इमरोज़ की इक नज़्म का जवाब ….
दुआओं का फूल …
सोचें सच होती होगीं
पर हीर की सोचें कभी कैदो ने
सच नहीं होने दीं
इक खूबसूरत शायरा की मुहब्बत
वक़्त की कीलियों पर टंगी
मजबूर खड़ी है ….
इस पीर की कसक
तूने भी सुनी होगी कभी
कब्रों पर
सुर्ख गुलाब नहीं खिला करते
अपनी पागल सी चाहत
रंगीली चुन्नियों के ख़्वाब
मैंने अब चुप्पियों की ओट में
छिपा दिए हैं …
मुहब्बत की लकीरें
कैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …
चल तू यूँ जख्मों पर
रेशमी रुमाल न फेरा कर
रात आहें भरने लगती है
बेजान हुए सोचों के बुत
पास खड़े दरख्तों से
ख़ामोशी के शब्द तलाशते हैं
सपनों के अक्षर पत्थर हो
धीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….
देख आज मेरी नज़्म भी
सहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!
हीर …
दुआओं का फूल …
सोचें सच होती होगीं
पर हीर की सोचें कभी कैदो ने
सच नहीं होने दीं
इक खूबसूरत शायरा की मुहब्बत
वक़्त की कीलियों पर टंगी
मजबूर खड़ी है ….
इस पीर की कसक
तूने भी सुनी होगी कभी
कब्रों पर
सुर्ख गुलाब नहीं खिला करते
अपनी पागल सी चाहत
रंगीली चुन्नियों के ख़्वाब
मैंने अब चुप्पियों की ओट में
छिपा दिए हैं …
मुहब्बत की लकीरें
कैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …
चल तू यूँ जख्मों पर
रेशमी रुमाल न फेरा कर
रात आहें भरने लगती है
बेजान हुए सोचों के बुत
पास खड़े दरख्तों से
ख़ामोशी के शब्द तलाशते हैं
सपनों के अक्षर पत्थर हो
धीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….
देख आज मेरी नज़्म भी
सहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!
हीर …
सपनों के अक्षर पत्थर हो
ReplyDeleteधीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….
दर्द के समुंदर में डूबते हुए शब्द ....
बहुत सुंदर .....!!
देख आज मेरी नज़्म भी
ReplyDeleteसहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!
बहुत सुंदर !
latest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
नज़्म की छाती पर दुआओं के फूल..
ReplyDeleteनिःशब्द हूँ......
सादर
अनु
सपनों के अक्षर पत्थर हो
ReplyDeleteधीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….
आप दर्द को ही जीती हैं ....
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना , आपको बहुत सारी शुभकामनाये
ReplyDeleteदुआओं के फूल जिसे प्राप्त हों वही ऐसी नज़्म लिख सकता है!
ReplyDeleteसपनों के अक्षर पत्थर हो
ReplyDeleteधीमे से समंदर में
उतर जाते हैं
आभार आप का
सादर
हीर का दर्द तो महसूस कर सकता हूँ ...पर बयाँ नही कर सकता ....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
मुहब्बत की लकीरें
ReplyDeleteकैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …
आह !
सबको नसीब हों, ये फूल दुआओं के।
ReplyDeleteभीतर तक उतरते दर्द को समेटे अंतर्मन के भाव.....
ReplyDeleteaisee rachnaaon ko padhne par baht kucch seekhne ko milta hai ..badee hee gahan anubhooti ke sath likhee gayee ye rachna ..saadar badhaaayee ke sath
ReplyDeleteaisee rachnaaon ko padhne par baht kucch seekhne ko milta hai ..badee hee gahan anubhooti ke sath likhee gayee ye rachna ..saadar badhaaayee ke sath
ReplyDeleteहीर की पीर की कसक को बहुत खूबसूरत लफ़्ज़ों में पिरोया है.
ReplyDeleteचल तू यूँ जख्मों पर
रेशमी रुमाल न फेरा कर --
बहुत खूब !
बेहतरीन रचना।
चल तू यूँ जख्मों पर
ReplyDeleteरेशमी रुमाल न फेरा कर
रात आहें भरने लगती है
बेजान हुए सोचों के बुत
पास खड़े दरख्तों से
ख़ामोशी के शब्द तलाशते हैं
सपनों के अक्षर पत्थर हो
धीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….
क्या कहूं? पढते पढते निशब्द हो गया हूं.
लाजवाब.
रामराम.
लगता है हीर जी आप के रोम रोम में से दर्द बोल उठता है..आप के शब्द शब्द दर्द से भीगा हुआ होता है..
ReplyDeleteदर्द में डूबे शब्दों में भी दुआ सा असर नज़र आता है
ReplyDeleteबहुत खूब
आपने दुनिया को रूलाने की रस्म निभाई है,
ReplyDeleteहमने आपको हंसाने की कसम खाई है...
वैसे हंसी का एक्सरे किया जाए तो बड़ा ज़ालिम दर्द सामने आता है...
जय हिंद...
पास खड़े दरख्तों से
ReplyDeleteख़ामोशी के शब्द तलाशते हैं
सपनों के अक्षर पत्थर हो
धीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ….
देख आज मेरी नज़्म भी
सहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!निशब्द करती नज्म
भावों से भरी रचना
ReplyDeleteरंगीली चुन्नियों के ख़्वाब
ReplyDeleteमैंने अब चुप्पियों की ओट में
छिपा दिए हैं …
मुहब्बत की लकीरें
कैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …
Aafreen...Nishabd...
दुआ चंदन
ReplyDeleteबस रहे पावन
जहाँ भी रहे !
सपनों के अक्षर पत्थर हो
ReplyDeleteधीमे से समंदर में
उतर जाते हैं ...अद्भुत....
निशब्द हूँ .
कब्र पर गुलाब प्यार के खिलते है?
ReplyDeleteकब्र पर गुलाब प्यार के ही चढते हैं
आपका लेखन दिल में उतर जाता है बेहतरीन
ReplyDeleteआप तो साक्षात पीडा खडी कर देती हैं ।
सपनों के अक्षर दर्द के समंदर में उतर जाते हैं
सहमी सी नज्म पर दुआ के फूल रख जाते हैं ।
देख आज मेरी नज़्म भी
ReplyDeleteसहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे …!!
.....सच दुआएँ हर स्थिति में काम आती हैं ...
"चल तू यूँ जख्मों पर
ReplyDeleteरेशमी रुमाल न फेरा कर
रात आहें भरने लगती है ...."
दर्दे-बयां का उदास चेहरा
सदियों से ज्यूँ रह में निगाहें जड़े बैठा है
कोई नहीं आएगा अब इस तरफ
...फिर भी
खूबसूरत कहते हुए डरती हूँ इसे ....कहीं रुसवाई न हो जाये
मुहब्बत की लकीरें
ReplyDeleteकैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं … waah harqeerat , bahut din baad padhi tumhari nazm , dil khush ho gaya :)
tera mera rishta jo ban gaya dard ka..soch ke to dekh kya sirf yahi ek visaal ki wajeh hai..?
ReplyDelete"मुहब्बत की लकीरें
ReplyDeleteकैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं "
umdaa hai...
kyun kisi kaatib-e-waqt kee chale hamesha...lagan lagi hai to ab lakeeron ka kya kaam, lakeeren to sarhadon ka kaam karti hain...
देख आज मेरी नज़्म भी
ReplyDeleteसहमी सी खड़ी है
आ आज की रात
इसकी छाती पर कोई
दुआओं का फूल रख दे
dard me bhingi huiis najm par
duvaayen ke phool jaraur asar dikhayenge.duvaayen kabhi vyrth nahi jaatin------hrkeerat ji
marm-sparshi nazm---
poonam
बहुत बढ़िया.. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteमुहब्बत की लकीरें
ReplyDeleteकैनवास पर उतरती होंगी
हथेलियों पर लकीरें
तिड़क जाती हैं …
बहुत खूब, लाजवाब
साभार!
कुछ नज्मे बस दिल पर उतर जाती है , ये भी उन्ही में से एक है हरकीरात जी .. बस मन कहीं खो सा गया है ..
ReplyDeleteदिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
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