछ तो पहल की ...मुझे भी पता दें मैंने भी ख़त लिखना चाहती हूँ ....
    वैसे बहुत देर हो चुकी है ....
    ये जून-जुलाई की बात है ,,,
    फिर भी आपके ख़त का मैं तहे दिल से समर्थन व स्वागत करती हूँ .....
    काश की अमृता का नाम ही वहाँ बचा रह जाये .....

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  43. क्या लिखू समझ नही आता
    मन में बड़ी टीस उठ रही है
    इतनी महान लेखिका के बारे
    में जानकर.सुंदर पोस्ट ...बधाई
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है....

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  44. बहुत ही भावनात्मक पंक्तिया......... शायद आज अमृता प्रीतम जी होतीं तो उनके मन भी यही सवाल होते. बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.

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  45. बड़ी भयानक खबर है! दुःख देने वाली है.. कम से कम अमृती जी के चाहने वालों के लिए। अमृता जी सारे जहां की हैं। उस स्थान पर तो उनकी यादें सहेज के रखनी चाहए थीं। जो कौमें अमृता जी जैसे साहित्यकारों की यादों को नहीं सहेज सकतीं उनके दुर्दिन शुरू हो गये समझो। यह केवल घर का मामला नहीं है। यहां इमरोज जी का फैसला कैसे लागू हो सकता है? उस स्थान को वैसे ही खरीद कर राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए। इमरोज के बाद उनकी हर इक यादें, घर की तरह नष्ट कर दी जायेंगी..तब भी हम क्या यूँ ही जाने देंगे?
    यदि यही परिणति है तो बेकार है लिखना पढ़ना। इससे अच्छा तो शेष समय का उपयोग हम सब और पैसा कमाने में लगायें ताकि अगली पीढ़ी तक तो बच्चों को घर न बेचना पड़े।

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  46. हरकीरत जी आज ही अशोक कुमार शुक्ल और आप दोनों के ब्लॉग पर अमृता प्रीतम के भवन हौज खास के बारे में ये पढ़ा बड़ी चिंता हुयी और सोचते ही रहे ...न जाने क्या क्या हो जाया करता है ...हमारे देश में साहित्यकारों और लेखकों का हश्र ..आइये साहित्य को निरंतर रोशन करें .....जय श्री राधे
    भ्रमर ५



    इमरोज़-अमृता का हौज खास का घर ढह गया है '' उफ्फ.....दिल धक् सा रह गया .....अभी पिछले ही साल एक अज़ीज़ मित्र मेरी नज्में लेकर इमरोज़ जी के पास गए थे ...उन्होनें उस मकान की इक-इक वस्तू का कुछ यूँ ज़िक्र किया जैसे अमृता आज भी वहाँ साँस ले रही हो ...घर की इक -इक दीवार कैनवास बनी हुई थी और अमृता हर दीवार का आसमां ...

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  47. हरकीरत जी आज ही अशोक कुमार शुक्ल और आप दोनों के ब्लॉग पर अमृता प्रीतम के भवन हौज खास के बारे में ये पढ़ा बड़ी चिंता हुयी और सोचते ही रहे ...न जाने क्या क्या हो जाया करता है ...हमारे देश में साहित्यकारों और लेखकों का हश्र ..आइये साहित्य को निरंतर रोशन करें .....जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  48. उफ़ दिल को चीरती सी पोस्ट.यही त्रासदी है हमारे देश की कुछ भी संजों नहीं पाते हम भर्ष्टाचार के अलावा.

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  49. दुखद घटना,ईश्वर कृपा करे !
    कवितायें बहुत यादगार हैं,आभार!

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  50. nam ho gayeen aankhen......dard aur dard......

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  51. हमारे समाज की कटु सच्चाई ही यही है कि विसंगतियाँ हष्ट पुष्ट साँसें ले रही हैं और भावनाएं दम तोड़ रही हैं ...घर ढह गया यादें नहीं ढहेगीं !

    इसी आशा के साथ .....

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  52. hrkeerat mn bhari n kro .
    amrita ji apne chahne valo ki rooh me bsti hai jha log unhe shiddt se poojte hai . ajse roohai thikane ke bad in dro deewaro ki unhe kya jroorat ?
    khidki n ho ,
    drwaja n ho
    koi bat nhi
    bs sukoon ki ik chadr ho
    itna hi kafi hai unke liye .
    ykeen n ho to
    aaj rat jb vo tere khwaab me aayengi to poochh lena .
    kya rkkha hai in dro deewaro me . bhla in duniyavi cheejo ki bhi koi umr hoti hai . mirja galib bhi to the . dhool udti hai , akhbaro ki khbr bnti hai yu mjaar bhi nhi sheji jati hai logo se bavjood vo jinda hai apne roohani kdrdano me isliye rnj n kro bs unke liye dua kro vo jinda rhe yadon me kbhi n khtm hone wali umr lekr .

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  53. कितना तक़लीफ़देह है ये!!!!
    "अमृता-इमरोज़" का हौज़-खास वाला घर मैने भी देखा था...कितने लम्बे-चौड़े इलाक़े में पेड़ों से घिरा अहाता और एक पेंटिंग जैसा घर!!!
    भारत-सरकार अपने भ्रष्ट मंत्रियों और सूदखोर सांसदों के घर भरने से फ़ुर्सत पाये, तब न इन विश्व-मनीषियों पर निगाह डाल पायेगी? सांसदों के पेट भरने से ही फ़ुर्सत कहां है उसे? उसे क्या फ़र्क पड़ता है अगर अमृता-इमरोज़ का घर ढह गया तो?????

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  54. भावुक रचना ...
    ਉਸ ਨਾਲ ਰਲ ਕੇ
    ਇੱਟ ਇੱਟ ਕਮਾ ਕੇ
    ਇੱਟ ਇੱਟ ਲਾ ਕੇ
    ਇਕ ਮਕਾਨ ਬਣਾਇਆ ਸੀ
    ਤੇ ਸਾਹ ਸਾਹ ਜਿਉਂ ਕੇ
    ਇਕ ਸਾਥ ਵੀ…

    ਸਾਥ ਤੇ ਸਾਥ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਵੀ
    ਇਕ ਮਕਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ
    ਇਹ ਮੈਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਅਦ
    ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਹੈ…

    ਹੁਣ ਸਾਮਾਨ ਤੇ ਮੇਰਾ
    ਕੱਲ੍ਹ ਦੇ ਮਕਾਨ ਵਿਚ ਹੈ
    ਤੇ ਮੈਂ ਸ਼ਿਫਟ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ-
    ਸਾਥ ਦੇ ਮਕਾਨ ਵਿਚ…

    ਮੇਰਾ ਨਵਾਂ ਪਤਾ
    ਮਕਾਨ ਨੰਬਰ ਗਲੀ ਨੰਬਰ ਸੜਕ ਨੰਬਰ
    ਇਲਾਕਾ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ
    ਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਦਾ ਪਤਾ
    ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ
    ਆਪਣਾ ਆਪ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ…

    -ਇਮਰੋਜ਼.....

    इमरोज़ की नियत पर शक न करें
    इमरोज़ और अमृता का साथ
    जन्म-जन्म का साथ है
    .
    इमरोज की भी रही होगी मजबूरी
    जैसे अमृता के साथ रहते वे अमृता का ध्यान रखते थे,
    अमृता के जाने के बाद बच्चों का ध्यान रख रहें हैं
    .
    .
    .
    यूं उन्हें बुरा मत कहो !!!

    ReplyDelete
  55. वेहद दुखद, पता नहीं हमारी सरकारें कबतक महज प्रस्सती पत्रों को सम्मान समारोह तक ही साहित्यकारों को सिमित रखेगी?
    भाषणों में जिन्हें देश की धरोहर बतायी जाती है उनकी यह दुर्दशा.....!
    बहुत मार्मिक.

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  56. आद. मनोज भारती जी ,
    अगर उन्होंने जरा भी लाचारी या मज़बूरी जताई होती तो मुझे यूँ गम न होता
    वे एक बार कह देते कि इस बात का मुझे भी अफ़सोस है मैं उस घर को बचा न सका ....
    पर उनके शब्दों में ऐसा कुछ न था ....
    फिर भी मैं मानती हूँ पैसा बच्चों की जरुरत थी जिसकी वजह से बच्चों को ये कदम उठाने पड़े ....
    पर सरकार का भी कुछ फर्ज बनता है ....
    आज भी लोग यह देखना चाहते हैं
    अमृता कहाँ बैठ कर लिखती थी ....
    कैसे जीती थी ....

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  57. दी ! मैं बस केवल रोये जा रहा हूँ एक भी शब्द नहीं है मेर पास !
    कैसी दुनिया में रह रहे हैं हम |

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  58. मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  59. प्रिय अशोक कुमार शुक्ल जी अगर आप ने महामहिम को मेल भेजा है तो बहुत अच्छा है अवश्य ही अन्य सभी साहित्यप्रेमी इस पक्ष में लिखेंगे ..अमृता प्रीतम जी की वस्तुएं इमरोज जी के पास हैं विश्वास किया जा सकता है लेकिन आप का मेल जो राष्ट्रपति को गया वह चिठ्ठी क्या सार्वजानिक नहीं है क्या ? हरकीरत जी के ब्लॉग पर आप की टिपण्णी के सन्दर्भ में ...........

    भ्रमर ५

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  60. सेवा में
    श्रीमान महामहिम भारत के राष्ट्रपति
    भारतीय गणराज्य
    राष्ट्रपति भवन
    नई दिल्ली, भारत

    द्वाराः- उचित माध्यम जिलाधिकारी लखनऊ (अग्रिम प्रति ई मेल द्वारा प्रेषित)

    विषयः स्व0 अमृता प्रीतम के निवास स्थान को सांस्कृतिक स्मारक के रूप में संरक्षित करने विषयक।

    आदरणीय महोदय,
    अति विनम्रतापूर्वक अबगत कराना है कि विभिन्न ब्लागों पर प्रकाशित आलेखों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के माध्यम से अभी हाल ही में यह ज्ञात हुआ है कि हिंदी एवं पंजाबी भाषा की महान लेखिका स्व0 अमृता प्रीतम जी का नई दिल्ली हौज खास स्थित वह भवन जिसमें वे अपनी मृत्यु पर्यन्त निवास करती रही थी वर्तमान के किसी भवन निर्माता द्वारा बहुमंजिली इमारत बनाने के उद्देश्य से तोड दिया गया है।
    उत्तर प्रदेश में स्व0 मुशी प्रेमचन्द जी का जन्म स्थान लमही हो अथवा उत्तराखंड के स्व0 सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म स्थान कौसानी , इसे संबंधित सरकारों ने न केवल राष्ट्रीय विरासत के रूप में संजोया है अपितु समय समय पर इन सांस्कृतिक विरासतो के प्रति यथानुसार शासकीय सम्मान भी प्रदर्शित किया जाता है।
    पंजाबी भाषा तथा हिंदी में रचित स्व0 अमृता प्रीतम जी के साहित्य में ‘दिल्ली की गलियां’(उपन्यास), ‘एक थी अनीता’(उपन्यास), काले अक्षर, कर्मों वाली, केले का छिलका, दो औरतें (सभी कहानियां 1970 के आस-पास) ‘यह हमारा जीवन’(उपन्यास 1969 ), ‘आक के पत्ते’ (पंजाबी में बक्क दा बूटा ),‘चक नम्बर छत्तीस’( ), ‘यात्री’ (उपन्यास1968,), ‘एक सवाल (उपन्यास ),‘पिधलती चट्टान(कहानी 1974), धूप का टुकडा(कविता संग्रह), ‘गर्भवती’(कविता संग्रह), आदि प्रमुख हैं जिन्हे पंजाब राज्य सरकार तथा भारत सरकार के संस्किृति विभाग द्वारा समय समय पर विभिन्न सम्मानों से भी अलंकृत किया गया है।
    स्व0 अमृता प्रीतम जी की रचनाओं के संबंध में हमारे पडोसी देश नेपाल के उपन्यासकार धूंसवां सायमी ने 1972 में लिखा था किः-‘‘ मैं जब अम्रता प्रीतम की कोई रचना पढता हूं, तब मेरी भारत विरोधी भावनाऐं खत्म हो जाती हैं।’’
    हिन्दुस्तान की साहित्यिक बिरादरी की ओर से मैं महोदय को इस अपेक्षा से अवगत कराना चाहता हूँ कि ऐसी महान साहित्यकार के निवास स्थान को उनकी मृत्यु के उपरांत साहित्यिक धरोहर के रूप में संजोना चाहिये था परन्तु यह सुनाई पडा है कि स्व0 अमृता जी के इस भवन को बच्चों की जरूरत के नाम पर किसी भवन निर्माता को बेच दिया गया है।
    कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती अतः इस संबंध में महोदय से विनम्र प्रार्थना है कि इस प्रकरण में महामहिम को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है तथा उसे अपने स्तर से दिल्ली राज्य की सरकार को निम्न प्रकार के निर्देश देने चाहिये:-
    1ः-स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास स्थान 25 हौज खास के परिसर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अधिग्रहीत करते हुये उस स्थान पर स्व0 अमृता प्रीतम जी की यादो से जुडा एक संग्रहालय बनाया जाय।
    2ः-यदि किन्ही कारणों से उपरोक्तानुसार प्रार्थित कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकती तो कम से कम यह अवश्य सुनिश्चित किया जाय कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये कमसे कम इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में अवश्य संरक्षित किया जाय।
    हिन्दुस्तान की उस साहित्यिक बिरादरी की ओर से प्रार्थी सदैव आभारी रहेगा जिसके पास अपनी बात रखने के लिये बडे बडे फोरम या बैनर नहीं है।
    महामहिम महोदय द्वारा हिन्दुस्तानी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये किये गये इस कार्य के लिये सदैव कृतज्ञ रहेगा।
    प्रार्थी /भवदीय

    (अशोक कुमार शुक्ला)
    ‘तपस्या’ 2/614 सेक्टर एच’
    जानकीपुरम्, लखनऊ
    (उत्तर प्रदेश)
    ईमेल: aahokshuklaa@gmail.com


    महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!

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  61. कैसी विडम्बना है कि दिल्ली में रहता हूँ और अमृता जी के मकान के बिकने और ढहने की खबर आपके ब्लॉग पर आकर पा रहा हूँ… बहुत ही मार्मिक और दिल को छू लेने वाली आपकी यह पोस्ट है…

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  62. heer ji...aankhe man hain bas..kya pyaar ki nishani ki yahi kimat hai...

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  63. बहुत बहुत शुक्रिया अशोक जी .....

    आपकी इस पहल का मैं तहे दिल से स्वागत करती हूँ ....
    अच्छा किया जो आपने लिंक यहाँ दे दिया .....
    मैं आद दराज जी और मित्र राजेन्द्र जी से भी उम्मीद रखूंगी कि वे भी इस नेक कार्य में सहयोग करें ....
    कम से कम यह तो किया जा सकता कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में संरक्षित किया जाय।

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  64. @ मैं आद. दराज जी और मित्र राजेन्द्र जी से भी उम्मीद रखूंगी कि वे भी इस नेक कार्य में सहयोग करें ....
    ***********************************************
    आदरणीया हीर जी,
    यह हमारा भी तो फ़र्ज़ बनता है …


    महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक अशोक कुमार शुक्ला जी ने उपलब्ध करवा ही दिया है , आभार उनका भी ।


    साहित्य में रुचि रखने वाले हर ब्लॉगर से मेरा भी विनम्र अनुरोध है कि वे इस अभियान को सफल बनाने में सहयोग करें ।

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  65. गुरू नानक जी के अमृत वचनों का रसपान
    कराने के लिए हृदय से आभार आपका.

    आप वास्तव में स्वनाम धन्य हैं जी.

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  66. इमरोज का मकान को बेचने का निर्णय लेना उनकी मजबूरी रही होगी ...बीते हुए कल को आप सीने में सजा कर रख भी लें मगर आज को कभी नकारा नहीं जा सकता , इंसान को वक्त के साथ चलना ही पड़ता है , बहुत अपनों की यादें हमेशा दुखदाई ही होती हैं , सरकार और हमारे लिए उनके स्मारक गौरवशाली हैं क्योंकि ये हमारी साहित्यिक समृद्धि के परिचायक हैं .

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  67. रौशनी के घेरो में
    यां कही अंधेरो में
    तुम भी डूब जाओगे ,
    मै भी डूब जाऊंगा
    तुम मुझे न पाओगे
    मै तुम्हे न पाउँगा
    एक दिन यही होगा ..............(स्व .रमानाथ अवस्थी )

    ऐसे लोग(इमरोज ) कितनी जल्दी सब कुछ भूल जाते है

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  68. jarur koi n koi majboori rahi hogi varna jis ghar ko apni din-raat ke mehanat se jod-jod kar banaya gaya ho use yun hi nahi chhoda jaa sakta... taaumra saalta hai yah dard..
    post padhkar ankhen sajal ho uthi..

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  69. हरकीरत जी , आपके ज़ज्बातों की कद्र करता हूँ .

    बेशक अमृता जी की यादों को यूँ मिटा देना कहीं भी हज्म नहीं होता .

    हैरान हूँ की इमरोज़ जी ने इतनी अहमियत नहीं दी .

    कुछ पता चला इसे किसने खरीदा है ? एक अपील उनसे भी की जा सकती है .

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  70. नहीं दराल जी यह तो पता नहीं किसने खरीदा है ...
    पर इमरोज़ जी से पता किया जा सकता है ....
    कहते हैं कोशिश करने में क्या हर्ज़ है ...

    मलकीत जी ,
    इमरोज़ जी बहुत अच्छे इंसान हैं
    उन पर यूँ इल्जाम न लगाइए
    बात उनके बस की न थी ...
    वो बच्चों को रोकते भी तो कैसे ....

    ReplyDelete
  71. आपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।

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  72. harkeerat ji
    bhut umda slah aapne di hai ki imarat ka nam amrita ji ke nam pr our uski ek manjil smark ke roop me sthapit ki jaye .
    nihsndeh ye amrita ji ko unke chahne walo ki trf se sukooni saugat hogi .

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  73. अशोक जी ,
    हमारा प्रयास रंग ला रहा है ...
    आज ही मुझे वर्षा भाम्भानी मिर्ज़ा का मेल मिला जो कुछ इस प्रकार tha ....

    ''आपकी इजाज़त के बगैर हौज ख़ास पर लिखी आपकी बात को
    डेली न्यूज़ कि मैगजीन खुशबू में छापा है..
    .पाठकों ने इसे खूब पढ़ा और प्रतिक्रियाएं भी दी हैं.....''

    इससे हमारी मदद करने वालों kii संख्या बढ़ेगी ....

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  74. अमृता जी का हौजखास के घर को सांस्कृतिक विरासत के रूप में संरक्षित करने हेतु अनेक लोगों ने महामहिम से अपनी गुजारिश की है । आपके सहयोग से इस मुहिम को और अधिक बल मिल सकता है । अधिक से अधिक पाठको तक पहुँचने के उद्देश्य से मेरे द्वारा हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स पर भी इसके संदर्भ में मुहिम चलायी जा रही है जिसका लिंक इस प्रकार है।
    कृपया आप भी इसे अवश्य देखकर अपने बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें!!!!

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  75. क्या कहें हीर जी क्या साहित्यकार क्या देश भक्त किसी की भी यादों को संजोने की परंपरा हम ने बिसरा दी है । दोनों कविताएं बावुक मन की प्रस्तुतियां हैं । दिल में कुछ भारी भारी सा अहसास हुआ ।

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  76. चाहो तो जीलो
    संग उनके..
    सीख लो कुछ उनसे
    और बाँट लो उनकी तनहाई भी.
    भावों की सुंदर अभिव्यक्ति, उस पर सटीक अनुवाद के लिए आभार .

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  77. ghar thaa...
    shareer ko mausamon se bachaane ke liye.....


    hamein koi aisaa dukh nahin huaa..jaisaa honaa chaahiye thaa..


    ab jo nayaa rahne aayegaa..use apne dhang se banwaane dijiye...

    haan.

    achchhaa lagtaa hai to zameen kaa wo tukadaa..jis par koi apnaa khaas kabhi rah kar gayaa ho.....



    hamein to ab un jagahon ko dekh kar bhi koi khayaal nahin aataa..jahaan ham khud rahe the kabhi...to kyaa ronaa amritaa ko....

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  78. :)


    itanaa to ham roj hi marte the....kabhi kisi waqt...

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  79. न मैं इसे सुंदर कह सकती हूँ न ही लाजवाब पोस्ट ....क्यूंकि ये महज कोई कल्पना ,या मन बहलावा नहीं जिसे शब्दों में सराहा या नाकारा जाये ,ये एक ऐसी हकीकत है जिसका दर्द वही समझ सकता है जो अमृता को चाहता है,सिर्फ अमृता को ....उसके रुतबे ,उसके नाम ,उसकी साहित्यक पहचान से परे .....सिर्फ उसे ,उसकी रूह को ,उसके मन की उन दशाओ को,उस सत्यता को जिसे जीवन भर उसने जिया ... जिसने महसूस किया होगा उसे शब्दों का होश कहाँ /एक झरना फूटा / चीर गया धरती का सीना /ज़ख्म था गहरा /कैसे दिखता /कुछ पल में ही /झील हुआ / सुबह गुजारो ,शाम बिताओ /मिटटी डालो ,कंकर फेंको /शब्दों का जितना जाल फैलाओ/वक़्त गुजारेंगे सब /दिल बहलाएँगे /फटे हुए उस सीने को/मगर कहाँ सिल पाएंगे /..........क्या कहूँ हरकीरत जी ....कुछ बाते की जाती है ,कुछ बाते जी जाती हैं ....और कुछ बाते पी जाती हैं .....और इमरोज़ जी ने पहली दो स्थितियां अमृता के साथ देखी,अब तीसरी स्थिति में है जिसे वो हँस कर पी रहे हैं क्यूकि ये आंसू अमृता की आँख से बह रहे है .......अमृता जो दुनिया से जख्म पाती वो इमरोज़ के फैले हाथों में सिमट जाते ,पर आज घाव का रंग अपना है /जो उसकी रूह तक को झकझोर गया /वो छलक गया और इमरोज़ जी के मन के सुच्चे कैनवास पर बिखर गया ......पर इतना कहूँगी आज फिर मन नहीं सम्भल पाया ......इस टीस को हम मिटा नहीं पाएंगे ......अब कोई कुछ भी कर ले .....जब ईंट जोड़ी जाती है तो भाव की ज़रूरत होती है ,और गिराने वाले हाथ इससे कोसों दूर होते है .......अब टूटी ईंटे जुड़ भी जाये ,दरारे झांकेंगी ,और रुलायेंगी ......जिस पंजाबी साहित्यिक सभ्याचार ने जीते जी कद्र नहीं की ,वो अब क्या करेंगे ..? करेंगे भी तो एक टैग के साथ .....जिसे न अमृता की रूह गवारा करेगी न इमरोज की मोहब्बत .........
    इसी से जुडी एक बात मेरे ब्लॉग पर सांझा हुई है ....आपका मन कहे तो जरूर आईये ...आपका तहे दिल से स्वागत करती हूँ ......आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा ,इतना जरूर कहूँगी, आगे भी जुडी रहूंगी .........

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  80. बहुत ही दुखद है ... जहां आत्मा बस्ती हो किसी की उसी नीड़ को उखाड फैंकना ...
    शायद मजबूरी इसी को कहते हैं ... पढ़ कर विषाद सा छा गया है मन में ...

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  81. ਸਮਾਨ ਤੇ ਸਾਰਾ ਲੈ ਗਏ , ਪਰ ਕਦੇ ਰੂਹ ਨਾਲ ਮਹਸੂਸ ਵੀ ਕੀਤਾ ਕੇ ....
    ਸਮਾਨ ਵਾਲੀ ਵੀ ਨਾਲ ਆਯੀ ਹੈ ਯਾ ਨੈਈ
    ਕਿਦਰੇ ਉਨੂ ਪਿਛੇ ਹੀ ਤਾਂ ਨੈਈ ਛਡ ਆਏ ....!!

    ਜਿਸ ਵਕ਼ਤ ਨੇ ਇਹ ਦਿਨ ਵਖਾਯਾ
    ਓਹ ਗੁਨਹਗਾਰ ਹੈ ...
    ਉਸਨੂ ਵਕ਼ਤ ਤੋ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਫਾਹ ਦੇ ਦਯੋ !

    ਨਾ ਫ਼ਰਸ਼ ਹੈ
    ਨਾ ਕੰਦਾ...
    ਨਾ ਬੂਹੇ ਅਤੇ ਬਾਰਿਯਾੰ
    ਹੁਣ ਮੇਰੀ ਰੂਹ ਕਿਸ ਛਤ ਥੱਲੇ
    ਸਿਰ ਲੁਕਾਏਗੀ ...

    ਘਰ ਦੀ ਚਾਹ ਵਾਲੀ , ਫਲੈਟ ਕਿਸ ਤਰਾਂ ਲੱਬ ਪਾਏਗੀ !!

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  82. हरकीरत जी ...मन बैचैन है ..रूह भीग सी गयी है !
    के -२५ को मलबे की सूरत में देखने की कल्पना भी बहुत हृदय विदारक है ..फिर यह तो सामने गिरी पड़ी हकीक़त है ! अन्यायास ही वो एक सुनहरी दिन ज़हन के दरवाज़े पर जिद कर के बैठ गया है ...जब इसी अमृता -इमरोज़ के घर मैं अमृता से मिला था ( ना जाने क्यों ...चाह कर भी मैं "अमृता जी" नहीं कह पाता ....होगी किसी जनम की आशिकी...या शायद जैसे खुदा को भी कभी "खुदा जी " नहीं कहते ) वहीं पलंग के सामने ...अमृता की ही इक सखी श्रीमती उर्मिला शर्मा जी के हाथ की बनी चाय की हल्की हल्की चुस्कियों के साथ ... अमृता से रूबरू मेरी ज़िन्दगी का वो इक वक्फा था जिसे मैं कभी ख़त्म नहीं होने देना चाहता था...( अपनी घड़ी मैं इसीलिए घर पर छोड़ आया था ) ...लेकिन वक़्त हमेशा ही की तरह बड़ा कमबख्त निकला ...एक घंटा यूँ बीता जैसे एक छोटा सा लम्हा हो ...और बस फिर सब कुछ पीछे छूट गया ! एक बात आज भी कहीं ज़हन के दरीचों में घर किये बैठी है ...अमृता ने चलते हुए कहा था " रोमेंद्र ...तुम्हारे चेहरे से, तुम्हारी खूबसूरत रूह की साफ़ झलक मिलती है ....हमेशा ऐसे ही रहना " !

    अब कितना, क्या बचा है...क्या मालूम ! ना कोई देखता है ...ना कोई बताता है !!

    ....इस सबके बाद आपका शुक्रिया जो आपने एक बार फिर अपने अन्दर की नमी को छू कर महसूस करने का मौक़ा दिया !!!
    ( सागर )

    ReplyDelete
  83. रोमेंद्र जी आपकी भावनाओं की कद्र करती हूँ ....
    आपभी हमारी मुहीम में शामिल होइए .....
    अमृता की अमानत बचाने के लिए राष्ट्रपति को ख़त लिखिए
    लिंक अशोक शुक्ल जी ने अपनी टिप्पणी में दिया है ....

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  84. बहुत भावुक करती हुई पोस्ट ...घर का टूटना बहुत ही दुखद घटना है ।

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  85. दुखद...भावुक करती...

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  86. आपके भाव ,आपका दर्द ,अमृता के हर पाठक के दिल में है
    इमरोज़ के प्रति सवाल से ,सभी प्रश्न उनके आस पास खड़े हो गए ...जबकि ये कटघरा तो साहित्यक समाज, राष्ट्र और बुद्धिजीवियों के इर्द गिर्द बनना चाहिए था ,जिस ख़ूबसूरती से आपने उनके रिश्ते का बयां किया है ,जिजीविषा को व्यक्त किया है ,उसके बाद भी आप इमरोज़ की आवाज़ में इस फैसले के प्रति लाचारी ,मजबूरी ,या अफ़सोस का अभाव होने से ग़मज़दा है,(जैसा की मनोज भारती जी को जवाब में कहा ) बहुत तकलीफ हैं आपको ,मुझे ,सबको ....हम ब्लॉग पर साँझा कर रहे है.....पर इमरोज़ किससे साँझा करे..?जबकि हर नजर उनकी मोहबत पर सवाल करने को आतुर है..???????????...आप स्वयं को दोनों की सोच की ,उस स्थिति में रख कर देखे ,तो बहुत सवाल खामोश हो जायेंगे ,बहुत जवाब पा जायेंगे .....बेचैनी ,तकलीफ कुछ हद तक कम हो जाएगी ......बाकी आप ने स्वयं कहा है अपनी अपनी सोच है ......हर कोई सहमत हो ये जरूरी तो नही ,............?????????????
    बहुत से चाहने वाले दिल की दिल में लिए ,अश्क बहा रहे होंगे...पर जाहिर करने का जरिया नही उनके पास ......आप की मुहिम अपनी जगह ठीक है....मै भी शामिल हूँ ,सहमत हूँ ,की एक तल अमृता इमरोज़ के नाम पर रखा जाये ,वहां स्टिल लाइफ नहीं ,बल्कि जीवंत अहसास से भरपूर कोई सृजनात्मक कार्य चलाया जाये ....आर्ट &पेंटिंग ...अमृता के जीवन का सच .....

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  87. आदरणीय हरकीरत जी
    सप्रेम अभिवादन
    स्व0 अमृता जी के लिये चलायी जा रही मुहिम के लिये मैने कुछ लिंक एकत्रित किये हैं
    11.11.11 को 11.11 बजे कुल 11 कडियों की सहायता से स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर को बचाने की मुहिम

    इसी तरह कडी दर कडी जुडते हुये बच जायेगी स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर

    11.11.11 को 11.11 बजे कुल 11 कडियों की सहायता से स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर को बचाने की मुहिम
    इसी तरह कडी दर कडी जुडते हुये बच जायेगी स्व0 अमृता प्रीतम की धरोहर

    स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास के25 हौज खास को बचाकर उसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोने के लिये अनेक साहित्य प्रेमियों द्वारा माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य एवं दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है। ऐसा विश्वास है कि इस मुहिम का असर अवश्य ही होगा । फिलहाल इस मुहिम में शामिल लोगों के प्रयासों का हाल लिंक के रूप में आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ साथ ही यह भी उम्मीद करूँगा कि आप भी अपना अमूल्य सहयोग देकर इस मुहिम को आगे बढाते हुये महामहिम से इस प्रकरण में हस्तक्षेप का अनुरोध अवश्य करेंगें।
    कृपया एक पहल आप भी अवश्य करेंमहामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है ।!! अवश्य कुछ न कुछ अच्छा होगा क्योंकि अमृता जी आसमान से हम सबके प्रयास देख रही हैं और निश्चित रूप से समर्थवान हाकिमों को वे सद्बुद्धि देकर इस मुहिम को सफल बनाने का आर्शिवाद देंगी। शुभकामनाओ सहित!

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  88. इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
    जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल ........
    हीर जी !
    किसको कौन कब सहेज पाया है ....? जब तक यह पीढ़ी है ....अमृता की यादें हैं, फिर ..इसके बाद ? आज के बच्चे तो जयशंकर प्रसाद के नाम पर अजीब सा मुंह बनाकर कंधे उचकाने लगते हैं. राम के देश में .....राम की अयोध्या में...राम की जन्म भूमि खो गयी ......वर्षों से पता लगा रहे हैं .....पता नहीं चल पा रहा. आज हौज़ ख़ास को संरक्षित कर भी लें तो कल को हौज़ ख़ास भी खो नहीं जाएगा इसकी क्या गारंटी ? पार्कों में महापुरुषों की मूर्तियों पर पक्षियों के स्वच्छंद मल विसर्जन को देख कर कई बार सोचता हूँ कि क्या उन्होंने कभी इसकी भी कल्पना की होगी ?
    यूँ, हम आपके ज़ज्बातों की कद्र करते हैं ..... आपने साहित्यकारों के सम्मान के पक्ष में एक ज़रूरी बात सबके सामने रखी यह बड़ी बात है. देखते हैं क्या हो पाता है ....

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  89. sabse pehle muafi chahti hun mere 3 baar comment delete karne pade.....hume ye bilkul nai pata ki is baaar bhi vahi technical error na ho jaye jo pehle 3 baar hua,mere teeno comment likhne k baad jaise hi post karti vahan comment pe kuch bhi likha nai hota tha bus facebook ka koi address likh jata tha......

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  90. aapki post ke liye kya kahun shayad sabhi logon ne har baat keh di hai, sabhi ke dil mein dard sa utha hai,is dard ka bhi ye roop hoga soncha to na tha par imroz ji ki bhi majboori hi thi jo itna bada kadam uthana pada unhe.....
    aapki likhi har pankti dard mein doobi hui hai....ab to bus yaadein hi reh gayi...aur aapki is post ko bhi unko ek naman hi hai...

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  91. सच में बहुत सुदर रचनाएं
    कई बातें सोचने को मजबूर करती हैं

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  92. behtareen..........

    shabdh shabd stabdh kar dene walaa........

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  93. हिन्दू संस्कृति में जब कोई अनुष्ठान किया जाता है तो सर्वपृथम अनुष्ठान स्थल पर देवताओं का आह्वाहन करते हैं । इस अवसर पर देवताओं के साथ असुर आत्माओं का भी आह्वाहन करने की परंपरा रही है । कहा जाता है कि यदि इन्हें आंमंत्रण न दिया जाय तो ये स्वयं बिना बुलाये आकर अनुष्ठाान में बिध्न डालने आ जाती है । सम्मान पूर्वक पहले हे बुला लेने की दशा में अनुष्ठान में बिध्न की संभावना समाप्त हो जाती है। आज मुझे यह परंपरा इसलिये याद आयी क्योंकि माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य से स्व0 अमृता प्रीतम जी की विरासत को बचाने के लिये किये जा रहे अनुरोध अनुष्ठान में ऐसे विध्नकारी तत्वो की आवाजाही लगातार बनी हुयी है । तमाम विध्न बाधाओ के बाद भी अनेक साहित्य प्रेमी इस मुहिम से जुडे है माननीय राष्ट्रपति के कार्यालय से मुझे एक मेल आया है जिसमे लिखा है कि स्वयं राष्ट्रपति सचिवालय इस प्रकरण को देख रहा है । मेरा विश्वाश है कि हमें शीध्र ही कुछ न कुछ सार्थक परिणाम मिलेंगें। कृपया अपना उत्साह बनाये रखें ।
    यह है हमारी मुहिम
    1ः-स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास स्थान 25 हौज खास के परिसर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अधिग्रहीत करते हुये उस स्थान पर स्व0 अमृता प्रीतम जी की यादो से जुडा एक संग्रहालय बनाया जाय।


    2ः-यदि किन्ही कारणों से उपरोक्तानुसार प्रार्थित कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकती तो कम से कम यह अवश्य सुनिश्चित किया जाय कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये कमसे कम इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में अवश्य संरक्षित किया जाय।
    कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें
    भवदीय

    डा0अशोक कुमार शुक्ला !

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  94. बहुत बहुत बधाई अशोक जी ....
    प्रयास का कुछ तो नतीजा निकला ....
    मेरी एक बार फिर सभी 'अमृता प्रेमियों' से अपील है कि आप भी एक बार अशोक जी के दिए लिंक पर राष्ट्रपति को ख़त जरुर लिखें
    ....ख़त जितने ज्यादा होंगे विचार करने की गुजाइश उतनी ज्यादा बढ़ जाती है .....

    '' वैसे जिनसे उम्मीद की थी उनकी तरफ से भी कोई पहल नहीं हुई ....''

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  95. आपकी बात से पुरी तरह से सहमत हूँ हीर जी जिसे राष्ट्रीय धरोहर बनाना चाहिये वो बिक गया ।दुःखद घटना है।

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  96. जो नही होना चाहिये वो हुआ .. ये हमारे देश का ही दुर्भाग्य कहा जायगा....

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  97. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद शायद अमृता दुबारा चली गयीं ... उसके जाने की पीडा दोबारा महसूस हुई ... इमरोज़ का हाथ पकड़ उसकी नब्ज़ में धडकती अमृता को महसूस करने की तलब होती है ... हम पाठकों के मन की अमृता भी विचलित है ... " मर के भी चैन न पाया तो ..." इमरोज़ का कांटेक्ट नहीं मिल रहा है ... पोस्ट के लिए धन्यवाद ... इस से लगा अमृता की बातें कहीं भीतर र्है ... जिंदा ... मुस्कुराती सी ...

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  98. अमृता को शायद इस दिन का पता बहुत पहले चल गया था जब उन्होंने यह कविता लिखी थी-

    मेरा पता

    अज मैं आपणें घर दा नंबर मिटाइआ है
    ते गली दे मत्थे ते लग्गा गली दा नांउं हटाइया है
    ते हर सड़क दी दिशा दा नाउं पूंझ दित्ता है
    पर जे तुसां मैंनूं ज़रूर लभणा है
    तां हर देस दे, हर शहर दी, हर गली दा बूहा ठकोरो
    इह इक सराप है, इक वर है
    ते जित्थे वी सुतंतर रूह दी झलक पवे
    – समझणा उह मेरा घर है।

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  99. अमृता को शायद इस दिन का पता बहुत पहले चल गया था जब उन्होंने यह कविता लिखी थी-

    मेरा पता

    अज मैं आपणें घर दा नंबर मिटाइआ है
    ते गली दे मत्थे ते लग्गा गली दा नांउं हटाइया है
    ते हर सड़क दी दिशा दा नाउं पूंझ दित्ता है
    पर जे तुसां मैंनूं ज़रूर लभणा है
    तां हर देस दे, हर शहर दी, हर गली दा बूहा ठकोरो
    इह इक सराप है, इक वर है
    ते जित्थे वी सुतंतर रूह दी झलक पवे
    – समझणा उह मेरा घर है।

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  100. उसकी हर बात ऐसी कि जैसे करवात ले जाग उठेंगी ... बहुत से मोह केवल आस पास बिखरे रहते हो जैसे ... वह उन्हें अपने भीतर स्थान नहीं दे पाती थीं ... उनके ओठों से उच्छवासों सी उठती कविताएँ घेरती रहती थीं ... शायद उसे घर की ज़रूरत रूहानी स्तर ;आर थी ही नहीं ...

    कबीर की झोंपड़ी कहाँ रही होगी ...

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