Pages

Pages - Menu

Friday, August 19, 2011

कुछ क्षणिकाएं .....

फिर कुछ क्षणिकाएं .....
शायद अगली बार कुछ तस्वीरें पेश करूँ , अभी मुझे मिली नहीं ...हाल ही में दूरदर्शन पे 'सदभावना' विषय पर काव्यगोष्ठी हुई ...विस्तार से अगली बार .....


कुछ क्षणिकाएं .....

()

कोठरी में लगे हैं जाले
इक कोठरी में खामोशी रहती है
इक कोठरी दर्द ने ले रखी है
इक कोठरी बरसों से बंद पड़ी है
कभी रहा करता था यहाँ प्रेम
सोचती हूँ तुम्हें दिल की
किस कोठरी में रखूं .....?

(२)

वो कभी-कभी ...
छिप-छिप कर मुस्कुराया करता
जब भी गुज़रती उसकी खिड़की के सामने से
गहरी नज़रों से तकता मुझे
इक दिन जा खड़ी हुई उसके सामने
पूछा- कौन हो तुम ....?
वह बोला - तुम्हारा प्रेम नहीं हूँ मैं
मैं थके क़दमों से
लौट आई ......!!

(३)

झी ...
कभी सोती नहीं
अक्सर तारे उतर आते हैं
उसकी छाती पर ...
अटखेलियाँ करते
केले के पेड़ों की नाव पर सवार
चूम लेते उसके बंद कमल
पर झील को उस तारे से प्रेम था
जो आसमां में अकेला ही चमकता था
धूमकेतु सा .....!!

(४)

.....
बहुत ऊंचे पर्वत पे
मौन साधे बैठा था ...
मुझे वहां पहुँचने में बहुत देर हो गई
जब मैं वहां पहुंची बहुत भीड़ थी
लोग हाथों में फूल लिए
उसे अर्पित कर रहे थे
और वह ....
पत्थर हो चुका था .....!!

(५)

हुत ढूंढा ....
कई बंद दरवाजे खटखटाए
झाड़ियों के पीछे ...
बाज़ारों में , दुकानों में ...
मेले में ....
उस मोंल में भी
जो अभी-अभी .....
चिड़िया घर के सामने खुला है
पर तुम कहीं नहीं मिले ...
तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....?

71 comments:

  1. man ko aandolit karti shanikayen .bahut khoob .aabhar .

    BLOG PAHELI NO.1

    ReplyDelete
  2. बढिया क्षणिकाएं। मन की आंखें खोल बंदे, वही प्रेम मिलेगा॥

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ ... सब ही एक से बढ़ कर एक

    ReplyDelete
  4. वह .....
    बहुत ऊंचे पर्वत पे
    मौन साधे बैठा था ...
    मुझे वहां पहुँचने में बहुत देर हो गई
    जब मैं वहां पहुंची बहुत भीड़ थी
    लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था .....!!

    सबने दिल को मोह लिया ....उसका पत्थर हो जाना और लोगों का हाथों में फूल उठाना ....क्या विरोधाभास है ..!

    ReplyDelete
  5. shandaar shanikaye ...


    waqt mile to yahan bhi aaiyega

    " अकल के मोटे ..दिमाग के लोटे : पप्पू धमाल (व्यंग)
    http://eksacchai.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html

    ReplyDelete
  6. आहऽऽ… !
    … … … … …
    … … … … … …
    … … … … … … …
    … … … … … … … …
    … … … … … … … … …


    बहुत होमवर्क करना पड़ेगा कुछ कहने के लिए :)

    तब तक करते हैं अगली बार का इंतज़ार …

    'अगली बार'
    बहुत ऐंद्रजालिक शब्द है …
    बहुत सारे 'अगली बार' कभी नहीं आते

    और बावजूद इसके
    उन्हें वादाफ़रामोश कह कर संबोधित करने को भी मन नहीं करता …


    ReplyDelete
  7. वैसे इन क्षणिकाओं ने बहुत प्रेरणा दी है , कुछ क्षणिकाएं शीघ्र भेजूंगा … … …

    ReplyDelete
  8. पिछले कई घंटे से एक महत्वपूर्ण scientific paper तैयार कर रहा था. जब तैयार हो गया तो गलती से डिलीट हो गया.कागज़ में प्रारूप भी नहीं ..सब कुछ मस्तिष्क में था और वहीं से सीधे उतर कर स्क्रीन परआ रहा था ..उफ़ ! कितनी वेदना होती है ...जैसे कोई अपना ख़ास अचानक गुज़र गया हो.....रात का एक बज चुका है ..घड़ी की सुई और आगे जा रही है और मैं अन्यमनस्क हो निरुद्देश्य मंडराता हुआ आपकी दहलीज पर आया तो गहन वेदना के बाद भी आपकी क्षणिकाओं ने होठों पर एक स्मित रेखा खींच दी है.
    आज फिर गलती से मैंने बहुत कुछ खो दिया है...............बदले में अचानक कुछ पा भी लिया है. आज अगर आपने क्षणिकाएं पोस्ट न की होतीं तो मेरी वेदना का अंत न होता. aapkaa shukriyaa kaise adaa karoon ?

    ReplyDelete
  9. बेहतरीन क्षणिकाएं....बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  10. सभी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक पर हमें तो पहली वाली भा गयी , मुबारक हो

    ReplyDelete
  11. bahut hi sundar panktia...

    ReplyDelete
  12. सोंचने को मजबूर करती इन खूबसूरत क्षणिकाओं के लिए आपका आभार !

    ReplyDelete
  13. बहुत ढूंढा ....
    कई बंद दरवाजे खटखटाए
    झाड़ियों के पीछे ...
    बाज़ारों में , दुकानों में ...
    मेले में ....
    उस मोंल में भी
    जो अभी-अभी .....
    चिड़िया घर के सामने खुला है
    पर तुम कहीं नहीं मिले ...
    तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....?


    hamesha ki tarah sundar rachnaen khas taur par is chhanika men to ap ne kamal kar diya
    bahut khoob

    ReplyDelete
  14. लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था .....!!
    एक से एक गहरे अर्थो वाली पंक्तिया .......मन फ्रेश हो गया

    ReplyDelete
  15. @तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....

    हाँ प्रेम नहीं बिकता.... न ही खरीदा जा सकता है..
    इन पंक्तियों को क्षणिकाएं क्यों कहा गया.... जबकि ये गहरा असर छोडती हैं मन में.

    ReplyDelete
  16. लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था .....!!

    ओह!!
    सारी की सारी क्षणिकाएं कमाल की हैं.

    ReplyDelete
  17. वह .....
    बहुत ऊंचे पर्वत पे
    मौन साधे बैठा था ...
    मुझे वहां पहुँचने में बहुत देर हो गई
    जब मैं वहां पहुंची बहुत भीड़ थी
    लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था
    क्या बात है हरकीरत जी. लगा जैसे खुद मेरे हाथ से ही कुछ फिसल गया हो...बहुत सुन्दर.

    ReplyDelete
  18. तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....?

    सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक ...इस पंक्ति ने नि:शब्‍द कर दिया ...।

    ReplyDelete
  19. हैट्स ऑफ........सब एक से बढ़कर एक.......लफ्जों पर आपकी शानदार पकड़ के लिए दाद देता हूँ आपको|

    ReplyDelete
  20. वह .....
    बहुत ऊंचे पर्वत पे
    मौन साधे बैठा था ...
    मुझे वहां पहुँचने में बहुत देर हो गई
    जब मैं वहां पहुंची बहुत भीड़ थी
    लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था .....!!

    बस, वाह ! और कुछ नहीं।

    ReplyDelete
  21. पर तुम कहीं नहीं मिले ...
    तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....?
    शायद प्रेम यही गायेगा..
    "बिक गया मगर मैं मोल बिना
    आया जो मानव सरस ह्रदय..."

    आद हीर जी,
    सभी क्षणिकाएं अभिभूत करती हैं...
    विशेष रूप से "झील"
    और अंत के प्रश्न की सादगी... वाह...
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  22. अर्थभरी क्षणिकायें, जीवन खुलकर जीने के लिये ही हो।

    ReplyDelete
  23. एक से बढकर एक ......

    ReplyDelete
  24. बेहतरीन क्षणिकाएं ..सभी एक से एक बढकर..

    ReplyDelete
  25. वो कभी-कभी ...
    छिप-छिप कर मुस्कुराया करता
    जब भी गुज़रती उसकी खिड़की के सामने से
    गहरी नज़रों से तकता मुझे
    इक दिन जा खड़ी हुई उसके सामने
    पूछा- कौन हो तुम ....?
    वह बोला - तुम्हारा प्रेम नहीं हूँ मैं
    मैं थके क़दमों से
    लौट आई ......!!
    कितनी उम्मीद थी कि जाकर उसे अपना बना लुंगी पर गई तो सिर्फ निराशा कितना दर्द है इस जहान में कि जिसकी चाहत वही से खिलाफत |
    बहुत सुन्दर हर बार कि तरह खूबसूरत रचना |

    ReplyDelete
  26. अशोक सलूजा जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी ......

    मुबारक हो ....
    एक से बड कर एक ....
    जिस दिन प्रेम बिकने लगेगा ,उस का खरीदार ही नही मिलेगा ....?

    मांगे से मौत नही मिलती, जो
    आजकल चारो और बरसती है,
    तुम प्रेम की बात करती हो
    जिसे पाने को कायनात तरसती है || अशोक'अकेला'

    ReplyDelete
  27. इक इक नज़्म
    साहित्य की अनमोल धरोहर बन कर
    मानो, हर पढने वाले वाले के दिल पर अंकित हुई जाती है
    वाह
    और वो शब्द
    "और वाह ,,, पत्थर हो चूका था..."
    तो इक दम दिल में कहीं गहरे उतर गए हैं
    खुश रहिये
    और उस बंद कोठरी को नहीं खोला आपने
    जहां किसी डोरी से बंधी एक गुडिया लटक रही है

    सभी क्षणिकाओं की प्रशंसा के लिए
    उपयुक्त शब्द ढून्ढ पानेका मेरा प्रयास सफल नहीं हो पा रहा है मेरा
    बस दरों दुआएं कुबूल कीजिये .

    ReplyDelete
  28. और हाँ !
    आदरणीय स्वरण कार जी की
    आह ss .... !
    .... .... ....
    ..... ..... .....
    .... ..... ......

    पर भी गौर फरमाईयेगा
    कहा न ,,, तारीफ के लिए
    शब्द ज़रूरी नहीं होते !!!

    ReplyDelete
  29. हीर जी, आपकी रचनायें विचारों का मजबूत महल बनाती हैं !
    सभी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक !
    इन खूबसूरत क्षणिकाओं के लिए आपका आभार !

    ReplyDelete
  30. सुन्दर भऊक कविता

    ReplyDelete
  31. अति सुन्दर क्षणिकाएँ.
    स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी
    शुभ कामनायें.
    आनन्द विश्वास.
    अहमदाबाद.

    ReplyDelete
  32. HARKIRAT JI BAHUT ACHHA LIKHA SADHUWAD,SOME THINGS FOR U,

    इन्हें भी आजमायें ..........
    मधुमक्खी के काटने पर तुरंत चीनी का गाढ़ा घोल लगायें .दर्द व सूजन नहीं होगी .
    पापड़ सेकने के लिए गर्म प्रेस का प्रयोग करे ,साफ-सुथरे सिके पापड़ का आंनंद उठायें .
    कपड़ों पर लगे जंग के निशान दूध से धोंयें साफ हो जायेंगे
    कपड़ों पर लगी बालपन की स्याही के निशान नेलपॉलिश रिमूवर लगाने से दूर हो जायेंगे
    पसीने के दाग लगे कपडे नौसादर मिले पानी से धोएं दाग उतर जायेंगे
    कपड़ों पर लगे तेल के निशान शेम्पू से धोएं ठीक हो जायेंगे
    कपड़ों पर लगी च्युंगम हटाने के लिए जैतून का तेल लगायें,आसानी से उतर जाएगी

    ReplyDelete
  33. प्रेम की तस्वीर आपकी हर क्षणिका मे...बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  34. जिनको जीना है मुहब्बत के लिए,
    अपनी हस्ती को मिटा लेते हैं...
    अहल-ए-दिल यूं भी निभा लेते हैं,
    दर्द सीने में छुपा लेते हैं...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  35. कुछ अपनेपन में लिपटी टिप्पणियाँ ऐसी होती हैं
    जो चेहरे पे मुस्कराहट के साथ आँखों में आँसू भी ला देती हैं
    मुफ़लिस जी गुडिया तो आपके डर से लटकती ही नहीं .....

    हाँ स्वर्णकार जी की 'आह ss ...' .को महसूस कर रही हूँ .....

    :))

    ReplyDelete
  36. आसमान में चमकता धूमकेतु --ऊंचे पर्वत पर पत्थर का बुत बना मौनी --इनसे तो राधा बनकर ही प्रेम किया जा सकता है ।

    तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....? बड़ा मुश्किल सवाल किया है !

    सोचती हूँ तुम्हें दिल की
    किस कोठरी में रखूं .....? रब्बा --क्यों नहीं बनाया दिल के मकां में एक मेहमानखाना ।

    हरकीरत जी , पांचों क्षणिकाएं दिल को छूती हुई हैं ।
    बहुतों का दर्द-ए-दिल बयां कर दिया है ।

    ReplyDelete
  37. वैसे राजेन्द्र जी का --ऐंद्रजालिक शब्द--- का मतलब समझ नहीं आया ।
    यह किस भाषा का शब्द है जी ।

    ReplyDelete
  38. और हाँ , तारीफ करना तो हम भूल ही गए ।
    लेकिन क्या करें दानिश जी जैसे अल्फाज़ भी तो नहीं आते ।
    फिर भी -- कैसे उतार देती हैं सफ्हे पर आप ये दिल की जुबान !

    ReplyDelete
  39. ओये होए .....
    राजेन्द्र जी ,

    अब यूँ भी न भरा करो आहें
    के चर्चे आम हो जायें .....

    अब ऐंद्रजालिक शब्द किस भाषा का है बता दें .....
    :))

    ReplyDelete
  40. प्रेम बिकता हैं. सिर्फ सौदा सच्चे दिल का हो.
    जिसे मुद्राए खरीद ले वो वो प्रेम कहा.

    मजा आ गया, प्यासे पथिक को जब कुछ बुँदे पानी की मिल जाये, वही आनंद मिला.

    लिखते रहिएगा.

    ReplyDelete
  41. वह .....
    बहुत ऊंचे पर्वत पे
    मौन साधे बैठा था ...
    मुझे वहां पहुँचने में बहुत देर हो गई
    जब मैं वहां पहुंची बहुत भीड़ थी
    लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था .....!!

    नदी किनारे धुआ उठत है, मै जानू कछु होय
    जिसके कारण मै जली , वही ना जलता होय

    क्षणिकाएं दिल को छूती है , मन को भिगो जाती है .

    ReplyDelete
  42. हमेशा की ही तरह एक से बढ़ कर एक लाजवाब
    क्षणिकाएं ....

    ReplyDelete
  43. dil ki gahari pida ko bayaan karati rachana.sadhuwad

    ReplyDelete
  44. दिल का दर्द शब्दों में कैसे बयान होता है, अभी देख लिया..

    ReplyDelete
  45. सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं .आभार..

    ReplyDelete
  46. दर्दनाक हैं...! कोई क्या लिखे आहें भरने के सिवा!

    ReplyDelete
  47. लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था .....!!


    ohh....

    ReplyDelete
  48. जीवन के पन्नों को को खोलती सुंदर क्षणिकाएं।

    ReplyDelete
  49. बहुत ढूंढा ....
    कई बंद दरवाजे खटखटाए
    झाड़ियों के पीछे ...
    बाज़ारों में , दुकानों में ...
    मेले में ....
    उस मोंल में भी
    जो अभी-अभी .....
    चिड़िया घर के सामने खुला है
    पर तुम कहीं नहीं मिले ...
    तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम .....?
    _______________________________


    वाह जी, प्रेम अगर बिकने ही लगता तो क्या आपको उसे खोजने की जहमत उठानी पडती?

    ReplyDelete
  50. Aur wo patthar ho gaya...Badi hi sashakt aur bhawon ko jhinjhodti kshanikaye...bahut Bhawbhare hai dil me tere ...tu fir bhi kitna gham khati hai..
    ik chanchal shokh pahadi nadiya..jyun
    maidano me tham jaati hai...

    ReplyDelete
  51. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ... क्षणिकाएं पढ़ी... बहुत सुंदर ...
    वह .....
    बहुत ऊंचे पर्वत पे
    मौन साधे बैठा था ...
    मुझे वहां पहुँचने में बहुत देर हो गई
    जब मैं वहां पहुंची बहुत भीड़ थी
    लोग हाथों में फूल लिए
    उसे अर्पित कर रहे थे
    और वह ....
    पत्थर हो चुका था

    और यह भी

    तुम कहीं बिकते क्यों नहीं प्रेम
    जो बिक गया वो प्यार कहाँ, व्यापार हुआ ...

    आपने मुझसे कुछ क्षणिकाएं भेजने के लिए कहा है .... क्या में इस पत्रिका के बारे में कुछ और जान सकती हूँ ... इसे देखना चाहूंगी ...क्या ये संभव है ?

    ReplyDelete
  52. bahut sundar. aakhiri panktiyon mein to aapne gadar macha diya

    ReplyDelete
  53. सभी क्षणिकाएं सुन्दर है, पर पहली वाली सच में गजब की है ...

    ReplyDelete
  54. हीर जी आपकी कवितायें ....वाह...बेहतरीन..लाजवाब...

    ReplyDelete
  55. हर रोज आपकी कुछ रचनाएं पढ़ती हूँ....दिल को सुकून भी मिलता है और कुछ नया सीख भी जाती हूँ...
    सदर नमन!

    ReplyDelete
  56. लाजवाब...अहसासों का समंदर हैं ये तो क्या कहूँ क्या न कहूँ सोच में हूँ... आभार...

    ReplyDelete
  57. सोचा कि कुछ पंक्तियों को select कर के कुछ लिखूं
    लेकिन आपने असमर्थ कर दिया हर जगह..किसी एक को चुनुं तो दूसरी के साथ नाइंसाफी होगी...
    सारी ही क्षणिकाएं अपने आप में सुन्दर हैं
    बधाई...!!

    ReplyDelete
  58. एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएँ हैं।

    सादर

    ReplyDelete
  59. इक कोठरी में लगे हैं जाले
    इक कोठरी में खामोशी रहती है
    इक कोठरी दर्द ने ले रखी है
    इक कोठरी बरसों से बंद पड़ी है
    कभी रहा करता था यहाँ प्रेम
    सोचती हूँ तुम्हें दिल की
    किस कोठरी में रखूं .....?

    ...सभी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक..बहुत खूब !

    ReplyDelete