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Tuesday, October 9, 2012

फैसला,अक्स,तलाश,नज़्म का जन्म और दर्द की नौकाएं....

मित्रो मेरी कुछ नज्में ज्ञानपीठ से निकलने वाली देश  की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' के अक्टूबर- १२ के अंक  में प्रकाशित हुई हैं ...उन्हें आप सब के लिए यहाँ पुन: प्रेषित  कर रही हूँ ...साथ ही पत्रिका का वह अंश भी संलग्न है जिसमें रचनायें प्रकाशित हैं .... आप सब के साथ एक और खुशखबरी सांझा करना चाहती हूँ जैसा कि मैं पहले भी सूचित कर चुकी हूँ  कि बोधी प्रकाशन पूर्वोत्तर के रचनाकारों को लेकर  ( पूर्वोत्तर से तात्पर्य - असम, मणिपुर , नागालैंड , मेघालय ,अरुणाचल , सिक्किम ,इम्फाल से है )एक काव्य-संग्रह निकालने जा  रहा है ...जिसके संपादन का दायित्व  उन्होंने मुझे सौंपा है ...अत: पूर्वोत्तर के सभी रचनाकारों से अनुरोध है कि अपनी दो-तीन रचनायें (स्त्री विमर्श पर आधारित ), संक्षिप्त परिचय और तस्वीर ३० अक्टूबर तक  मुझे इस पते पर मेल कर  दें  harkirathaqeer@gmail.com या बोधी प्रकाशन के इस मेल पर मेल करें ....bodhiprakashan@gmail.com
(१)

फैसला ....


तूने ....
सिर्फ उन परिंदों की बात की
जो अपनी उडारियों से
 छूना चाहते थे आसमां
कभी जो ...
उनके प्रेम से
चोंच से चोंच मिलाकर
दानों के लिए ...
जद्दोजहद की बात करते
तो मैं.....
साथ चल पड़ती .....!!

(२)
अक्स.....

अभी-अभी हुई बारिश में
सड़क पर तैरते बुलबुलों के बीच
तलाशना चाहती थी तेरा अक्स
कि गुजरती इक कार ने
सब कुछ तहस -नहस कर दिया
उतरती इक नज़्म
फिर वहीँ ...
खामोश हो गई .....!

(३)

तलाश ....

न जाने कितने  रिश्ते
बिखरे पड़े हैं मेरी देह में
फिर भी तलाश है जारी है
इक ऐसे रिश्ते की
जो लापता है उस दिन से
बाँध दी गई थी गाँठ
जिस दिन ...
सात फेरों साथ
चूल्हे की आग संग ....

(४)

नज़्म का जन्म .....

इस नज़्म के
जन्म से पहले
ढूंढ लाई थी अपने आस-पास से
कई सारे दर्द के टुकड़े
कुछ कब्रों की मिट्टी
कुछ दरख्तों के ज़िस्म से
सूखकर झड़ चुके पत्ते
फिर इक बुत तैयार किया
ख़ामोशी का बुत ...
और लिख दिए इसके सीने पर
तेरे नाम के अक्षर
नज़्म ज़िंदा हो गई .....

(५)

दर्द की नौकाएं  ....

बरसों से ...
बाँध रखी थी दिल में
दर्द की नौकाएं
आज तुम्हारी छाती पर
खोल देना चाहती हूँ इन्हें ...
पर तुम्हें ...
इक वादा करना होगा
तुम बनोगे इक दरिया
और मोहब्बत की पतवार से
बहा ले जाओगे इन्हें
वहां .....
जहाँ प्रेम का घर है ....!!

46 comments:

  1. पर तुम्हें ...
    इक वादा करना होगा
    तुम बनोगे इक दरिया
    और मोहब्बत की पतवार से
    बहा ले जाओगे इन्हें
    वहां .....
    जहाँ प्रेम का घर है ....!!
    सभी एक से बढ़कर एक ... बधाई सहित शुभकामनाएं ...
    सादर

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  2. बहुत खूब ..सब बहुत सुन्दर ..बधाई बहुत बहुत आपको हीर जी

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  3. कभी जो ...
    उनके प्रेम से
    चोंच से चोंच मिलाकर
    दानों के लिए ...
    जद्दोजहद की बात करते
    तो मैं.....
    साथ चल पड़ती .....!!.... शब्द नहीं हैं,पर इन पंक्तियों में मैं भी जुड़ गई
    ......
    तलाश है जारी है
    इक ऐसे रिश्ते की
    जो लापता है उस दिन से
    बाँध दी गई थी गाँठ
    जिस दिन ...
    सात फेरों साथ
    चूल्हे की आग संग .... कभी मिलूं,कुछ प्रश्न हैं आँच में
    ..........................

    ReplyDelete
  4. वाह हकीर जी ..आप आपके शब्द बहुत कुछ बोलते हैं ...

    फैसला ....

    उस फैसले से उभरा

    अक्स

    उस अक्स में वजूद की

    तलाश

    तलाश में पनपती

    नज्म का जन्म

    और नज्म के सागर में तेरती

    दर्द के नौकाएं ....


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  5. बहुत बढिया, मुबारकां

    वैसे सभी रचनाएं भी एक से बढ़कर एक हैं।

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  6. इनको पढ़ के ,बचा क्या जो कहने के लिए है
    यहाँ सिर्फ समझने और ,बाकि सहने के लिए है !

    खुश रहें!

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  7. बेहद खूबसूरत हीर जी....
    "तलाश" तो कहीं गहरे उतर गयी...

    बहुत बहुत मुबारक...

    सादर
    अनु

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  8. मुबारक दीदी ! हर रचना एक से बढ़कर एक !

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  9. पाँचों छोटी-छोटी रचनाएं अंतस्तल को कहीं गहरे छूती हैं. सब-की-सब बहुत कमनीय-कोमल-सी; किसी एक-दो का कैसे अलग से ज़िक्र करूँ? आपकी कलम की बात ही निराली है, जिस पर हैरत भी होती है और रश्क भी .... बधाइयाँ !!
    साभिवादन--आ.

    ReplyDelete
  10. पाँचों छोटी-छोटी रचनाएं अंतस्तल को कहीं गहरे छूती हैं. सब-की-सब बहुत कमनीय-कोमल-सी; किसी एक-दो का कैसे अलग से ज़िक्र करूँ? आपकी कलम की बात ही निराली है, जिस पर हैरत भी होती है और रश्क भी .... बधाइयाँ !!
    साभिवादन--आ.

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  11. बहुत खूब, ढेरों बधाईयाँ..

    ReplyDelete
  12. सभी रचनाएँ बेहद सुन्दर..
    बहुत -बहुत बधाई आपको..
    शुभकामनाएँ...
    :-)

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  13. खूबसूरत नज़्में देश की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका में छपने के लिए बधाई .
    आशा है की पत्रिका ने यथोचित पारितोषिक भी दिया होगा . :)

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  14. बहुत बहुत बधाई ........हर रचना एक से बढ़ कर एक

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  15. न जाने कितने रिश्ते
    बिखरे पड़े हैं मेरी देह में
    फिर भी तलाश है जारी है
    इक ऐसे रिश्ते की
    जो लापता है उस दिन से
    बाँध दी गई थी गाँठ
    जिस दिन ...
    सात फेरों साथ
    चूल्हे की आग संग ....

    गज़ब की तलाश है. सारी नज्मे एक से बढ़कर एक है, अगले संपादन के पहले से ही ढेरों बधाईयाँ.

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  16. आप को बधाई. हीर जी..सभी नज्म दिल को छू गए...

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  17. अभी-अभी हुई बारिश में
    सड़क पर तैरते बुलबुलों के बीच
    तलाशना चाहती थी तेरा अक्स
    कि गुजरती इक कार ने
    सब कुछ तहस -नहस कर दिया
    उतरती इक नज़्म
    फिर वहीँ ...
    खामोश हो गई ...
    बहुत बहुत बधाई हरकीरत जी...

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  18. चोंच से चोंच मिलाकर
    दानों के लिए ...
    जद्दोजहद की बात करते
    तो मैं.....
    साथ चल पड़ती .....!!
    बहुत-बहुत बधाई :) आपकी रचनाएँ दिल को छू संतुष्ट करती हैं !!

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  19. वाह ...मर्मस्पर्शी नज्में ...बधाई आपको

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  20. शब्द केवल पढ़े नहीं जाते....
    बोलते भी हैं.....!!
    बहुत खूब....

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  21. बहुत ही सुन्दर नज्म...

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  22. फैसला ,नज्म का जन्म और तलाश विशेष रूप से अच्छीं लगीं वैसे तो हमेशा ही आपकी सभी रचनाएं प्रभावित करती हैं

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  23. बहुत सी श्रेष्ठ रचनाये मनःस्थिति की रचनाएं होती हैं -जिन्हें बिना उसी मनःस्थिति के साम्य के सहजता से हृदयंगम नहीं किया जा सकता -आज आपकी इन रचनओं ने कहीं गहरे संस्पर्श किया है -अब यह इन रचनाओं की श्रेष्ठता है या फिर मेरी मौजूदा मनःस्थिति की कह नहीं पा रहा -मगर आपकी व्यष्टिगत संवेदना आज समष्टि को समेटने को व्याकुल हो उठी है !ज्ञानोदय (नए) में प्रकाशन के गौरव पर मेरी बहुत बहुत बधाई !

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  24. @ अब यह इन रचनाओं की श्रेष्ठता है या फिर मेरी मौजूदा मनःस्थिति की कह नहीं पा रहा

    कुछ ही टिप्पणियाँ होती हैं जो दिल से लिखी गई होती हैं बाकी तो औपचारिकता भर ...
    आज आपके कथ्य में एक दर्द है ....ऐसा क्यों ....?

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  25. आप को हर बार की तरह इस बार भी नमन ! एक प्रार्थना ऊपर वाले से कि आप हज़ार बरस जियें और लाख बरस जिए आपका दर्द ...आप चाहें तो बेशक इसे बददुआ समझ सकती हैं मैं एक आम इंसान जैसा ही स्वार्थी हूँ !

    फिर इक बुत तैयार किया
    ख़ामोशी का बुत ...
    और लिख दिए इसके सीने पर
    तेरे नाम के अक्षर
    नज़्म ज़िंदा हो गई .....

    नज़्म अमर है आपके नाम की तरह !

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  26. हीरजी ...क्या कहूं ..बस नि:शब्द हूँ ...हर क्षणिका एक कंकड़ फ़ेंक गयी मन की अतल गहराईओं में ...वह !!!

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  27. हरकीरत जी त्वाडा जवाब नहीं...की कवाँ...लाजवाब कर दित्ता तुसी...

    नीरज

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  28. भाई बहोत ही बढ़िया

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  29. आपकी ये नज़्में पढ़ने तीसरी बार आई हूँ .... हर बार कुछ लिखना चाहा ... लेकिन बस पढ़ कर महसूस ही करती रह गयी ....

    कितना सही है फैसला .... जो जमीनी हकीकत से जुड़ा नहीं उसके साथ भला कैसे ज़िंदगी बसर हो ... बहुत खूब ...और बनते रहते हैं अक्स जेहन में.... कब कौन आ कर बिगाड़ जाये कह नहीं सकते ...

    लापता रिश्ते की तलाश ...शायद उम्र भर रहे जारी ... और बिखरे रहें यूं ही देह में तमाम रिश्ते ... बहुत सुंदर नज़्म है ...

    और नज़्म का जन्म ... दर्द के टुकड़ों से बनी और नाम लिखते ही जन्मी नज़्म ... वाह

    दर्द की नौकाएँ संभालवाते हुये एक विश्वास कि शायद पहुंचा ही दे प्यार के घर तक ....

    हर क्षणिका जैसे पाठक के मन से हो कर गुजरती है ....

    नया ज्ञानोदय में प्रकाशित होने के लिए बधाई ॥

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  30. मैं सोचता हूँ अक्सर
    हीर की नज़्में
    न जाने क्यों ले जाती हैं मुझे
    गोबी के डेज़र्ट में
    जहाँ गर्मी है तो बेतहाशा
    सर्दी है तो बेतहाशा।
    कोई दरख़्त
    दूर-दूर तक नहीं आता नज़र।
    वह पतवार न जाने कब होगी
    बनकर तैयार
    जिससे हार जायेगा
    किसी दिन ये रेत का समन्दर
    मैं सोचता हूँ अक्सर।

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  31. @Blogger manu said...

    भाई बहोत ही बढ़िया ...?????

    मनु जी 'बहना' कहते तो भी चलता ....:))

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  32. अभी-अभी हुई बारिश में
    सड़क पर तैरते बुलबुलों के बीच
    तलाशना चाहती थी तेरा अक्स
    कि गुजरती इक कार ने
    सब कुछ तहस -नहस कर दिया
    उतरती इक नज़्म
    फिर वहीँ ...
    खामोश हो गई .....!
    हर नज्म दिल को छूती है .....
    देश की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' के अक्टूबर- १२ के अंक में प्रकाशित हुई हैं ...
    बहुत बहुत बधाई आपको !
    बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ माफ़ी चाहती हूँ !

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  33. अजी मेरी टिप्पणी कहाँ है ?

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  34. " फैसला,अक्स,तलाश,नज़्म का जन्म और दर्द की नौकाएं...." वाह बहुत सुन्दर रचनाएँ आपकी रचनाएँ सच में बहुत प्रभाशाली हैं हमें हमेशा पसंद आती है बहुत सुन्दर | आपको रचना के प्रकाशन की हार्दिक शुभकामनायें |

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  35. बहुत खूब...सीधे मन के कोने तक जाती हुई |

    सादर नमन |

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  36. आपकी हर नज्म में दर्द बहता है आज ये नाव वाली कुछ आस लिये लगी, बधाई ।

    इक वादा करना होगा
    तुम बनोगे इक दरिया
    और मोहब्बत की पतवार से
    बहा ले जाओगे इन्हें
    वहां .....
    जहाँ प्रेम का घर है ....!!

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  37. सभी बहुत अच्छी ....बधाई..

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  38. आपकी रचनाएं तो बस लाजवाब और रिपीट वैल्यू वाली होती हैं |

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  39. Bahut sikhne milta hai aap ko padh kar....:-)





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  40. सुन्दर रचना

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  41. उनके प्रेम से
    चोंच से चोंच मिलाकर
    दानों के लिए ...
    जद्दोजहद की बात करते
    तो मैं.....
    साथ चल पड़ती .....!!

    वाह,,,, बहुत सुंदर कहा







    और ऊपर भाई नहीं... भई लिखना चाहा था

    :)

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  42. न जाने कितने रिश्ते
    बिखरे पड़े हैं मेरी देह में
    फिर भी तलाश है जारी है
    इक ऐसे रिश्ते की
    जो लापता है उस दिन से
    बाँध दी गई थी गाँठ
    जिस दिन ...
    सात फेरों साथ
    चूल्हे की आग संग ....wah wah

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  43. न जाने कितने रिश्ते
    बिखरे पड़े हैं मेरी देह में / mindblowing

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  44. इतना कमाल का लेखन है आपका कि लगता है तारीफ के लिए शब्दों का टोटा पड़ जाएगा। आपकी दो रचनाओं ने विशेष रूप से प्रभावित किया “फैसला” और “दर्द की नौकाएँ”। दोनों नारी मन के भीतर छिपी चाह को रूपायित करने में सफल हुई हैं। आपके कोमल ह्दय का ठीक ठीक प्रतिनिधित्व करती हैं आपकी रचनाएँ, मै आपकी रचनाएँ हर बार पढ़ना चाहता हूँ और कहना चाहता हूँ “वाह वाह”।

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