बचपन में कई बार अपनी ही परछाई देख डर जाती ....आज जब ज़िन्दगी की परछाइयाँ अँधेरे में आ खड़ी होती हैं ...तो फटे हुए कागचों पर अक्षर बिलख उठते हैं ....और कलम बाँझ हो जाती है ....सच है ये वक़्त बड़ा ही नामुराद होता है ....जब हम उसका साथ मांगते हैं ...तब वह हमसे भागने लगता है ...और जब थक जाता है ज़िन्दगी की दौड़ से .... तो लौट कर सामने आ खड़ा होता है ...पर तब न उसे कुछ मिल पाता है न हमें ....और ज़िन्दगी खत्म हो जाती है .....आज अस्पताल में बैठी यूँ ही ज़िन्दगी के कुछ पन्ने पलटती रही ......
अस्पताल से .....
रात फिर उतरी है
करवटों में .....
वार्ड की ठंडक
बाहरी तापमान की
भट्ठी से लड़ती है .....
ज़िन्दगी की धड़कने
जर्जर देह में लड़खड़ाती हैं
साँसें रह-रह कर मौत से लड़ती हैं
और दर्द .....
मेरी आँखों में उतर कर
बीस साल पुराने पन्ने
पलटने लगता है .......
जब सूरज ....
तीखे शब्दों के साथ उतरता
हवाएं खौफ़ से सहम जातीं
बादल चुपके से हथेली पे
बूंदें लिए उतर आते ...
चाँद थाली में पड़ी
सूखी रोटियाँ छुपा लेता ....
मैं घबराकर दुपट्टे की इक कतरन फाड़
बादल की आँखों पे पट्टी बाँध देती
और दुआ के लिए हाथ उठा देती ....
कई बरस मेरी दुआएं
खाली हाथ लौटती रहीं ....
वक़्त बदलता रहा और उम्र की दहलीजें भी
मैं ख़ामोशी के अक्षर चुनती
और वक़्त के पेड़ पर बाँध देती
मन्नतें जिस्म के हर कतरे से
अक्षर गढ़ती ...
नज्में कागचों पर उतर
सूली पर चढती रहीं ...
आज ख़ामोशी ने अक्षर तोड़े हैं
और मैं झड़े हुए पत्तों से
अपने हिस्से के अक्षर चुनती
सोच रही हूँ शायद
स्वर्ग और नर्क यहीं है .....
(2)
तस्वीरें .....
घर की दरारों पर
मैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
(४)
लापता शब्द .....
लापता हैं शब्द
कई दिनों से ...
ठीक उसी वक़्त से जब
दूर कहीं रौशनियों का नगर
नज़र आने लगा था ....
ख़ामोशी अपने कंधे पर
लिए जा रही थी
मेरे शब्द ......!!
(५)
कैक्टस .....
धीरे-धीरे ....
मैं बहुत दूर निकल आई थी
वहाँ .....
जहाँ.....
बुत बने पड़े थे पत्थर ....
जब मैं पहली बार यहाँ आई थी
तब ये बुत नहीं थे ...
कुछ नीली सी रौशनियाँ झाँकती थी
इनकी आँखों में ....
मोहब्बत थिरकती थी इनके ज़िस्म में
उठती साँसों में ज़िन्दगी हँसती थी
उसी हँसी में मैंने देखा था
रात को सुब्ह में
सुब्ह को रात में
इक पल में ही बदलते हुए ...
हाँ .....
तब इनके बीच
ये कैक्टस नहीं था ......!!
(६)
तुम्हारे शब्द ...
वह.....
तुम ही तो थी
जिसकी तलाश थी मुझे
जन्मों-जन्मांतरों से ....
ये तुम्हारे ही कहे शब्द थे
जो आज कन्धा देने खड़े हैं
सूली पर चढ़ी ...
मोहब्बत को .....!!
(७)
ख़त .....
इस बीच मैंने
तुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
(८)
यादें .....
वह फिर आया था
बादलों की छाती चीर
सावन की कश्ती पे सवार
उसकी आँखों में मोहब्बत की तलाश थी
उस रात यादें बहुत देर तक
पैरों के तलवों से
काँटे निकालती रहीं .....!!
(९)
कशमकश .....
ज़िन्दगी ....
नज़्म सी तड़पी है
किसी लाश के पास का कोई पत्ता
थर्राकर कांपा है ....
मरे हुए साजों ने फिर
सुर छेड़ा है .....
आज की रात आग
पत्थर उबालेगी .....!!
(१०)
दर्द ....
रात ....
जब ज़ख्मों ने छाती पीटी
कुछ अक्षर चाँद से गिरे थे
मैंने वो सारे अक्षर
कोख में बो दिए ...
आज नज़्म ने ....
दर्द को ज़न्म दिया है .... !!
अस्पताल से .....
रात फिर उतरी है
करवटों में .....
वार्ड की ठंडक
बाहरी तापमान की
भट्ठी से लड़ती है .....
ज़िन्दगी की धड़कने
जर्जर देह में लड़खड़ाती हैं
साँसें रह-रह कर मौत से लड़ती हैं
और दर्द .....
मेरी आँखों में उतर कर
बीस साल पुराने पन्ने
पलटने लगता है .......
जब सूरज ....
तीखे शब्दों के साथ उतरता
हवाएं खौफ़ से सहम जातीं
बादल चुपके से हथेली पे
बूंदें लिए उतर आते ...
चाँद थाली में पड़ी
सूखी रोटियाँ छुपा लेता ....
मैं घबराकर दुपट्टे की इक कतरन फाड़
बादल की आँखों पे पट्टी बाँध देती
और दुआ के लिए हाथ उठा देती ....
कई बरस मेरी दुआएं
खाली हाथ लौटती रहीं ....
वक़्त बदलता रहा और उम्र की दहलीजें भी
मैं ख़ामोशी के अक्षर चुनती
और वक़्त के पेड़ पर बाँध देती
मन्नतें जिस्म के हर कतरे से
अक्षर गढ़ती ...
नज्में कागचों पर उतर
सूली पर चढती रहीं ...
आज ख़ामोशी ने अक्षर तोड़े हैं
और मैं झड़े हुए पत्तों से
अपने हिस्से के अक्षर चुनती
सोच रही हूँ शायद
स्वर्ग और नर्क यहीं है .....
(2)
तस्वीरें .....
घर की दरारों पर
मैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
(४)
लापता शब्द .....
लापता हैं शब्द
कई दिनों से ...
ठीक उसी वक़्त से जब
दूर कहीं रौशनियों का नगर
नज़र आने लगा था ....
ख़ामोशी अपने कंधे पर
लिए जा रही थी
मेरे शब्द ......!!
(५)
कैक्टस .....
धीरे-धीरे ....
मैं बहुत दूर निकल आई थी
वहाँ .....
जहाँ.....
बुत बने पड़े थे पत्थर ....
जब मैं पहली बार यहाँ आई थी
तब ये बुत नहीं थे ...
कुछ नीली सी रौशनियाँ झाँकती थी
इनकी आँखों में ....
मोहब्बत थिरकती थी इनके ज़िस्म में
उठती साँसों में ज़िन्दगी हँसती थी
उसी हँसी में मैंने देखा था
रात को सुब्ह में
सुब्ह को रात में
इक पल में ही बदलते हुए ...
हाँ .....
तब इनके बीच
ये कैक्टस नहीं था ......!!
(६)
तुम्हारे शब्द ...
वह.....
तुम ही तो थी
जिसकी तलाश थी मुझे
जन्मों-जन्मांतरों से ....
ये तुम्हारे ही कहे शब्द थे
जो आज कन्धा देने खड़े हैं
सूली पर चढ़ी ...
मोहब्बत को .....!!
(७)
ख़त .....
इस बीच मैंने
तुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
(८)
यादें .....
वह फिर आया था
बादलों की छाती चीर
सावन की कश्ती पे सवार
उसकी आँखों में मोहब्बत की तलाश थी
उस रात यादें बहुत देर तक
पैरों के तलवों से
काँटे निकालती रहीं .....!!
(९)
कशमकश .....
ज़िन्दगी ....
नज़्म सी तड़पी है
किसी लाश के पास का कोई पत्ता
थर्राकर कांपा है ....
मरे हुए साजों ने फिर
सुर छेड़ा है .....
आज की रात आग
पत्थर उबालेगी .....!!
(१०)
दर्द ....
रात ....
जब ज़ख्मों ने छाती पीटी
कुछ अक्षर चाँद से गिरे थे
मैंने वो सारे अक्षर
कोख में बो दिए ...
आज नज़्म ने ....
दर्द को ज़न्म दिया है .... !!
kya kahe samajh nahi aa raha ....aabhar
ReplyDeletebahut dino baad , ek baar fir behtreen rachnayen padne ko mili,
ReplyDeletebahut sundar
ek-se-badhkar ek.......
ReplyDeletea n a n d u m..........
pranam.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकम शब्दों में मगर कई भावों को अभिव्यक्ति करती सुन्दर नज्में।
ReplyDeleteआदरणीय हरकीरत जी
ReplyDeleteनमस्कार !
रात फिर उतरी है
करवटों में .....
वार्ड की ठंडक
बाहरी तापमान की
भट्ठी से लड़ती है .....
ज़िन्दगी की धड़कने
जर्जर देह में लड़खड़ाती हैं
साँसें रह-रह कर मौत से लड़ती हैं
और दर्द .....
एक एक शब्द दर्द से भीगा हुआ ,बधाई......
करीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
हर बार की तरह निशब्द कर दिया…………सिर्फ़ और सिर्फ़ दर्द का दरिया ही दिखा।
ReplyDeleteघर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
prayah khud hi ek nazariya bana lete hain sab
हर नज़्म पढ़ कर ऐसा लगता रहा कि शब्द दर शब्द कुछ रिस रहा है .... मन पर हावी होने की सामर्थ्य रखती हुई क्षणिकाएँ ..
ReplyDeleteऔर दर्द .....
ReplyDeleteमेरी आँखों में उतर कर
बीस साल पुराने पन्ने
पलटने लगता है ... !?!
उफ़ ! अस्पताल का दर्द , और बीस साल पुरानी किताब के पन्नों से टपकता दर्द --दोनों ही मार्मिक ।
ReplyDeleteजिंदगी फिर एक बार इम्तिहान ले रही है ।
हीर जी हमेशा की तरह ही लाजबाब ! शब्द नही नूर !!
ReplyDeleteइस बीच मैंने
ReplyDeleteतुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
वाह...कमाल किया है इस बार भी आपने हरकीरत जी...आपकी नज़्म की प्रशंशा करते वक्त शब्द हमेशा लापता हो जाते हैं...बिचारे अपनी सीमा समझते हैं, शर्मिंदा हो जाते हैं क्यूँ की उन्हें मालूम है के आप की नज़्म पढ़ कर, दिल में उठे एहसास को वो सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पायेंगे...
नीरज
घर की दरारों पर मैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें ...देखने वाले अक्सर मुझे
ReplyDeleteकला की शौकीन समझ लेते हैं ...
:)
बहुत अच्छा लगा..ये जानकर कि आपको भी हमारी ही तरह पेंटिंग्स से दीवारों की खस्ता हालत ढांपने की बीमारी है जी...
बाकी कि नज्में भी बहुत सुन्दर हैं....
मगर इसमें विशेष आनंद आया...
ishwar hosital aur court ke chhkar kisi se na katwaye, main to yahi kahti hun...
ReplyDeletejakhm bolte hai yahi aapki rachna se parilakshit ho raha hai..
sach ye pankiyan dard ko kitna kuch kahti hain!
जब ज़ख्मों ने छाती पीटी
कुछ अक्षर चाँद से गिरे थे
मैंने वो सारे अक्षर
कोख में बो दिए ...
आज नज़्म ने ....
दर्द को ज़न्म दिया है .... !!
hamesha ki tarah dard ki har parat khol khol kar dikha di har kshanika me.
ReplyDeleteआद मनु जी ,
ReplyDeleteइक अरसे बाद आपको देख अच्छा लगा ....
:))
यहाँ दरारों से मतलब दिल की दरारों से है .....
घर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
गहन अभिव्यक्ति.... बहुत सुंदर
इस बीच मैंने
ReplyDeleteतुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
बेहद उम्दा और पैनी नज़्में ! हर एक हर्फ़ ख़ास !
नमन !
आपके ब्लॉग की पोस्टिंग रूकी होने पर जब आपसे पता चला था तो समझ में आ गया था कि आप इन दिनों कितनी परेशानियों और तकलीफों में हैं… अपने जब अस्पतालों में भर्ती हों और यह सिलसिला लम्बा चले तो इस तकलीफ़ को मरीज ही नहीं, उसके करीबी भी भोगते हैं… बस, ईश्वर से प्रार्थना ही तो कर सकते हैं हम… आपकी ये नज्में दुख और दर्द की जो जिन्दा तस्वीर खींच रही हैं, वह हर संवेदनशील व्यक्ति को भीतर तक हिलाकर रख देनी की शक्ति रखती हैं… एक एक कविता दर्द की संवेदना में भीगी हुई…एक एक लफ़्ज भीतर तक खरोंच देने वाला… दर्द को भीतर तक खामोश रहकर जीने वाला कवि ही ऐसी कविताएं लिख सकता है… या खुदा ! हीर को शक्ति दे… इस दर्द को सहने की और उसे कलमबद्ध करने की… दर्द का यूँ ही सुन्दर सा अनुवाद आप शब्दों के माध्यम से करती रहे…
ReplyDeleteकिस किस क्षणिका की तारीफ़ करें सब एक से बढ़ कर एक. पर तस्वीर बहुत कुछ कहती सी लगी.
ReplyDeleteख़ामोशी अपने कंधे पर
ReplyDeleteलिए जा रही थी
मेरे शब्द ......!!
क्या बात कह दी आपने. शब्द और ख़ामोशी के कंधे पर?.....गज़ब!....सभी नज्मों में नए और अनूठे बिम्बों के साथ संवेदनाओं का स्वाभाविक सफ़र कहीं गहरे उतर गया. बहुत खूब!
रात ....
ReplyDeleteजब ज़ख्मों ने छाती पीटी
कुछ अक्षर चाँद से गिरे थे
मैंने वो सारे अक्षर
कोख में बो दिए ...
आज नज़्म ने ....
दर्द को ज़न्म दिया है .... !!
बहुत कुछ अपने साथ बीता हुआ सा लगा ....ऐसे लगा जैसे खुद ही गुजर चुका हूँ इन परिस्थितियों से ....एक एक शब्द ने अंतर्मन को प्रभावित कर दिया ...!
दानिश जी ,
ReplyDeleteजब यही हवाएं खिलाफ बहा करती थी ...
और मौसम बिलकुल खामोश था .....
कौन क्या ले जाता है अंत समय .....?
बेहद उम्दा और पैनी नज़्में !बधाई..
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद तुम्हारी याद आई...
ReplyDeleteजैसे सीप में से मोती निकला ..
जैसे कांटो पे बहार आई ..वाह !वाह !!
यार बड़ी कन्फुज हूँ नम्बर एक को यस कहूँ ..नहीं -नहीं दो ठीक हैं ..न -न तीन ..चार तो एकदम ठीक हैं ...
लगता हैं इस बार रुलाने का ठेका ले लिया हैं हीर तुमने ..बेहद दर्दीली और बेहद दर्दीली ..बस कुछ नही कहूँगी ...तुम्हारी लेखनी को सदके जाऊ ....
आशा है आप स्वस्थ व सानंद हॊगी। पर अस्पताल का ज़िक्र करने से मन में शंका हुई॥
ReplyDeleteहरकीरत जी ,आज आपको पढ़ते हुए पता नहीं क्यों अमॄता प्रीतम जी की याद आ रही है .... उनकी सोच के परिपक्वता की और दर्द की भी .......
ReplyDeleteजब ज़ख्मों ने छाती पीटी
ReplyDeleteकुछ अक्षर चाँद से गिरे थे
मैंने वो सारे अक्षर
कोख में बो दिए ...
आज नज़्म ने ....
दर्द को ज़न्म दिया है
सारी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं...
’हीर’ जी मै तो नीशब्द हुं!
ReplyDeleteएक दो जख्म नही, पूरा बदन ज़ख्मी है
दर्द बेचारा परेशानं है,कि कहां से उठें ॥
अच्छे के लिये !
शुभकामनायें!
घर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
...बेहतरीन।
वेदना को शब्द देना कोई आपसे सीखे , इन्सान के दुःख दर्द कब है रीते?. हर शब्द जीवन को सच्चाई का आइना दिखाते.. पीड़ा के समुद्र में डूबते उतराते.
ReplyDeleteघर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
इस बीच मैंने
तुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
वाह.....सुभानाल्लाह.......सारे बेहतरीन हैं.......पर इनकी बात कुछ अलग है......लफ्जों पर आपकी पकड़ की दाद है.......
चूल्हा है ठंडा पड़ा
ReplyDeleteऔर पेट में आग़ है
गर्मागर्म रोटियां
कितना हसीं ख्वाब है
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
आलू टमाटर का साग
इमली की चटनी बने
रोटी करारी सिके
घी उसमें असली लगे
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
जय हिंद...
रात ....
ReplyDeleteजब ज़ख्मों ने छाती पीटी
कुछ अक्षर चाँद से गिरे थे
मैंने वो सारे अक्षर
कोख में बो दिए ...
आज नज़्म ने ....
दर्द को ज़न्म दिया है .... !!
नि:शब्द कर दिया इन पंक्तियों ने ...।
“आपकी नज़्म के कोख से
ReplyDeleteजन्मा दर्द...
मचलता रहा
मेरी बाँहों में देर तक...
मैं सुनाता रहा उसे
बार बार
पढ़ कर आपकी ही नज़्म...
अब खामोश है वह..
शायद आँख लगी है उसकी...
दुआ है,
बड़ी लंबी हो उसकी नींद...
और आप
निश्चिंत होकर
कुछ पौधे लगा सकें- खुशियों के.”
सादर....
बहुत सुंदर नज्में,
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपकी हर क्षणिका चिन्तन तरंग छेड़ जाती है।
ReplyDeleteख़त .....
ReplyDeleteइस बीच मैंने
तुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
हर बार कुछ ना कुछ रोशनी लेकर जाता हूँ हीर जी आपकी चौखट से ...इस बार बेपनाह दर्द लेकर जा रहा हूँ ....शायद ये मेरे भीतर का ही हो जो मुझे हर जगह प्रतिबिम्बित हो रहा है.
ना मोहब्बत न दोस्ती के लिए
ReplyDeleteवक्त रुकता नहीं किसी के लिए
वक्त के साथ साथ चलता चले
यही बेहतर है आदमी के लिए
दर्द भरी और दिल को छूने वाली सुंदर क्षणिकाओं के लिए आभार
आप कभी आँसुओं से ज़ख्म धोती हैं ,कभी दर्द से यादें कुरेद देती हैं और कभी बस रूह को सुकून दिला जाती हैं । बहुत ही प्रभावी रचनाएं ।
ReplyDeleteहर क्षणिका जैसे दर्द का सैलाब है ! पढ़कर लगता है हम सब जीवन में ऐसे ही दर्द जीते हैं, सब कुछ अपना सा लगा !
ReplyDeleteआपकी अभिव्यक्ति कमाल की है !
आभार !
इस पर तो अच्छा और बहुत खूब भी नहीं कहा जाता।
ReplyDeleteचुप हूँ, और मौन सचमुच बोलता है।
bahut dino baad padhne ko mila ..par vahi kabile tarif
ReplyDeletekamaal hai harkeerat , doosri amrita lagti ho tum mujhe
ReplyDeleteकितनी खूबसूरत नज्में उसकी कलम से उतरती हैं,
ReplyDeleteआज नींद को भी जागना पडेगा ।
एक एक नज्म दिल का कोई ना कोई तार छेडने वाली । दरारों पर चित्र टांगने की बात तो ना जाने कितनों की
अनुभव की हुई होगी । और ये तो
उसकी आँखों में मोहब्बत की तलाश थी
उस रात यादें बहुत देर तक
पैरों के तलवों से
काँटे निकालती रहीं .....!!
बस कमाल ।
मैं घबराकर दुपट्टे की इक कतरन फाड़
ReplyDeleteबादल की आँखों में बाँध देती
और दुआ के लिए हाथ उठा देती ....
पर शायद....
मेरे दर से कोई फकीर
खाली हाथ लौटा था .....!!.....
bhut hi sunder...
sabhi sher bahut achhe hai ...jaise dard ki syaahi se likhe gaye ho ...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलाज़वाब ! सभी क्षणिकायें एक से बढ़ कर एक, मुश्किल है कहना कि कौन सी सबसे अच्छी है.. उत्कृष्ट प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteharkiratji,
ReplyDeletebahut dino baad aapaki rachaye padhi.aapki kshanika.....mera sara shabdkosh khali ho jata hai ...
Harkeerat ji,
ReplyDeleteAapki kavitaaon mein ek nayi gahraayi dekh rahaa hoon... ek kavi ke taur par badhaai dena chaahta hoon par ek insaan ke taur par fiqrmand bhi hoon...
haal mein kai masoom duaaon ki haar dekhi hai... par phir bhi duaa hai ki jo ho achchhe ke liye ho...
कहने को कुछ बचा ही नहीं.. यकीनन.
ReplyDeleteghar ki diwaro par kuch tasweere tang di mene, dekhne wale mujhe kala ki sokin samajh lete hai.....bahut hi jabardast likha hai apne....
ReplyDeletejiai hind jai bharat
mam exam ke karan wayast tha.
ReplyDeleteab tak chappan.......
ReplyDeletejai hind jai bharat
क्या बात है।
ReplyDeleteसच में आपकी लेखनी का अनूठा अंदाज है। आसान शब्दों में जो आप कहना चाहती हैं, वो कह देती हैं। बहुत बहुत बधाई
कम शब्दों में बड़ी गूढ़ बातें..बधाई.
ReplyDelete____________________
शब्द-शिखर : 250 पोस्ट, 200 फालोवर्स
इस बीच मैंने
ReplyDeleteतुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....
बहुत खूब ... हर बार की तरह आपकी रचनाओं और क्षणिकाओं में खो गया आज भी ... किसी दूसरी दुनिया मिएँ ले जाती हैं सभी रचनाएं ...
aaj koi tippani nahi kyonki badhai ki pridhi se bbahar hai yah rachnayen
ReplyDeleteआपकी कृतियाँ पढ़कर बस उसमे गुम हो महसूसा जा सकता है उक्त भाव को ...उसपर टिपण्णी करने को न तो मन स्थिर हो पाता है और न ही ढूँढने पर भी अनुकूल शब्द मिल पाते हैं...
ReplyDeleteऔर दर्द .....
ReplyDeleteमेरी आँखों में उतर कर
बीस साल पुराने पन्ने
पलटने लगता है ... !?!
सुन्दर नज्म।
आपका मार्गदर्शन मिला और काव्यमय पंक्तियों में पिरोने का हुनर भी.. मैं भी कोशिश करूँगा.. :)
ReplyDeleteइक और दर्द.. अस्पताल से .. बीस साल पुराने पन्ने .. दर्द .. तुम्हारे शब्द .. लापता शब्द ... ख़त ... कशमकश ... ख़ामोशी चीरते सवाल .. तस्वीरें .. मुहब्बत के पत्ते... यादें .. .मौत ..........
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति.... बहुत सुंदर.. लाजबाब !
घर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप .. आभार ।
res. Mam, aapki sabhi rachnaon ne bhav vibhor kar diya...tasveeren,laapta shabd,raaten...mere antarman ko chhu gaye...
ReplyDeleteहरकीरत हीर जी बहुत सुन्दर क्षणिकाएं और प्यारी रचनाएँ किस किस का बखान किया जाये
ReplyDeleteआनंददायी
चाँद अपनी थाली में पड़ी
सूखी रोटियाँ छुपा लेता ....
मैं घबराकर दुपट्टे की इक कतरन फाड़
बादल की आँखों में बाँध देती
और दुआ के लिए हाथ उठा देती ....
शुक्ल भ्रमर ५
बहुत खूब |
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा !
प्रेम शब्दों का मोहताज़
ReplyDeleteकभी रहा ही नहीं.......'
.............सभी नज्में वेदना की गहराई से निकले मोतियों की तरह
घर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं ....
खूबसूरत नज्में खूबसूरत अलफ़ाज़
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी. .
हीर जी
ReplyDeleteआपकी नज़्मों पर अपनी बात तो हो ही चुकी …
फिर आया हूं …
कई एहसासात के साथ उदासी से भर गया हूं …
उस दिन मैंने ख़त की बात की … ,
आज कैक्टस ..... हावी है ।
परमात्मा आपको सुख दे , सुकून दे , आपकी तपस्या का प्रतिदान दे , इंसाफ़ दे … आमीन !
Der se ane ke liye mafi chaunga,,
ReplyDeleteBahut dino bad .... apke hastakshar mile hain ..!
aur ham har bar ki tarah is bar bhi..
mugdha rah gaye padhkar.
Abhar.
खूबसूरत प्रस्तुति.. हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन नज़्में हैं , शायद इन दिनों कुछ व्यस्त हैं आप।
ReplyDeleteहरकीरत हीर जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
बस आपको पढ़ती हूँ और बार बार पढ़ती हूँ......कुछ कहना मेरे बस की बात नहीं....
ReplyDeleteहरकीरत
ReplyDeleteये कब लिखा और मेरी नज़र से कैसे छूट गया .. बहुत देर से एक नज़्म पर रुका हुआ हूँ ..
ख़त .....
इस बीच मैंने
तुम्हें कई ख़त लिखे
कुछ पूरे सफ़्हों के ...
कुछ अधूरे ....
और कुछ अनकहे भी ....
हाँ ; ये और बात है कि
उनमें शब्द नहीं थे ...
प्रेम ,शब्दों का मोहताज
कभी रहा ही नहीं .....!!
सोच रहा हूँ , कि वो कौन से लम्हे होंगे , जब ये लिखा होंगा आपने ...
हरकीरत , आपकी इस एक नज़्म पर मैं अपनी नज्मो को कुर्बान करता हूँ ...
क्या इसे मुझे भेजोंगी मेरे collection के लिये ....
धन्यवाद.
विजय
जनाब विजय जी ,
ReplyDeleteहमने कब ताले लगाये हैं ....??
ले जाइये न ...
भला भेजने की क्या जरुरत .....
घर की दरारों पर
ReplyDeleteमैंने टाँक दी है कुछ तस्वीरें
देखने वाले अक्सर मुझे
कला की शौकीन
समझ लेते हैं .....!!
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बढिया
यकीनन प्रेम कभी शब्दों का मोहताज नहीं रहा है... आप की लेखनी पर माँ सरस्वती का आशीर्वाद ऐसे ही बना रहे
ReplyDeletebahut khuub "heer" ji.....
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