समकालीन भारतीय साहित्य के दिसं -जनवरी अंक और गर्भनाल के फरवरी अंक में प्रकाशित मेरी कुछ रचनायें .....
एक खुशखबरी और समकालीन भारतीय साहित्य की कवितायेँ पढ़ दिल्ली के अशोक गुप्ता जी ने मुझे ये ख़त लिखा .....
मान्यवर हरकीरत जी,
नमस्कार.
16th दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए एक सामूहिक बलात्कार कांड से समाज
में जो आक्रोश उपजा है उससे जुड कर मैंने एक पुस्तक संपादित करने के काम
हाथ में लिया है जिसमें यौन उत्पीडन से जुड़े आलेख, कहानिया तथा कानून
विशेषज्ञों के आलेख लेने का मेरा मन है. उस पुस्तक के फ्लैप पर मैं आपकी दो
कविताएं लेना चाह रहा हूँ.मैंने इस कविताओं को समकालीन भारतीय साहित्य के
ताज़ा अंक (नवंबर-दिसंबर २०१२) में पढ़ा है. सचमुच यह बहुत ही मर्मस्पर्शी और
अनुकूल सन्देश को प्रेषित करती कविताएं हैं. यथा प्रस्ताव चयनित कविताएं
हैं, 1 तथा 7 .
बहुत बहुत धन्यवाद.
अशोक गुप्ता
Mobile 09910075651 / 09871187875
दुआ है ये नज्में उस आक्रोश को बढ़ाने में कामयाब हों ......
और अब पंजाबी से अनुदित एक नज़्म आप सबके लिए .....
मुहब्बत ...
वह रोज़
दीया जला आती है
ईंट पर ईंट रख
शब्दों की कचहरी में खड़ी हो
पूछती है उससे
मजबूर हुई मिटटी की जात
रिश्तों की धार से छुपती
वह उसे आलिंगन में ले
गूंगे साजो से करती है बातें ....
पिंजरे से परवाज़ तक
वह कई बार सूली चढ़ी थी
इक- दुसरे की आँखों में आँखें डाल साँसों के लौट आने तक
ज़िन्दगी के अनलिखे रिश्तों की
पार की कहानी लिखते
वे भूल गए थे
मुहब्बतें अमीर नहीं हुआ करती .....
यदि धरती फूलों से ही लदी होती
तो दरिया लहरें न चूम लेते ...?
इक दिन वह
कुदरत की बाँहों में झूल गया था
और अक्षर-अक्षर हो
पत्थर बन गया था
मोहब्बत का पत्थर ....
गुमसुम खड़ी हवाएं
दरारों से आहें भरती रहीं
कोई रेत का तिनका
आँखों में लहू बन जलता रहा
घुप्प अँधेरे की कोख में
वह दीया जला लौट आती है
किसी और जन्म की
उडीक में .....!!
हरकीरत 'हीर'
बधाई हो!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
वरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
बधाई हो!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
वरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
बहुत बहुत बधाई !
बहुत बहुत बधाई आपको हीर :)
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको ढेर सारी बधाइयाँ
ReplyDeleteव हार्दिक शुभकामनाएँ!:-)
~सादर!!!
बधाई हो.
ReplyDeleteशुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
सार्थक लेखन को उचित स्थान मिला है।
ReplyDeleteबधाई और शुभकामनायें जी ।
अनेकानेक बधाइयाँ. दोनों कवितायेँ सही सन्देश देती हैं. लेकिन दूसरा चित्र खुल नहीं रहा है. उसमे क्या है पता नहीं चला.
ReplyDeleteवो जिधर देख रहे हैं,
ReplyDeleteसब उधर देख रहे हैं,
हम तो बस,
देखने वालों की नज़र,
देख रहे हैं...
लगदा वे साणू वी सूट-शूट पाणा शुरू करना पऊ...
जय हिंद...
शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत खूब....बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत- बहुत बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteक्या बात.... बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeletewww.nayafanda.blogspot.com
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत-बहुत बधाई हो!
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteइक दिन वह
ReplyDeleteकुदरत की बाँहों में झूल गया था
और अक्षर-अक्षर हो
पत्थर बन गया था
मोहब्बत का पत्थर ...........
मोहब्बत में ही इतना दर्द क्यों है?????
गुमसुम खड़ी हवाएं
ReplyDeleteदरारों से आहें भरती रहीं
कोई रेत का तिनका
आँखों में लहू बन जलता रहा
घुप्प अँधेरे की कोख में
वह दीया जला लौट आती है
किसी और जन्म की
उडीक में .....!!
kya kahoon shabd nahee mil rahe.
बधाई और शुभकामनायें ....
ReplyDeletekhushi ki bat hai..badhai.
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