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Sunday, August 6, 2017

बदमाश औरत

कल से इक विवादास्पद लेखक की अपने किसी कमेंट में कही इक बात बार बार हथौड़े सी चोट कर रही थी ...." कुछ बदमाश औरतों ने बात का बतंगड़ बना दिया ...."
बस वहीं इस कविता का जन्म हुआ ....

बदमाश औरत
************

औरतें बदमाश होती हैं
जो उठाती हैं आवाज़ अन्याय के खिलाफ़
उठा लेती हैं हथियार शब्दों का
चढ़ पड़ती हैं छाती पर
मरोड़ देती हैं हर उठी हुई अँगुली
खींच लेती हैं अश्लील शब्दों को ज़ुबाँ से
ठोककर छाती हो जाती हैं लड़ने को तैयार
हाँ वो औरतें होती हैं बदमाश ...

वो औरतें होती हैं बदमाश
जो निकल पड़ी हैं सड़कों पर
न्याय की खातिर हाथों में झंडे लिए
चीख़ चीख़ कर खटखटाती हैं अदालतों के द्वार
बलात्कार , अपमान , अत्याचार के खिलाफ़
घण्टों बैठी रहती हैं धरनों पर ....

वो औरतें  होती हैं बदमाश
जो विधवा का लिबास उतार कर
सुनने लगती हैं प्रेम संगीत
जो नकाबों को उतार कर खुले में
 लेना चाहती हैं एक उन्मुक्त श्वांस ...
छूना चाहती हैं आकाश
लिखना चाहती हैं खुले मन से इक कविता
बहते पानी को छूकर पूछना चाहती हैं
उसकी गतिशीलता का राज..

हाँ ..!
वो औरतें शरीफ़ नहीं होती
शरीफ़ औरतें मूक बनी रहती हैं
लगा लेती हैं जिव्हा पर ताला
चुपचाप पड़ी रहती हैं लिपलिपाती देह के तले
भले ही उतार ले कोई दुपट्टा भरे बाज़ार में
शब्दों से कर ले कहीं भी चीर हरण
गाड़ दे धरती में घिनौने शब्दों के बाण चला
या जला दे उसका आत्मसम्मान
हाँ, वो औरतें शरीफ़ होती हैं ....

सुनो ....
मैं इक बदमाश औरत हूँ
हाँ मैं पुरस्कार बाँटती हूँ देह के बदले
पर तुम क्यों तिलमिला रहे हो
क्यों कुंठित हो इतने...?
क्या अब शिथिल हो गए हैं तुम्हारे अंग
या उम्र साथ - साथ मन - मस्तिष्क भी
हो चुका है नपुंसक ....?

लो आज ...
 इक बदमाश औरत
नग्न होकर खड़ी है तुम्हारे सामने
आओ और लिख दो उसकी देह पर
मनचाहे शब्दों से
इक पाक साफ़ औरत होने की परिभाषा ...

© हरकीरत हीर ....
( नोट - यह रचना लेखक की निजी मौलिक संपत्ति है इसे बिना इज़ाज़त कहीं भी शेयर या कॉपी पेस्ट न किया जाए , अगर ऐसा पाया गया तो कानूनी कार्यवाही की जा सकती है )

21 comments:

  1. आह! बहुत अच्छी रचना

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  2. सुन्दर और सटीक रचना

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  3. सटीक कर्रा हाथ मारा है गाल पर
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. बेहतरीन हरकीरत जी,
    अपने बहुत गहरी चोट की है , उम्मीद है ये आवाज़ देर तक गूंजेगी

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  5. वो औरतें होती हैं बदमाश
    जो विधवा का लिबास उतार कर
    सुनने लगती हैं प्रेम संगीत
    जो नकाबों को उतार कर खुले में
    लेना चाहती हैं एक उन्मुक्त श्वांस ...
    छूना चाहती हैं आकाश
    लिखना चाहती हैं खुले मन से इक कविता
    बहते पानी को छूकर पूछना चाहती हैं
    उसकी गतिशीलता का राज..

    हाँ हैं हम बदमाश औरतें !

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  6. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'गुरुवार' 25 जनवरी 2018 को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  7. इस साहसिक लेखन के लिए आप सराहना की पात्र हैं --- बहुत खूब !!!

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  8. Wah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
    Online Book Publisher India

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  9. बहुत ही सशक्त रचना है. यूँ आपकी आवाज़ में यह रचना सुन चुकी हूँ. बधाई.

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  10. ज़बरदस्त रचना
    हकीकत का जानदार बयान।

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  11. पुरजोर तरीके से अपने वजूद का पक्ष लिया है एक औरत ने। दरअसल औरत होने का सही अर्थ भी यही है अस्तित्व गढ़ना और उसके अस्तित्व के लिए निरंतर लड़ते रहना। अच्छा लेखन 👍

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  12. जबरदस्त लिखा है आपने।

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  13. May Kadar bless you !
    Be happy and prosperous !!
    Have a nice moments always !!!
    With all the best wishes and regards
    Ranjit Singh Dhuri
    Email : rsinghdhuri@gmail.com
    Whatsapp : +91 98762 04508

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